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Chikitseey Balivedi Par Meri Patni   

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Author Ravindranath Srivastava
Features
  • ISBN : 9789384343569
  • Language : HINDI
  • Publisher : Prabhat Prakashan
  • Edition : 1
  • ...more

More Information

  • Ravindranath Srivastava
  • 9789384343569
  • HINDI
  • Prabhat Prakashan
  • 1
  • 2016
  • 168
  • Hard Cover

Description

पस्तक में एक मध्यमवर्गीय भारतीय परिवार की गृह-स्वामिनी श्रीमती शीला श्रीवास्तव के स्तन कैंसर के उपचार में घोर चिकित्सीय लापरवाही से उत्पन्न दुरूह स्थिति एवं उनके पति, संतानों तथा अन्य परिवारजनों के कटु तथा खट्टे-मीठे अनुभवों का समावेश है।
चिकित्सीस  लापरवाही  के परिणाम-स्वरूप श्रीमती शीला श्रीवास्तव के मस्तिष्क, छाती और हड्डियों को अपूरणीय क्षति पहुँची। वह मानसिक तथा शारीरिक रूप से अपंग हो गईं। परिवार के पास साधन रहते हुए भी अपने परिवार की सबसे महत्त्वपूर्ण सदस्य को कुछ भी राहत न दे सके, क्योंकि इस लापरवाही से उत्पन्न रोगों का कोई उपचार विश्व
की किसी चिकित्सा पद्धति में उपलब्ध नहीं है।
श्रीमती शीला श्रीवास्तव 11 वर्षों की घोर यातना के बाद 4 नवंबर, 2013 को परलोक सिधार गईं। परिवार अपने अमूल्य सदस्य की आत्मा की शांति हेतु तथा समाज-हित में वह सबकुछ कर रहा है और करना चाहता है, जिससे संबद्ध संस्थागत व्यवस्थाएँ, सरकारें और न्यायपालिका इस प्रकार की अमानवीय कर्तव्यहीनता पर अंकुश लगा सके। इस पुस्तक से उम्मीद है कि अस्पतालों तथा डॉक्टरों की असावधानी और लालच के पूर्ण उन्मूलन के कार्य को गति मिलेगी।

स्तक में एक मध्यमवर्गीय भारतीय परिवार की गृह-स्वामिनी श्रीमती शीला श्रीवास्तव के स्तन कैंसर के उपचार में घोर चिकित्सीय लापरवाही से उत्पन्न दुरूह स्थिति एवं उनके पति, संतानों तथा अन्य परिवारजनों के कटु तथा खट्टे-मीठे अनुभवों का समावेश है।
चिकित्सीस  लापरवाही  के परिणाम-स्वरूप श्रीमती शीला श्रीवास्तव के मस्तिष्क, छाती और हड्डियों को अपूरणीय क्षति पहुँची। वह मानसिक तथा शारीरिक रूप से अपंग हो गईं। परिवार के पास साधन रहते हुए भी अपने परिवार की सबसे महत्त्वपूर्ण सदस्य को कुछ भी राहत न दे सके, क्योंकि इस लापरवाही से उत्पन्न रोगों का कोई उपचार विश्व
की किसी चिकित्सा पद्धति में उपलब्ध नहीं है।
श्रीमती शीला श्रीवास्तव 11 वर्षों की घोर यातना के बाद 4 नवंबर, 2013 को परलोक सिधार गईं। परिवार अपने अमूल्य सदस्य की आत्मा की शांति हेतु तथा समाज-हित में वह सबकुछ कर रहा है और करना चाहता है, जिससे संबद्ध संस्थागत व्यवस्थाएँ, सरकारें और न्यायपालिका इस प्रकार की अमानवीय कर्तव्यहीनता पर अंकुश लगा सके। इस पुस्तक से उम्मीद है कि अस्पतालों तथा डॉक्टरों की असावधानी और लालच के पूर्ण उन्मूलन के कार्य को गति मिलेगी।

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अनुक्रम

प्राक्कथन — Pgs. 5

1. शीला के साथ वैवाहिक जीवन और — Pgs. परिवार का संक्षिप्त विवरण — Pgs. 11

2. शीला के स्तन कैंसर का निदान एवं उपचार — Pgs. 19

3. डॉक्टरी लापरवाही के दुष्प्रभावों का आरंभ — Pgs. 26

4. मानव जनित रोग एवं गहराते दुःख का दौर — Pgs. 34

5. लापरवाह अस्पताल तथा उसके डॉक्टरों के विरुद्ध — Pgs. कानूनी काररवाई — Pgs. 51

6. सामान्य एवं अन्य वैकल्पिक उपचार तथा स्वास्थ्य क्षेत्र के अनाचार/कदाचार — Pgs. 65

