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Emergency ka Kahar aur Censor ka Zahar   

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Author Balbir Dutt
Features
  • ISBN : 9789352666225
  • Language : Hindi
  • Publisher : Prabhat Prakashan
  • Edition : 1
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More Information

  • Balbir Dutt
  • 9789352666225
  • Hindi
  • Prabhat Prakashan
  • 1
  • 2020
  • 472
  • Hard Cover

Description

इस पुस्तक के पृष्ठों में आपातस्थिति के अँधेरे में किए गए काले कारनामों और करतूतों का विवरण दिया गया है। हमारे देश के इतिहास में आपातकाल एक ऐसा कालखंड है, जिसकी कालिख काल की धार से भी धुलकर साफ नहीं हुई है। इस दौरान विपक्ष के प्रायः सभी प्रमुख नेताओं और हजारों नागरिकों को बिना मुकदमा चलाए जेल में डाल दिया गया था। इनमें करीब 250 पत्रकार भी थे। लोगों को अनेक ज्यादतियों और पुलिस जुल्म का सामना करना पड़ा था। अखबारों के समाचारों पर कठोर सेंसर लगा दिया गया था। यह इमरजेंसी का ब्रह्मास्त्र साबित हुआ। जो काम अंग्रेजों ने नहीं किया था, वह इंदिरा गांधी की सरकार ने कर दिखाया।
विडंबना यह कि करीब साढ़े चार दशक बाद आज की पीढ़ी को यह भरोसा नहीं हो पा रहा है कि लोकतांत्रिक भारत में जनता की आजादी के विरुद्ध ऐसा भी तख्तापलट हुआ, जिसका विरोध-प्रतिरोध करने वालों को इसे ‘आजादी की दूसरी लड़ाई’ की संज्ञा देनी पड़ी।
आपातकाल का काला अध्याय एक ऐसा विषय है, जिसपर देश-विभाजन की तरह अनेक पुस्तकें आनी चाहिए। स्वतंत्र राजनीतिक विश्लेषकों की दृष्टि में यह स्वतंत्र भारत की सबसे महत्त्वपूर्ण घटना है। लोकशक्ति द्वारा लोकतंत्र को फिर पटरी पर ले आने की कहानी उन सबके लिए खास तौर पर पठनीय है, जिनका जन्म उस घटनाक्रम के बाद हुआ। 
प्लेटो के विश्व प्रसिद्ध ‘रिपब्लिक’ ग्रंथ पर जो विशद विवेचन है उससे स्पष्ट है कि गणतंत्र को सबसे बड़ा खतरा भीतर से है, बाहर से नहीं। गणतंत्र सदैव अपने ही संक्रमण से पतित होता है।

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अनुक्रम

घटनाक्रम का रोजनामचा (1971-80) —Pgs. 7

प्रस्तावना : जब लोकतंत्र का ‘स्विच ऑफ’ कर दिया गया —Pgs. 13

खंड-1

1. स्वतंत्र भारत में तीन इमरजेंसियाँ : दो असली, एक नकली —Pgs. 29

2. ‘गूँगी गुडि़या’ बन गई दहाड़ती हुई शेरनी —Pgs. 38

3. ‘वे कहते हैं इंदिरा हटाओ, मैं कहती हूँ गरीबी हटाओ’ —Pgs. 50

4. सत्ता का अहंकार, जे.पी. पर खुला प्रहार —Pgs. 60

5. जस्टिस सिन्हा को लुभाने-धमकाने की कोशिश नाकाम —Pgs. 75

6. ‘इंदिरा गांधी की रैली दुनिया में सबसे बड़ी’?  —Pgs. 78

7. आपातकाल का मूलाधार : असत्यमेव जयते! —Pgs. 85

8. क्या जे.पी. ने सुरक्षाबलों को बगावत के लिए उकसाया था? —Pgs. 92

9. बिजली काट दो, मशीन रोक दो, बंडल छीन लो! —Pgs. 104

10. तुरंत गिरफ्तार करो, कोई बचने न पाए —Pgs. 108

11. इमरजेंसी के काले कारनामे : 250 पत्रकारों की गिरफ्तारी का रहस्योद्घाटन —Pgs. 112

