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Baharon Ko Awaz Deta Nahin Hoon   

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Author Dinesh Mishra
Features
  • ISBN : 9789387968127
  • Language : Hindi
  • Publisher : Prabhat Prakashan
  • Edition : Ist
  • ...more

More Information

  • Dinesh Mishra
  • 9789387968127
  • Hindi
  • Prabhat Prakashan
  • Ist
  • 2018
  • 136
  • Hard Cover

Description

बहारों को आना हो, ख़ुद ही वो आएँ
बहारों को आवाज़ देता नहीं हूँ 
नज़ारे नज़र में बसें उनकी मर्ज़ी 
नज़ारों को आवाज़ देता नहीं हूँ

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अनुक्रम

परिचय —Pgs.  5

1. बहारों को आवाज़ देता नहीं हूँ — Pgs. 11

2. ओम जय गुरुदेव हरे — Pgs. 12

3. यूँ ही ज़रा बात होने दो  — Pgs. 13

4. गीत मेरे कहीं खो गए हैं — Pgs. 14

5. देश मेरा परेशान है — Pgs. 15

6. आओ कुछ राहत दें — Pgs. 17

7. जीवन की कादंबरी — Pgs. 18

8. क्या सुनना है?  — Pgs. 19

9. मैं अँधेरे के पहरुओं से उलझता — Pgs. 22

10. बंजारा मन  — Pgs. 24

11. ऐ मेरे परेशान दोस्त  — Pgs. 26

12. और एक शाम हो चली  — Pgs. 30

13. शब्द अब कितने सयाने हो गए हैं — Pgs. 31

14. महाभारत — Pgs. 32

15. सुपर बाज़ार — Pgs. 35

16. गीत  — Pgs. 41

17. शिक्षक दिवस पर  — Pgs. 42

18. ग़ालिब शताब्दी पर  — Pgs. 44

19. अगर जो हम न हुए — Pgs. 47

20. ग़ज़ल — Pgs. 48

21. दर्द का बताना क्या — Pgs. 49

22. ये शाम — Pgs. 51

23. बुख़ार देशभक्ति का  — Pgs. 52

24. मैं तो सा’ब क्या कहूँ — Pgs. 54

25. ग़ज़ल — Pgs. 56

26. महावीर का नाम  — Pgs. 57

27. एक पैरोडी  — Pgs. 59

28. हर पल बीता — Pgs. 61

29. दर्द का मौसम बदलता ही नहीं  — Pgs. 62

30. अब न कोई पहले की बात करे  — Pgs. 63

31. अभी रहने दो — Pgs. 65

32. नया सवेरा — Pgs. 66

33. उमस भरा मन  — Pgs. 67

34. ग़ज़ल  — Pgs. 68

35. किशनगढ़ — Pgs. 69

36. राह मुश्किल दूर है मंज़िल मगर  — Pgs. 72

37. करनी दो बातें हैं — Pgs. 73

38. एक ‘लैसन’—पम्फलेट के मुताबिक  — Pgs. 75

39. गांधी जयंती पर — Pgs. 79

40. गांधी जी कहते थे  — Pgs. 82

41. और फिर सवेरा हो गया  — Pgs. 86

42. ‘सिम्फनी’ ये रात की — Pgs. 88

43. मेरे देश — Pgs. 89

44. आखिर कब तक  — Pgs. 90

45. शारदे माँ — Pgs. 91

46. जीवन की संध्या — Pgs. 92

47. पानी को तरसते लोग — Pgs. 93

48. अच्छी ख़बर है सुनो — Pgs. 94

49. जीवन — Pgs. 95

50. जिंदगी भटका करेगी  — Pgs. 99

51. चौराहे पर  — Pgs. 101

52. एक सहारा — Pgs. 102

53. उपलब्धियाँ — Pgs. 104

54. गीत — Pgs. 106

55. सांस्कृतिक समानता — Pgs. 107

56. रूठती-सी ज़िंदगी — Pgs. 109

57. नहीं-रे-नहीं — Pgs. 110

58. मुक्तक-1 — Pgs. 111

60. मुक्तक-2 — Pgs. 112

59. बच्‍चों की ज़िद  — Pgs. 113

61. शून्य — Pgs. 115

62. गीत — Pgs. 116

63. विवशता — Pgs. 117

64. मौसम का चलन — Pgs. 119

65. माँ और कविता — Pgs. 123

66. ऐ मेरे देश बता — Pgs. 126

67. सरकसी शेर — Pgs. 128

68. खजुराहो — Pgs. 129

69. रसवंत कहाँ से हो  — Pgs. 130

70. अंतिम प्रार्थना — Pgs. 131

71. मुश्किल — Pgs. 133

72. मेरा गीत — Pgs. 134

73. आशीष — Pgs. 135

The Author

Dinesh Mishra

दिनेश मिश्र का जन्म 26 सितंबर, 1935 को कानपुर में हुआ। 1956 में कानपुर से बी.एस-सी. पूर्ण करने के पश्चात् 1958 में उन्होंने आगरा विश्वविद्यालय से अंग्रेजी में एम.ए. किया।
1959 से 1984 तक गवर्नमेंट कॉलेज राजस्थान में अंग्रेजी साहित्य के प्रोफेसर रहे। 1984 में उन्होंने स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेकर टाइम्स ऑफ इंडिया में कार्यभार सँभाला तथा 1996 तक चीफ मैनेजर के पद पर रहे।
1996 से 2002 तक वे एक लोकप्रिय एवं बहुचर्चित प्रकाशन संस्थान एवं साहित्यिक संस्था—भारतीय ज्ञानपीठ के निदेशक पद पर रहे। इस दौरान उन्होंने भारतीय ज्ञानपीठ के माध्यम से भारतीय भाषाओं के क्षेत्रीय साहित्य को प्रोत्साहित करने में अहम भूमिका निभाई। इसके उपरांत उन्होंने 2002-2005 तक बाल साहित्य के क्षेत्र में उत्कृष्टता को बढ़ावा देने के लिए समर्पित संस्था ‘वात्सल्य’ के निदेशक के पद पर कार्यभार सँभाला।
दिनेशजी अनेक साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्थाओं से संबद्ध रहे। जिनमें प्रेसीडेंट ढ्ढहृस््न, प्रेसीडेंट नागरिक महासंघ, नोएडा, उपाध्यक्ष-वेव्स, सचिव-वेद संस्थान, ट्रस्टी सूर्या संस्थान, कार्यकारी प्रेसीडेंट, राजस्थान मंच, नई दिल्ली इत्यादि प्रमुख हैं।
दिनेश मिश्र अंग्रेजी और हिंदी भाषा में कविता लेखन, हास्य-व्यंग्य एवं आलोचना बड़ी निपुणता के साथ करने में सिद्धहस्त थे। उन्होंने नेशनल बुक ट्रस्ट के लिए कई किताबों का अनुवाद अंग्रेजी से हिंदी में किया। 
उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि नए लेखकों को प्रोत्साहन देना था। वे दूरदर्शन तथा ऑल इंडिया रेडियो पर भी कई चर्चाओं, विचार-विमर्श और कविता-पाठ में सम्मिलित हुए। उनकी विभिन्न साहित्यिक, सांस्कृतिक और सामाजिक सेमिनारों में भी सक्रिय भूमिका रहती थी।

 

 

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