7. शीला की देखभाल में पारिवारिक परिचारक तथा नर्सिंगमेड्स/आया की भूमिका — Pgs. 74

8. डिमेंशिया के रोगियों की देखभाल/सेवा सुश्रूषा — Pgs. 81

9. स्मृतियाँ — Pgs. 95

परिशिष्ट 1 : न्यायालय का निर्णय — Pgs. 103

परिशिष्ट 2 : समाचार-पत्रों से कतरनें — Pgs. 126

 

The Author

Ravindranath Srivastava

पस्तक में एक मध्यमवर्गीय भारतीय परिवार की गृह-स्वामिनी श्रीमती शीला श्रीवास्तव के स्तन कैंसर के उपचार में घोर चिकित्सीय लापरवाही से उत्पन्न दुरूह स्थिति एवं उनके पति, संतानों तथा अन्य परिवारजनों के कटु तथा खट्टे-मीठे अनुभवों का समावेश है।
चिकित्सीस  लापरवाही  के परिणाम-स्वरूप श्रीमती शीला श्रीवास्तव के मस्तिष्क, छाती और हड्डियों को अपूरणीय क्षति पहुँची। वह मानसिक तथा शारीरिक रूप से अपंग हो गईं। परिवार के पास साधन रहते हुए भी अपने परिवार की सबसे महत्त्वपूर्ण सदस्य को कुछ भी राहत न दे सके, क्योंकि इस लापरवाही से उत्पन्न रोगों का कोई उपचार विश्व
की किसी चिकित्सा पद्धति में उपलब्ध नहीं है।
श्रीमती शीला श्रीवास्तव 11 वर्षों की घोर यातना के बाद 4 नवंबर, 2013 को परलोक सिधार गईं। परिवार अपने अमूल्य सदस्य की आत्मा की शांति हेतु तथा समाज-हित में वह सबकुछ कर रहा है और करना चाहता है, जिससे संबद्ध संस्थागत व्यवस्थाएँ, सरकारें और न्यायपालिका इस प्रकार की अमानवीय कर्तव्यहीनता पर अंकुश लगा सके। इस पुस्तक से उम्मीद है कि अस्पतालों तथा डॉक्टरों की असावधानी और लालच के पूर्ण उन्मूलन के कार्य को गति मिलेगी।

स्तक में एक मध्यमवर्गीय भारतीय परिवार की गृह-स्वामिनी श्रीमती शीला श्रीवास्तव के स्तन कैंसर के उपचार में घोर चिकित्सीय लापरवाही से उत्पन्न दुरूह स्थिति एवं उनके पति, संतानों तथा अन्य परिवारजनों के कटु तथा खट्टे-मीठे अनुभवों का समावेश है।
चिकित्सीस  लापरवाही  के परिणाम-स्वरूप श्रीमती शीला श्रीवास्तव के मस्तिष्क, छाती और हड्डियों को अपूरणीय क्षति पहुँची। वह मानसिक तथा शारीरिक रूप से अपंग हो गईं। परिवार के पास साधन रहते हुए भी अपने परिवार की सबसे महत्त्वपूर्ण सदस्य को कुछ भी राहत न दे सके, क्योंकि इस लापरवाही से उत्पन्न रोगों का कोई उपचार विश्व
की किसी चिकित्सा पद्धति में उपलब्ध नहीं है।
श्रीमती शीला श्रीवास्तव 11 वर्षों की घोर यातना के बाद 4 नवंबर, 2013 को परलोक सिधार गईं। परिवार अपने अमूल्य सदस्य की आत्मा की शांति हेतु तथा समाज-हित में वह सबकुछ कर रहा है और करना चाहता है, जिससे संबद्ध संस्थागत व्यवस्थाएँ, सरकारें और न्यायपालिका इस प्रकार की अमानवीय कर्तव्यहीनता पर अंकुश लगा सके। इस पुस्तक से उम्मीद है कि अस्पतालों तथा डॉक्टरों की असावधानी और लालच के पूर्ण उन्मूलन के कार्य को गति मिलेगी।

 

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