12. इमरजेंसी में रुकवा दिया ‘इमरजेंसी ऑपरेशन’! —Pgs. 115

13. मकान-दुकान गिराओ, गंदी बस्तियाँ हटाओ, गोली चलाओ! —Pgs. 118

14. ‘बहनजी, आपकी खड़ाऊँ से 20 साल तक राज चलेगा’ —Pgs. 123

15. ‘20 भुजाओं वाली दुर्गे इंदिरे तेरी जय हो’ —Pgs. 127

16. भारत में आपातकाल : विदेशों में सवाल और बवाल —Pgs. 133

17. किशोर कुमार के गानों पर रोक : सरकार की पिटी भद्द —Pgs. 142

18. सुब्रह्मण्यम स्वामी का जंतर-मंतर-तंतर और छूमंतर! —Pgs. 147

19. क्या संसद् संविधान से भी ऊपर है? —Pgs. 151

20. ‘खामोश...इमरजेंसी जारी है, हँसना मना है...’ —Pgs. 157

21. गुप्त साहित्य व आंदोलन ने उड़ाई सरकार की नींद —Pgs. 160

22. विनोबा को गांधी का उत्तराधिकारी कहलाने का अधिकार नहीं —Pgs. 166

23. इंदिरा की रिहाई के लिए विमान अपहरण का खतरनाक खेल  —Pgs. 169

24. चिराग, जो आपातकाल में गुल हो गए —Pgs. 178

25. सुन-सुन-सुन : इस इमरजेंसी में बड़े-बड़े गुण! —Pgs. 181

26. इंदिरा का 20 सूत्री कार्यक्रम : ‘आधुनिक श्रीमद्भगवद्गीता’! —Pgs. 188

27. राजसत्ता के गलियारे, ज्योतिषियों-तांत्रिकों के वारे-न्यारे —Pgs. 193

28. लोकतंत्र की द्रौपदी का चीरहरण और कांग्रेस के भीष्म व द्रोण —Pgs. 205

खंड-2

29. भारतीय प्रेस : आपातकाले भयभीत बुद्धि —Pgs. 213

30. नहीं छापें, नहीं छापें, नहीं छापें, तो फिर क्या छापें? —Pgs. 217

31. प्रेस सेंसरशिप के कट्टर विरोधी थे जवाहरलाल नेहरू —Pgs. 223

खंड-3

32. लोकसभा चुनाव की घोषणा से विपक्ष चकित —Pgs. 231

33. ‘गजब हो गया, बहुत बुरी खबर है, फौरन राष्ट्रपति भवन आ जाइए’ —Pgs. 237

34. जानती हूँ ज्यादतियाँ भी हुई हैं... 241

35. ‘सिंहासन खाली करो कि जनता आती है’ —Pgs. 244

36. मार्शल लॉ लगाने की अफवाह से देश में खलबली —Pgs. 250

खंड-4

37. कार्यवाहक राष्ट्रपति को मोरारजी की धमकी रंग लाई —Pgs. 259

38. ‘चाचा’ जयप्रकाश को ‘भतीजी’ इंदु का नमस्कार —Pgs. 263

39. शाह आयोग को मिला 50,000 शिकायतों का पुलिंदा —Pgs. 270

40. नारायणदत्त तिवारी की गवाही से आयोग में ठहाके —Pgs. 276

41. संजय गांधी, यानी ‘भारत सरकार का बेटा’ —Pgs. 278

42. शाह आयोग और इंदिरा गांधी की ‘मैं न मानूँ’! —Pgs. 285

43. ‘एक शेरनी सौ लंगूर, चिकमंगलूर, चिकमंगलूर’ —Pgs. 289

44. इंदिरा का साक्षात्कार : भारत पर राज, मेरा अधिकार! —Pgs. 294

45. संजीव रेड्डी ने बोए संवैधानिक विवाद के बीज —Pgs. 298

46. चरण सिंह-यस, जगजीवन राम-नो : राष्ट्रपति संजीव रेड्डी का खेल —Pgs. 303

47. ‘चरण सिंह ने इंदिरा को राजनीतिक पुनर्जन्म दिया’  —Pgs. 307

48. इंदिरा गांधी की जीत : जनता पार्टी का तोहफा! —Pgs. 309

49. शाह आयोग की रिपोर्ट पंचतत्त्व में विलीन —Pgs. 313

50. किस्सा कुरसी का : किस्सा फिल्म के दाह-संस्कार का —Pgs. 318

51. इंदिरा गांधी की वापसी में प्रेस का महत्त्वपूर्ण योगदान —Pgs. 323

52. जस्टिस भगवती की इंदिरा-स्तुति से बवंडर —Pgs. 330

खंड-5

53. देश के नाम इंदिरा गांधी का संदेश —Pgs. 337

54. राष्ट्र के नाम इंदिरा गांधी का दूसरा प्रसारण —Pgs. 339

55. प्रधानमंत्री का 20 सूत्री आर्थिक कार्यक्रम —Pgs. 345

56. इंदिरा के नाम जे.पी. का पत्र —Pgs. 347

