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Swadheenta Senani Lekhak-Patrakar   

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Author Asha Rani Vohra
Features
  • ISBN : 9789386001276
  • Language : Hindi
  • Publisher : Prabhat Prakashan
  • Edition : 1st
  • ...more

More Information

  • Asha Rani Vohra
  • 9789386001276
  • Hindi
  • Prabhat Prakashan
  • 1st
  • 2016
  • 260
  • Hard Cover

Description

भारतीय पत्रकारिता का इतिहास राष्‍ट्रीयता के भाव का संपोषक और स्वातंत्र्य-संघर्ष में संलग्नता के लिए उद्बोधक रहा है। स्वातंत्र्य-चेतना का जागरण अधिकतर पत्रकारों का ही अभियान था। स्वतंत्रता-प्राप्‍ति के लिए जब भी जहाँ-जहाँ आंदोलन हुए, उस संघर्ष में पत्रकारिता ही मर मिटने का केसरिया बाना पहनकर संग्राम में उतरी। इस मुक्‍ति-संघर्ष में कवियों, लेखकों, पत्रकारों की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही, जिसे रेखांकित करना ही इस पुस्तक का उद‍्देश्य है।
स्वतंत्रता संघर्ष के दौरान हिंदी-भाषी पत्रों से पहले अहिंदी-भाषी पत्र सामने आए और उन्होंने न केवल अपना अप्रतिम योगदान दिया, बल्कि त्याग और कष्‍ट-सहन में भी वे आगे रहे। स्वामी दयानंद, श्यामसुंदर सेन, राजा राममोहन राय, पुलिन बिहारी दास, अरविंद घोष, लोकमान्य तिलक, अमृतलाल चक्रवर्ती, माधवराव सप्रे, महात्मा गांधी, रामरख सिंह सहगल, लाला जगतनारायण, प्रो. इंद्र वाचस्पति आदि नाम सुपरिचित हैं। इनके कार्य व त्याग का वर्णन पुस्तक में किया गया है।
प्रस्तुत पुस्तक का उद‍्देश्य पाठकों को उस युग की मिशनरी पत्रकारिता और प्रेरणास्पद लेखन से परिचित कराना है कि किस प्रकार तब सामान्य आकार के साधनहीन पत्र भी अपनी लिखित सामग्री से ताकतवर ब्रिटिश सत्ता से लोहा लेते थे और सत्ता उनसे काँपती थी। कैसे जन-नेताओं ने पत्रकारिता को जन-जन की आवाज बना दिया था और किस तरह जनमानस उन पत्र-पत्रिकाओं से आंदोलित होकर मरने-मारने पर उतारू हो जाता था।
‘स्वाधीनता सेनानी लेखक-पत्रकार’ पुस्तक श्रीमती व्होरा के इस कार्य—‘महिलाएँ और स्वराज्य’, ‘क्रांतिकारी महिलाएँ’, ‘क्रांतिकारी किशोर’, ‘स्वतंत्रता सेनानी लेखिकाएँ’ आदि पुस्तक-माला की अगली महत्त्वपूर्ण कड़ी है, जिसमें नई पीढ़ी न केवल स्वातंत्र्य समर के इतिहास की झलक पा सकेगी, बल्कि इससे देश के लिए कुछ कर गुजरने की प्रेरणा भी ग्रहण करेगी।

The Author

Asha Rani Vohra

श्रीमती आशारानी व्होरा ( जन्म : 7 अप्रैल, 1921) हिंदी की सुपरिचित लेखिका हैं । समाजशास्त्र में एम.ए. एवं हिंदी प्रभाकर श्रीमती व्होरा ने 1946 से 1964 तक महिला प्रशिक्षण तथा समाजसेवा के क्षेत्रों में सक्रिय रहने के बाद स्वतंत्र लेखन को ही पूर्णकालिक व्यवसाय बना लिया । हिंदी की लगभग! सभी लब्धप्रतिष्‍ठ पत्र-पत्रिकाओं में अर्धशती से उनकी रचनाएँ छपती रही है । अब तक चार हजार से ऊपर रचनाएँ और नब्बे पुस्तकें प्रकाशित । प्रस्तुत पुस्तक उनके पंद्रह वर्षों के लंबे अध्ययन के बाद स्वतंत्रता-संग्राम संबंधी पुस्तक-माला का चौथा श्रद्धा-सुमन है, जो स्वतंत्रता स्वर्ण जयंती पर किशोर जीवन-बलिदानियों और शहीदों को अर्पित तथा वर्तमान नई पीढ़ी को समर्पित है ।
अनेक संस्थागत पुरस्कारों के अलावा ' रचना पुरस्कार ' कलकत्ता, ' अबिकाप्रसाद दिव्य पुरस्कार ' भोपाल, ' कृति पुरस्कार ' हिंदी अकादमी, दिल्ली, ' साहित्य भूषण सम्मान ' उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान, लखनऊ, ' गणेश शंकर विद्यार्थी पुरस्कार ' केंद्रीय हिंदी संस्थान ( मानव संसाधन विकास मंत्रालय) से सम्मानित । और हिंदी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग की सर्वोच्च उपाधि ' साहित्य वाचस्पति ' से विभूषित श्रीमती व्होरा केंद्रीय हिंदी संस्थान, आगरा एवं हिंदी अकादमी, । दिल्ली की सदस्य भी रह चुकी हैं ।

स्मृतिशेष : 21 दिसंबर, 2008

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