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Bharat Mein Angrezi Raj   

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Author Sundarlal
Features
  • ISBN : 9789386871459
  • Language : Hindi
  • Publisher : Prabhat Prakashan
  • Edition : Ist
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  • Kindle Store

More Information

  • Sundarlal
  • 9789386871459
  • Hindi
  • Prabhat Prakashan
  • Ist
  • 2018
  • 360
  • Hard Cover

Description

भारत के स्वतंत्रता-संग्राम में बौद्धिक प्रेरणा  देने  का  श्रेय  पंडित सुंदरलाल, बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के सह-संस्थापक और प्रथम उप कुलपति और ऑल इंडिया पीस काउंसिल के अध्यक्ष इलाहाबाद के सुप्रसिद्ध वकील जैसे उन कुछ साहसी लेखकों को भी है, जिन्होंने पद या परिणामों की चिंता किए बिना भारतीय स्वाधीनता का इतिहास नए सिरे से लिखा। ‘भारत में अंग्रेजी राज’ में गरम दल और नरम दल दोनों तरह के स्वाधीनता संग्राम योद्धाओं को अदम्य प्रेरणा दी।
सर्वज्ञात है कि 1857 के पहले स्वाधीनता संग्राम को सैनिक विद्रोह कहकर दबाने के बाद अंग्रेजों ने योजनाबद्ध तरीके से हिंदू और मुसलिमों में मतभेद पैदा किया। ‘फूट डालो और राज करो’ की नीति के तहत उन्होंने बंगाल का दो हिस्सों पूर्वी और पश्चिमी में, विभाजन कर दिया। पंडित सुंदरलाल ने इस सांप्रदायिक विद्रोह के पीछे छिपी अंग्रेजों की कूटनीति तक पहुँचने का प्रयास किया। इसके लिए उन्होंने प्रामाणिक दस्तावेजों तथा विश्व इतिहास का गहन अध्ययन किया; उनके सामने भारतीय इतिहास के अनेक अनजाने तथ्य खुलते चले गए। इसके बाद वे तीन साल तक क्रांतिकारी बाबू नित्यानंद चटर्जी के घर पर रहकर दत्तचित्त होकर लेखन और पठन-पाठन में लगे रहे। इसी साधना के फलस्वरूप एक हजार पृष्ठों का ‘भारत में अंग्रेजी राज’ नामक ग्रंथ स्वरूप ले पाया।

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अनुक्रम

दूसरा संस्करण — Pgs. 7

स्वीकृति — Pgs. 9

पुस्तक परिचय — Pgs. 11

आभार — Pgs. 13

लेखक की कठिनाइयाँ — Pgs. 17

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1. भारत में यूरोपियन जातियों का प्रवेश — Pgs. 130

2. सिराजुद्दौला — Pgs. 145

3. मीर जाफर — Pgs. 186

4. मीर कासिम — Pgs. 207

5. फिर मीर जाफर — Pgs. 233

6. मीर जाफर की मृत्यु के बाद — Pgs. 244

7. वॉरेन हेस्टिंग्स — Pgs. 254

8. पहला मराठा युद्ध — Pgs. 266

9. हैदरअली — Pgs. 289

10. सर जॉन मैक्फरसन — Pgs. 319

11. लॉर्ड कॉर्नवालिस — Pgs. 322

12. सर जॉन शोर — Pgs. 336

13. अंग्रेजों की साम्राज्य पिपासा — Pgs. 349

14. वेल्सली और निजाम — Pgs. 355

The Author

Sundarlal

राय बहादुर सर सुंदरलाल का जन्म 21 मई, 1857 को उत्तराखंड के नैनीताल जिले के जसपुर गाँव में हुआ था। उनका देहांत सन् 1918 में इलाहाबाद—जो उस समय संयुक्त प्रांत के नाम से जाना जाता था, आगरा में अवध ब्रिटिश इंडिया, जिसे अभी उत्तर प्रदेश के नाम से जाना जाता है—में हुआ। उन्होंने सन् 1896 में इलाहाबाद हाई कोर्ट में वकालत की प्रैक्टिस शुरू की थी; सन् 1905 में उन्हें रायबहादुर की उपाधि से सम्मानित किया था। सन् 1906 में वे इलाहाबाद विश्वविद्यालय के प्रथम उप कुलपति और सन् 1916 में बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के उप कुलपति हुए। 21 फरवरी, 1917 को उन्हें ‘नाइटहुड’ की उपाधि मिली।

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