57. इमरजेंसी के रोचक प्रसंग, विचित्र प्रसंग —Pgs. 350

58. झकझोर देनेवाले लुभावने नारे —Pgs. 363

59. ...ताकि सनद रहे  —Pgs. 366

खंड-6

60. रायबरेली में मेरे अनुभव और उसके बाद —Pgs. 377

61. इनसे मिलिए, ये हैं जस्टिस सिन्हा —Pgs. 381

62. चंद्रशेखर : देखना, किसी भी दिन मैडम मुझे जेल में बंद कर देंगी —Pgs. 384

63. षड्यंत्र विपक्ष ने नहीं इंदिरा गांधी ने रचा : छागला —Pgs. 389

64. लेखक की कहानी, लेखक की जुबानी —Pgs. 401

65. राष्ट्रपतिजी, ‘आप जहर खा सकते थे’ —Pgs. 404

66. सेंसर अधिकारी ने प्रधानमंत्री के भाषण को भी छापने से मना किया! —Pgs. 406

67. विद्याचरण शुक्ल के गृहनगर में आपातकाल के काले दिन —Pgs. 410

68. आपातकाल का फरारी जीवन जेलयात्रा से अधिक कठिन —Pgs. 417

69. इमरजेंसी : कभी न भूलनेवाले दिन —Pgs. 422

70. अगर इंदिरा गांधी इस्तीफा दे देतीं तो... 424

71. इंदिरा गांधी का उत्थान-पतन विधि का विधान था? —Pgs. 428

72. रोटी और आजादी, दोनों चाहिए —Pgs. 432

73. इमरजेंसी के चार गुनहगार, जिनके पास थे सर्वोच्च अधिकार —Pgs. 434

74. संजय ने अफसरों को कठपुतलियाँ बनाकर रख दिया था —Pgs. 437

75. यदि हिटलर एक हिंदुस्तानी होता —Pgs. 440

76. इमरजेंसी प्रावधान : जनतंत्र के लिए खतरा —Pgs. 443

77. ‘विश्वासघाती’ संजीव रेड्डी इंदिरा के सबसे बड़े ‘तुरुप’ —Pgs. 447

78. सुप्रीम कोर्ट की स्वतंत्रता पर शर्मनाक प्रहार —Pgs. 450

79. इंदिरा गांधी थीं चालबाज, चरण सिंह मूर्ख : मोरारजी  —Pgs. 453

खंड-7

80. कह ‘कैदी कविराय’ —Pgs. 459

81. एक थी रानी —Pgs. 462

खंड-8

82. प्रेस के दमन की तालिका —Pgs. 467

आभार ज्ञापन —Pgs. 472

The Author

Balbir Dutt

लेखक-पत्रकार बलबीर दत्त का जन्म अविभाजित भारत के पंजाब प्रांत के रावलपिंडी नगर में हुआ। इनकी शिक्षा-दीक्षा रावलपिंडी, देहरादून, अंबाला छावनी और राँची में हुई। 1963 में राँची एक्सप्रेस के संस्थापक संपादक बने। साप्ताहिक पत्र जय मातृभूमि के प्रबंध संपादक, अंग्रेजी साप्ताहिक न्यू रिपब्लिक के स्तंभकार, दैनिक मदरलैंड के छोटानागपुर संवाददाता, आर्थिक दैनिक फाइनैंशियल एक्सप्रेस के बिहार न्यूजलेटर के स्तंभ-लेखक रहे। करीब 9000 संपादकीय लेखों, निबंधों और टिप्पणियों का प्रकाशन हो चुका है।
ये साउथ एशिया फ्री मीडिया एसोसिएशन, एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया व नेशनल यूनियन ऑफ जर्नलिस्ट्स के सदस्य हैं। अखिल भारतीय साहित्य परिषद् की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य रहे। राँची विश्वविद्यालय के पत्रकारिता व जनसंपर्क विभाग में 26 वर्षों तक स्थायी सलाहकार व अतिथि व्याख्याता रहे।
बहुचर्चित पुस्तकें ‘कहानी झारखंड आंदोलन की’, ‘सफरनामा पाकिस्तान’ और ‘जयपाल सिंह: एक रोमांचक अनकही कहानी’। कई अन्य पुस्तकें प्रकाशनाधीन। पत्रकारिता के सिलसिले में अनेक देशों की यात्राएँ।
‘पद्मश्री सम्मान’, ‘राष्ट्रीय पत्रकारिता पुरस्कार’, ‘पत्रकारिता शिखर सम्मान’, ‘लाइफ टाइम एचीवमेंट अवार्ड’ (झारखंड सरकार), ‘झारखंड गौरव सम्मान’, ‘महानायक  शारदा सम्मान’ आदि कई पुरस्कार प्राप्त।
संप्रति दैनिक देशप्राण के संस्थापक संपादक।

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