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Pt. Deendayalji : Prerak Vichar   

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Author Dr. Ravindra Agarwal
Features
  • ISBN : 9789386871305
  • Language : Hindi
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  • Kindle Store

More Information

  • Dr. Ravindra Agarwal
  • 9789386871305
  • Hindi
  • Prabhat Prakashan
  • 2018
  • 152
  • Hard Cover

Description

महात्मा गांधी ने भारत की राजनीतिक स्वतंत्रता के संघर्ष के साथ ही देश की सामाजिक स्वतंत्रता और आर्थिक स्वतंत्रता पर गहन चिंतन और मनन प्रारंभ कर दिया था। इस संबंध में उन्होंने अपने आश्रमों में निरंतर प्रयोग किए और उनके परिणामों के आधार पर जन-सामान्य को इन्हें अपनाने के लिए प्रेरित किया। उनके सब प्रयोग स्वदेशी संसाधनों व तकनीक पर आधारित थे। उनका मानना था कि स्वदेशी के बल पर ही देश का जनमानस आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर हो सकता है। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद सरकार से यह अपेक्षा थी कि वह सामाजिक व आर्थिक स्वतंत्रता के लिए गांधीजी के विचारों को केंद्र में रखकर अपनी नीतियाँ बनाएगी। परंतु दुर्भाग्य से ऐसा हो न सका। स्वतंत्रता के बाद इस विषय पर पं. दीनदयाल उपाध्याय ने गहन चिंतन व मनन कर ‘एकात्म मानववाद’ का कालजयी आर्थिक दर्शन दिया। उन्होंने समय-समय पर देश के सम्मुख उपस्थित सामाजिक, राजनीतिक व विदेश नीति संबंधी विषयों पर भी अपने विचार व्यक्त किए। उनके इन विचारों को सूत्र रूप में संकलित कर ‘पं. दीनदयालजी : प्रेरक विचार’ पुस्तक में प्रस्तुत किया गया है।

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अनुक्रम

भूमिका—5

लेखकीय—7

पं. दीनदयालजी : प्रेरक विचार

1. आर्थिक—13

 1.1 अर्थायाम—14

2. कृषि—15

3. उद्योग—19

4. स्वदेशी—22

5. अर्थ विकृति से अर्थ संस्कृति की ओर—29

6. लोक सा-राज सा का समन्वय—35

7. लोकमत परिष्कार—40

7.1—लोकतंत्र—47

7.2 लोकतंत्र के आधार-सूत्र चुनाव में उपयुत प्रत्याशी—48

8. सामाजिक—54

9. चिति एवं विराट्—55

10. समष्टि और व्यष्टि में समरसता, सामाजिक समरसता—60

11. राष्ट्रवाद की संकल्पना—71

11.1 राष्ट्र और राज्य—79

12. सेयूलर...अर्थ व अनर्थ—86

12.1 धर्म राज्य—91

13. समाजवाद का निषेध—93

14. पूँजीवाद का निषेध—96

15. आर्थिक लोकतंत्र—99

16. पश्चिमी विश्व-दृष्टि और भारतीय विश्व-दृष्टि—101

16.1 भारतीय सांस्कृतिक अधिष्ठान—111

17. देशानुकूल और युगानुकूल—111

18. व्यति की संकल्पना—113

19. विकल्प की खोज—118

20. विविधता में एकता—119

21. पर्यावरण प्रेमी, रोजगार सृजनकारी टेनोलॉजी—121

22. सर्वे भवन्तु सुखिन:—122

23. सीमित, संयमित, सदाचारी जीवनशैली—123

24. अर्थ-व्यवस्था का आधार प्रतियोगिता नहीं, सहयोग—125

25. विश्व बाजार नहीं विश्व परिवार कुटुंब बनाम सहकारिता—127

26. हर पेट में रोटी, हर हाथ को काम, हर खेत में पानी—128

27. पं. दीन दयालजी की नियोजन दृष्टि—विकास की दृष्टि—131

28. शिक्षा—139

28.1 भाषा—140

29. प्रतिरक्षा नीति—142

30. वैश्विक नीति—पड़ोसी देश—142

30.1 पाकिस्तान—144

30.2 चीन/अमेरिका—148

30.3 रूस/ गुटनिरपेक्षता—150

संदर्भ ग्रंथ—152

The Author

Dr. Ravindra Agarwal

डॉ. रवींद्र अग्रवाल 1980 से सक्रिय पत्रकार हैं। बहुभाषी संवाद समिति ‘हिंदुस्थान समाचार’ से पत्रकारिता जीवन की शुरुआत कर अमर उजाला, राष्ट्रीय सहारा, दैनिक जागरण आदि में महत्त्वपूर्ण संपादकीय दायित्वों का निर्वाह किया। खेती व किसानों को समर्पित पत्रिका ‘कृषि मंगल’ के संस्थापक संपादक रहे। ‘हरियाणा संवाद’ व ‘कृषि संवाद’ के सलाहकार संपादक रहे। संप्रति त्रैमासिक पत्रिका ‘मंगल विमर्श’ के संयुक्त संपादक हैं और कृषि व आर्थिक विषयों पर ‘लोकसभा टी.वी.’ पर चर्चा में भाग लेते हैं। विभिन्न सामाजिक व आर्थिक विषयों पर विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में आलेख प्रकाशित।
मेरठ विश्वविद्यालय से 1973 में हिंदी में एम.ए. किया और 1981 में ‘ब्रजभाषा के रीतिकालीन ऐतिहासिक चरित काव्य’ विषय पर पी-एच.डी. की उपाधि प्राप्त की। दैनिक ‘राष्ट्रीय सहारा’ में 1993 में नई आर्थिक नीतियों के संदर्भ में ‘भारत गुलामी की ओर’ विशेष आलेख शृंखला का संयोजन किया। उदारीकरण की नीतियों के संदर्भ में दो पुस्तिकाएँ लिखीं— ‘साम्राज्यवादी शिकंजा’ व ‘बचत संस्कृति बनाम उपभोक्तावाद’। बंसीलाल लाइफ ऐंड टाइम का हिंदी में एवं इनोवेशन इन एडमिनिस्टे्रशन—भरत मीणा, आई.ए.एस. का हिंदी में अनुवाद। वर्ष 2003 में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने नचिकेता प्र्रतिष्ठान द्वारा स्थापित ‘रामस्वरूप सम्मान’ प्रदान किया।

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