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Author Ashapurna Devi
Features
  • ISBN : 8173153639
  • Language : Hindi
  • Publisher : Prabhat Prakashan
  • Edition : 1st
  • ...more
  • Kindle Store

More Information

  • Ashapurna Devi
  • 8173153639
  • Hindi
  • Prabhat Prakashan
  • 1st
  • 2010
  • 110
  • Hard Cover

Description

' यह क्या, बाबूजी, आप खुद ही चले आए! मैं आपको बुलाने जा ही रहा था । '' दिल खोलकर हँस पड़े निखिल हालदार । बोले, '' मैंने सोचा, देखूँ तो सही कि रास्ता ढूँढने में गलती करता हूँ या नहीं । लग रहा है, ईंट-पत्थर ही सबसे भरोसेमंद होते हैं । जरा भी नहीं बदलते । '' फिर वही सेंटीमेंट । नहीं । ऐसे और कितनी देर तक काम चलेगा? उन्हें असली दुनिया में खींचकर न लाने से यही चलता रहेगा । '' बाबूजी, यह है आपकी बहू । '' '' हाँ! ओह! रहने -दो, बहू । वाह! बहुत अच्छा । यह देखो बहू एक और बूढ़े बच्चे का झमेला तुम्हारे कंधे पर आ पड़ा । '' '' झमेला क्यों कहते हैं, बाबूजी? कितनी खुशी हो रही है हम लोगों को ।. .कल से. .कल आप आए नहीं । कल तो हम लोग एकदम.. .बाद में इतना बुरा लगा । '' '' मत पूछो, बहू । नसीब का लिखा कल जो झमेला गया, तुम लोग सुनोगे तो ' बाबूजी कितने बुद्धू हैं ' कहकर हँसोगे । कल गलत ट्रेन पर चढ़ गया था । इसी से यह गड़बड़ी हुई । '' '' गलत ट्रेन में!'' '' वही तो । नसीब में भुगतना लिखा था । स्टेशन पहुँचा तो... '' -इसी पुस्तक से
इस उपन्यास की नायिका सुचरिता, जो नायक निखिल की पत्‍नी है, एक स्वाभिमानी नारी है । वह अपने भाग्य की विडंबना को, अपने पति के गलत निर्णयों को जीवन भर सिर उठाकर झेलती है, पर अंत में उसका साहस साथ छोड़ जाता है; अपने पति की एक अंतिम गलती के लिए वह उसे क्षमा नहीं कर सकी और जीवन के आगे हार गई । प्रसिद्ध बँगला उपन्यासकार आशापूर्णा देवी की सशक्‍त लेखनी से निःसृत अत्यंत हृदयस्पर्शी कृति, जो पाठकों के मानस-पटल पर वर्षो छाई रहेगी ।

The Author

Ashapurna Devi

जन्म : 8 जनवरी, 1909 को कलकत्ता में ।
मृत्यु : 13 जुलाई, 1995 को ।
पारिवारिक परिस्थितियों के कारण औपचारिक शिक्षा-दीक्षा नहीं हो पाई । माँ की प्रेरणा से बचपन में ही साहित्य. के प्रति अनुराग जाग्रत् हो गया ।
प्रकाशन : उनकी साहित्यिक यात्रा तेरह वर्ष की आयु से ही प्रारंभ हो गई थी, जब उन्होंने एक बाल पत्रिका के लिए एक कविता लिखी थी । ' प्रथम प्रतिश्रुति ', ' सुवर्ण लता ' और ' बकुल कथा ' उनकी सर्वश्रेष्‍ठ कृतियाँ मानी गई हैं । उन्होंने विपुल संख्या में उपन्यास व कहानियों का लेखन किया है ।
पुरस्कार / सम्मान : कलकत्ता विश्‍व- विद्यालय से स्वर्ण पदक, प. बंगाल सरकार द्वारा ' रवींद्र पुरस्कार ' तथा भारत सरकार की ओर से ' पद‍्मश्री ' सम्मान प्राप्‍त । इसके अतिरिक्‍त ' ज्ञानपीठ पुरस्कार ' और कई विश्‍वव‌िद्यालयों से डी.लिट. की मानद उपाधियाँ प्राप्‍त ।

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