Prabhat Prakashan, one of the leading publishing houses in India eBooks | Careers | Events | Publish With Us | Dealers | Download Catalogues
Helpline: +91-7827007777

Aadiwasi aur Vikas ka Bhadralok   

₹400

Out of Stock
  We provide FREE Delivery on orders over ₹1500.00
Delivery Usually delivered in 5-6 days.
Author Ashwini Kumar ‘Pankaj’
Features
  • ISBN : 9789353224035
  • Language : Hindi
  • Publisher : Prabhat Prakashan
  • Edition : 1
  • ...more
  • Kindle Store

More Information

  • Ashwini Kumar ‘Pankaj’
  • 9789353224035
  • Hindi
  • Prabhat Prakashan
  • 1
  • 2019
  • 208
  • Hard Cover

Description

प्रभात खबर के अपने कॉलम ‘जंगल गाथा’ में हेरॉल्ड अपनी मृत्यु तक लिखता रहा। उसका आखिरी लेख उसकी मृत्यु के कुछ दिनों बाद छपा। ‘जंगल गाथा’ कॉलम में सामू ने झारखंड आंदोलन के बहाने संपूर्ण आदिवासी विश्व पर लिखा। ऐसा कोई भी आयाम उससे अछूता नहीं रहा, जिस पर उसने विचार-मंथन नहीं किया, कलम नहीं चलाई। चाहे वह फिलीपीन के आदिवासियों का संघर्ष हो या लातीन अमेरिकी आदिवासियों अथवा अमेरिकी रेड इंडियनों की लड़ाइयाँ—उसने देश के सुदूर दक्षिण पाल्लियार आदिम आदिवासियों की कथा लिखी, तो बस्तर और सोनभद्र की कहानियाँ भी लोगों तक पहुँचाईं। झारखंड उसके लेखन के मुख्य केंद्र में था ही। आदिवासी सवालों पर लिखते हुए सामू ने न सिर्फ भारतीय शासक वर्गों की मौजूदा नीतियों, कार्यक्रमों और विकासीय परियोजनाओं पर तीखे प्रहार किए और उनकी अमानवीय-अप्राकृतिक दोहन-मंशा को परत-दर-परत उधेड़ा, बल्कि ऐतिहासिक दृष्टि से उस सांस्कृतिक-दार्शनिक द्वंद्व को भी रखा, जिसे आर्य-अनार्य संघर्ष के रूप में दुनिया जानती है। इस अर्थ में वह हिंदी का पहला आदिवासी सिद्धांतकार है, जिसने आदिवासियत के आलोक में, आदिवासी विश्वदृष्टि के नजरिए से पूँजीलोलुप समाज-सत्ता के दर्शन पर चोट की। उसने बताया कि यह व्यवस्था लुटेरी और हत्यारी है तथा यह आदिवासी क्या, किसी भी आम नागरिक को कोई बुनियादी सुविधा और मौलिक अधिकारों के उपभोग का स्वतंत्र अवसर नहीं देने जा रही, क्योंकि विकास की उनकी अवधारणा उसी नस्लीय, धार्मिक और सांस्कृतिक सोच की देन है, जिसमें आदिवासियों, स्त्रियों, दलितों और समाज के पिछड़े तबकों के लिए कभी कोई जगह नहीं रही है।
—इसी पुस्तक से

 

