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Kailash Satyarthi

Kailash Satyarthi

Nobel Peace Laureate Kailash Satyarthi is the first Indian-born resident of India to have been conferred with the honour.
After completing his graduation in electrical engineering, Mr. Satyarthi began teaching at a university. However, soon, the desire to work for children who are left-behind, compelled him to quit his job.
The issue of child rights and child labour was not yet a part of the public discourse when Mr. Satyarthi founded the Bachpan Bachao Andolan (BBA) in 1981. The organisation has rescued more than 85,000 children from conditions of exploitative labour and modern-day slavery, and successfully rehabilitated them into society.  
As a global campaigner for child rights, Mr. Satyarthi founded the largest civil society network for the elimination of child labour—the Global March Against Child Labour, a worldwide coalition. He is the Founder of the Global Campaign for Education which works to universalise education. Mr. Satyarthi also initiated the first global social labelling called Rugmark which was successful in reducing child labour in the South Asian carpet industry by 80% within 15 years.
To fulfil his vision of a world free of violence against children, Mr. Satyarthi has established the Kailash Satyarthi Children’s Foundation. The foundation’s mission is to help create and implement child-friendly policies through research, advocacy and campaigns to ensure the holistic development and empowerment of children.

 

मध्य प्रदेश के विदिशा में 11 जनवरी, 1954 को जनमे कैलाश सत्यार्थी भारत में पैदा होनेवाले पहले नोबेल शांति पुरस्कार विजेता हैं। इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में स्नातक की पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने विश्वविद्यालय में अध्यापन कार्य भी किया। लेकिन बचपन के प्रति गहरी करुणा के कारण उन्होंने इंजीनियरिंग की सुविधाजनक नौकरी छोड़कर सन् 1981 से बचपन बचाने की मुहिम शुरू कर दी। देश और दुनिया में बाल दासता जब कोई मुद्दा नहीं था, तब श्री सत्यार्थी ने ‘बचपन बचाओ आंदोलन’ सहित विश्व के लगभग 150 देशों में सक्रिय ‘ग्लोबल मार्च अगेंस्ट चाइल्ड लेबर’ और ‘ग्लोबल कैंपेन फॉर एजुकेशन’ जैसे संगठनों की स्थापना की। वे विश्व में उत्पादों के बालश्रम रहित होने के प्रमाणीकरण व लेबल लगाने की विधि ‘गुडवीव’ के जनक हैं। उन्हें देश के लगभग 85 हजार बच्चों को आधुनिक दासता से मुक्त कराने का ही नहीं, बल्कि बाल दासता तथा शिक्षा को अंतरराष्ट्रीय मुद्दा बनाने का भी श्रेय जाता है। इसके लिए उन पर और उनके परिवार पर अनेक बार प्राणघातक हमले भी हुए हैं।
श्री सत्यार्थी पहले ऐसे भारतीय हैं, जिन्हें नोबेल शांति पुरस्कार के अलावा डिफेंडर फॉर डेमोक्रेसी, इटैलियन सीनेट मेडल, रॉबर्ट एफ. कैनेडी अंतरराष्ट्रीय मानव अधिकार सम्मान, फेड्रिक एबर्ट मानव अधिकार पुरस्कार और हार्वर्ड ह्यूमेनेटेरियन सम्मान जैसे कई विश्व प्रसिद्ध पुरस्कार मिल चुके हैं। संयुक्त राष्ट्र महासभा को संबोधित करने वाले श्री सत्यार्थी को आधुनिक समय में मानव दासता के खिलाफ लड़ाई लड़ने वाले दुनिया के सबसे बड़े योद्धाओं में गिना जाता है।