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Author Bhikkhu
Features
  • ISBN : 9788185829562
  • Language : Hindi
  • Publisher : Prabhat Prakashan
  • Edition : 1st
  • ...more

More Information

  • Bhikkhu
  • 9788185829562
  • Hindi
  • Prabhat Prakashan
  • 1st
  • 2016
  • 232
  • Hard Cover

Description

मैं समाज सेविका बनी थी; पर इसलिए नहीं कि मुझे समाज के उत्‍‍थान की चिंता थी । इसलिए भी नहीं मैं शोषितों, पीड़‌ितों और अभावग्रस्त लोगों का मसीहा बनाना चाहती थी । यह सब नाटक रूप मे हा प्रारंभ हुआ था । मेरे पीछे एक डायरेक्टर था स्टेज का । वही प्रांप्टर भी था । उसीके बोले डायलॉग मैं बोलती । उसीकी दी हुई भूमिका मैं निभाती । उसीका बनाया हुआ चरित्र करती थी मैं । कुछ सुविधाओं, कुछ महत्त्वाकांक्षाओं की पूर्ति के लिए मैंने यह भूमिका स्वीकार की थी । फिर अभिनय करते-करते मैं कोई पात्र नहीं रह गई थी । मेरा और उस पात्र का अंतर मिट चुका था । अब सचमुच ही अभावग्रस्तों की पीड़ा मेरी निजी पीड़ा बन चुकी है । और मेरा यह परिवर्तन ही मेरे डायरेक्टर को नहीं सुहाता । '
' पर यह डायरेक्टर है कौन?'
' मेरे गुरु, राजनीतिक गुरु!'
- इसी उपन्यास से
' त्रिया चरित्रं पुरुषस्य भाग्यं ' की तोता रटंत करनेवाले समाज ने क्या कभी पुरुष- चरित्र का खुली आँखों विश्‍लेषण किया है? किया होता तो तंदूर कांड होते? अपनी पत्‍नी की हत्या करके मगरमच्छों के आगे डालना तथा न्याय के मंदिर में असहाय और शरणागत अबला से कानून के रक्षक द्वारा बलात्कार करना पुरुष-चरित्र के किस धवल पक्ष को प्रदर्शित करता है?
स्त्री-जीवन के समग्र पक्ष को जिस नूतन दृष्‍ट‌ि से भिक्‍खुजी ने ' कदाचित् ' के माध्यम से उकेरा है, उस दृष्‍ट‌ि से शायद ही किसी लेखक ने उकेरा हो । शिल्प, भाषा और शैली की दृष्‍ट‌ि से भी अन्यतम कृति है ' कदाचित् ' ।

The Author

Bhikkhu

कथा-साहित्य के विरल हस्ताक्षर कृष्णचंद्र शर्मा ' भिक्‍‍खु ' साहित्यिक जगत् में अपने साहित्यिक नाम ' भिक्‍‍खु ' से ही अधिक ख्यात हैं । आपने काशी हिंदू विश्‍वविद्यालय, वाराणसी से उच्च शिक्षा प्राप्‍त की । सन् 1940 से लेखन में प्रवृत्त हुए । तभी से सरस्वती, माधुरी, चाँद, विशाल भारत, ज्ञानोदय सदृश साहित्यिकों द्वारा समादृत पत्रिकाओं में प्रमुखता से छपते रहे हैं ।
आप किसी वाद, कालखंड और अंचल से बँधकर नहीं चले । आपके उपन्यासों का कथापट असाधारण रूप से वैविध्यपूर्ण और विस्तृत है । आप पूर्व में आकाशवाणी के महानिदेशक भी रह चुके हैं । संप्रति आप पूर्णकालिक लेखक के रूप में साधनारत हैं । आपकी रचनाओं में भाषा का प्रवाह पाठकों को विशेष रूप से आकृष्‍ट करता रहा है । आपकी रचनाओं में-फ्रांसिसी रक्‍त क्रांति पर आधारित ' मौत की सराय ', नगालैंड और नगा जातियों पर आधारित ' रक्‍त यात्रा ', पुर्तगाली उपनिवेश के कालवृत्त में गोआ के कैथोलिक समाज पर आधारित ' अस्तंगता ', बुद्ध के जीवन और काल से प्रेरित ' महाश्रमण सुनें ' प्रमुख रही हैं । इनके अलावा ' नागफनी ' ' खेती '; और ' चंदन - वन की आग ' ' कदाचित् ' प्रभृति उन्नीस उपन्यासों, तीन कहानी संग्रहों एवं अंबपाली और उसके युग को रूपायित करनेवाला नाटक ' रूपलक्ष्मी ' तथा शताधिक कहानियों का सृजन आपकी उपलब्धि रही है ।

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