____________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________

अनुक्रम

कतार

1. सारजोम की तरह खड़ा और अड़ा —Pgs. 11

2. सामू " हिंदी का पहला आदिवासी विमर्शकार —Pgs. 13

दावेदार

3. इतिहास में आदिवासी —Pgs. 33

4. अंग्रेजी उपनिवेशवाद और संथाल परगना —Pgs. 35

5. झारखंडी आंदोलन को विदेशी षड्यंत्र मानना गलत —Pgs. 40

6. ‘झारखंड’ के दावेदार —Pgs. 44

तटस्थता भी हथियार है

7. सांस्कृतिक अवधारणा में आदिवासी कहाँ है? —Pgs. 49

8. जंगली पशु नहीं हैं आदिवासी —Pgs. 53

9. आर्यों ने अपने नजरिए से आँका है आदिवासियों को —Pgs. 59

10. आदिवासियों का ‘नरसंहार’ विश्वव्यापी है —Pgs. 63

11. इतिहासकारों के लिए आसान नहीं होता तटस्थ रहना —Pgs. 67

12. उपनिवेशवाद के शिकंजे में जनजातीय क्षेत्र —Pgs. 74

भूमंडलीय भद्रलोक

13. टुकड़ों पर पलते ये बुद्धिजीवी —Pgs. 81

14. अपने बिखराव के लिए दोषी खुद समाजवादी हैं —Pgs. 84

15. साम्राज्यवाद से निकला भारत का भद्रलोक —Pgs. 88

16. खबरों का सांप्रदायिक हो जाना —Pgs. 93

17. भारत में ‘नाजीवाद’ के उदय का दौर —Pgs. 99

संगीन विकास

18. आरक्षण-व्यवस्था का ढोंग —Pgs. 109

19. वनों पर से आदिवासियों के अधिकार छीनने की तैयारी —Pgs. 112

20. मेनपाट " उत्खनन के नाम पर उत्पीड़न —Pgs. 117

21. आदिवासी इलाकों में सिंचाई की दयनीय स्थिति —Pgs. 120

22. शोषण ने आदिवासियों की आत्म-गरिमा छीनी —Pgs. 124

23. पुलिस अत्याचारों से आहत सिंहभूम की धरती —Pgs. 130

नष्ट होती हुई दुनिया

24. तस्करी की भेंट चढ़ते निरीह वन्य जीव —Pgs. 137

25. जल, जमीन और जंगल का संतुलन बिगड़ रहा है —Pgs. 142

26. जंगलविहीन होने को है यह धरती —Pgs. 147

झारखंड के आसपास

27. बस्तर में नक्सलवाद का उभरना —Pgs. 153

28. अँधेरी सुरंग में अंतहीन यात्रा —Pgs. 158

29. अब वे आपकी करुणा के मोहताज नहीं —Pgs. 162

जारी है रचाव-बचाव

30. जब महिलाओं ने वन कटाई के खिलाफ मोरचा सँभाला —Pgs. 169

31. ऐतिहासिक अध्याय का व्याख्याता बंदगाँव —Pgs. 174

32. छत्तीसगढ़ के दो वीर " नियोगी और वीर नारायण —Pgs. 178

33. मणींदर " धारा के विरुद्ध खड़ा एक समाजसेवी —Pgs. 184

34. फिलीपीन में जारी जंगल बचाओ अभियान —Pgs. 187

परिशिष्ट —Pgs. 191

The Author

Ashwini Kumar ‘Pankaj’

अश्विनी कुमार ‘पंकज’
1964 में जन्म। डॉ. एम.एस. ‘अवधेश’ और दिवंगत कमला की सात संतानों में से एक। कला स्नातकोत्तर। सन् 1991 से जीवन-सृजन के मोर्चे पर वंदना टेटे की सहभागिता। अभिव्यक्ति के सभी माध्यमों—रंगकर्म, कविता-कहानी, आलोचना, पत्रकारिता, डॉक्यूमेंट्री, प्रिंट और वेब में रचनात्मक उपस्थिति। झारखंड व राजस्थान के आदिवासी जीवनदर्शन, समाज, भाषा-संस्कृति और इतिहास पर विशेष कार्य। उलगुलान, संगीत, नाट्य दल, राँची के संस्थापक संगठक सदस्य। सन् 1987 में ‘विदेशिया’, 1995 में ‘हाका’, 2006 में ‘जोहार सहिया’ और 2007 में ‘जोहार दिसुम खबर’ का संपादन-प्रकाशन। फिलहाल रंगमंच एवं प्रदर्श्यकारी कलाओं की त्रैमासिक पत्रिका ‘रंगवार्त्ता’ का संपादन-प्रकाशन।
अब तक ‘पेनाल्टी कॉर्नर’, ‘इसी सदी के असुर’, ‘सालो’ और ‘अथ दुड़गम असुर हत्या कथा’ (कहानी-संग्रह); ‘जो मिट्टी की नमी जानते हैं’ और ‘खामोशी का अर्थ पराजय नहीं होता’ (कविता-संग्रह); ‘युद्ध और प्रेम’ और ‘भाषा कर रही है दावा’ (लंबी कविता); ‘अब हामर हक बनेला’ (हिंदी कविताओं का नागपुरी अनुवाद); ‘छाँइह में रउद’ (दुष्यंत की गजलों का नागपुरी अनुवाद); ‘एक अराष्ट्रीय वक्तव्य’ (विचार); ‘रंग बिदेसिया’ (भिखारी ठाकुर पर सं.); ‘उपनिवेशवाद और आदिवासी संघर्ष’ (सं.); ‘आदिवासीडम’ (सं. अंग्रेजी); आदिवासी गिरमिटियों पर ‘माटी माटी अरकाटी’ तथा आजीवक मक्खलि गोशाल के जीवन-संघर्ष पर केंद्रित मगही उपन्यास ‘खाँटी किकटिया’ प्रकाशित।
संपर्क : akpankaj@gmail.com

 

Customers who bought this also bought

WRITE YOUR OWN REVIEW