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Anandmath (Hindi)

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Author Bankim Chandra Chatterjee
Features
  • ISBN : 9788192850894
  • Language : Hindi
  • Publisher : Prabhat Prakashan
  • Edition : 1st
  • ...more
  • Kindle Store

More Information

  • Bankim Chandra Chatterjee
  • 9788192850894
  • Hindi
  • Prabhat Prakashan
  • 1st
  • 2018
  • 144
  • Hard Cover
  • 290 Grams

Description

जीवानंद ने महेंद्र को सामने देखकर कहा, ‘‘बस, आज अंतिम दिन है। आओ, यहीं मरें।’’महेंद्र ने कहा, ‘‘मरने से यदि रण-व‌िजय हो तो कोई हर्ज नहीं, किंतु व्यर्थ प्राण गँवाने से क्या मतलब? व्यर्थ मृत्यु वीर-धर्म नहीं है।’’जीवानंद- ‘‘मैं व्यर्थ ही मरूँगा, लेकिन युद्ध करके मरूँगा।’’कहकर जीवानंद ने पीछे पलटकर कहा, ‘‘भाइयो! भगवान् के नाम पर बोलो, कौन मरने को तैयार है?’’अनेक संतान आगे आ गए। जीवानंद ने कहा, ‘‘यों नहीं, भगवान् की शपथ लो कि जीवित न लौटेंगे।’’—इसी पुस्तक से‘आनंद मठ’ बँगला के सुप्रसिद्ध लेखक बंकिमचंद्र चटर्जी की अनुपम कृति है। स्वतंत्रता संग्राम के दौर में इसे स्वतंत्रता सेनानियों की ‘गीता’ कहा जाता था। इसके ‘वंदे मातरम्’ गीत ने भारतीयों में स्वाधीनता की अलख जगाई, जिसको गाते हुए हजारों रणबाँकुरों ने लाठी-गोलियाँ खाइऔ और फाँसी के फंदों पर झूल गए। देशभक्‍ति का जज्बा पैदा करनेवाला अत्यंत रोमांचक, हृदयस्पर्शी व मार्मिक उपन्यास।

The Author

Bankim Chandra Chatterjee

बंकिमचंद्र चटर्जी का जन्म 26 जून, 1838 को एक समृद्ध बंगाली परिवार में हुआ था। उनकी शिक्षा हुगली और प्रेसीडेंसी कॉलेज में हुई। सन् 1857 में उन्होंने बी.ए. पास किया और 1869 में कानून की डिग्री हासिल की। इसके बाद उन्होंने सरकारी नौकरी कर ली और सन् 1891 में सरकारी सेवा से रिटायर हुए।
‘आनंद मठ’ (1882) राजनीतिक उपन्यास है। उनके अन्य उपन्यासों में ‘दुर्गेशनंदिनी’, ‘मृणालिनी’, ‘इंदिरा’, ‘राधारानी’, ‘कृष्णकांतेर दफ्तर’, ‘देवी चौधरानी’ और ‘मोचीराम गौरेर जीवनचरित’ प्रमुख हैं। उनकी कविताएँ ‘ललिता और मानस’ नामक संग्रह में प्रकाशित हुईं। उन्होंने धर्म, सामाजिक और समसामयिक मुद‍्दों पर आधारित कई निबंध लिखे। उनके उपन्यासों का भारत की लगभग सभी भाषाओं में अनुवाद हुआ है। बँगला में सिर्फ बंकिम और शरतचंद्र चट्टोपाध्याय को यह गौरव हासिल है कि उनकी रचनाएँ हिंदी सहित सभी भारतीय भाषाओं में आज भी बड़े चाव से पढ़ी जाती हैं।
उनका निधन अप्रैल 1894 में हुआ।

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