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Rajneetik Baat-Bebaat   

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Author Bhawesh Chand
Features
  • ISBN : 9789386871480
  • Language : Hindi
  • Publisher : Prabhat Prakashan
  • Edition : 1st
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  • Kindle Store

More Information

  • Bhawesh Chand
  • 9789386871480
  • Hindi
  • Prabhat Prakashan
  • 1st
  • 2019
  • 216
  • Hard Cover

Description

शब्द भी गरमी और ठंडक का एहसास देते हैं। कम समय में भवेश चंद ने अपनी प्रतिभा के बल पर अच्छी दूरी तय की है, लेकिन पत्रकारों के लिए कभी आसान रहा भी नहीं यह सफर। उस पर पत्रकार व्यंग्य लेखक हो जाए तो आप उसके शब्द सामर्थ्य का अंदाजा लगा सकते हैं। खास तौर से राजनीतिक विषयों पर लिखना एक बेहतर समझदारी से गुजरना है। इस किताब में ज्यादातर व्यंग्य राजनीतिक हैं। इसकी खासियत यह कि ये कहीं से भी बोझिल नहीं हैं और आप बीच में छोड़कर पन्ना पलटने का मन नहीं बना सकते। शब्द बाँधे रखते हैं और अंतिम पूर्णविराम तक आपको पहुँचाते हैं। हर दिन की बड़ी या चर्चित खबर की इतनी बारीक समझ कम पत्रकारों में दिखती है, जितनी यहाँ है। खबर के एनालिसिस से आगे की चीज है खबर पर व्यंग्य लिखना।
‘राजनीतिकबात-बेबात’ पुस्तक समय की नब्ज पर हाथ रखने की तरह है और समय की गरमाहट महसूस करने व कराने में समर्थ है। लेखक की मुट्ठी में जो समय है, वह बालू की तरह नहीं है। हाँ, ये व्यंग्य पढ़ते हुए आपको एहसास होगा कि क्या शब्द भी गरम और ठंडे होते हैं? आप कई व्यंग्य पढ़ते हुए महसूस करते हुए इसका जवाब पा सकेंगे। बिहार की राजनीति पर लिखते वक्त ऐसे शब्दों का प्रयोग बहुत सँभलकर करना होता है, लेखक ने सँभलकर लिखा है। उन्होंने शब्द हिसाब से खर्च किए हैं। तराशे हुए शब्द, चमकते शब्द और अँधेरे को दूर करते शब्द। इसमें आप बिहार की राजनीतिक उथल-पुथल भी महसूस कर सकते हैं और शासक के मिजाज से लेकर मनमानी तक को निशाने पर लेते हुए देख 
सकते हैं।
—डॉ. प्रणय प्रियंवद
युवा कवि एवं पत्रकार

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अनुक्रम 51. हम तो सामाजिक न्याय के दायरे से बाहर हैं —Pgs. 112
आभार —Pgs. 7 52. मयमुक्त बिहार और भययुक्त बिहार —Pgs. 114
1. वक्तव्य —Pgs. 13 53. और अब पेशे खिदमत है, राजनीतिमुक्त बिहार —Pgs. 116
2. तू मुझे सुना, मैं तुझे सुनाऊँ अपने डर की कहानी —Pgs. 14 54. समाजवाद और वामपंथ का सुलहनामा पढि़ए —Pgs. 118
3. बलवान तो वक्त है... 16 55. नशा शराब में होता तो नाचती बोतल —Pgs. 120
4. साधुनो येन गतः पंथा —Pgs. 18 56. छलकने वाला जाम, सरकने वाला जाम —Pgs. 122
5. आओ जाति-जाति खेलें —Pgs. 20 57. धक्का लगा है, ड्राइवर को दोष क्यों दे रहे हो? —Pgs. 124
6. घर-घर में मयस्सर हैं, आज दो-दो चिराग —Pgs. 22 58. नियोजन सिर्फ परिवार का ही नहीं होता —Pgs. 126
7. पार्ट टाइम और रिटायर्ड हर्ट खिलाड़ी के बीच मैच —Pgs. 24 59. यह आपकी नेमत नहीं, हमारी किस्मत है —Pgs. 128
8. आग्रह पूर्व का नहीं होगा, जो भी होगा, ताजा होगा —Pgs. 26 60. कोई बच्चा भी बड़ा काम कर जाता है —Pgs. 130
9. विशेष दर्जा माँगने से नहीं, छीनने से मिलता है —Pgs. 28 61. हे लाल! आपका हार्दिक स्वागत है —Pgs. 132
10. नेताजी का आंदोलन उर्फ अनाज बचाओ अभियान  —Pgs. 30 62. माफ करना बेटी, गलती तुम्हारी नहीं —Pgs. 134
11. बड़े-बड़े आंदोलनों में छोटी-छोटी चूक... 32 63. किन-किन कारणों से डूबती है नाव, बताएँ? —Pgs. 136
12. चोरी छोटा काम है, नियम के अनुसार डकैती करो —Pgs. 34 64. खून में तेरी मिट्टी, मिट्टी में तेरा खून —Pgs. 138
13. अलहदा प्यार, एक-दूसरे में खो जानेवाला... 36 65. कितना उचित होगा मसूरी की वादियों को कसूरवार कहना —Pgs. 140
14. संग्रहालयों में मची नारों की आपाधापी —Pgs. 38 66. आपको मिला पड़ोस में ताक-झाँक का आधिकारिक अधिकार —Pgs. 142
15. सीजन गया, चलिए लॉलीपॉप खाते हैं... 40 67. बड़े पटनायक अमर रहें, छोटे पटनायक जिंदाबाद —Pgs. 144
16. एक-दूसरे को मारना पड़े तो...हैं तैयार हम —Pgs. 42 68. गंगा मैया आपने कोटे का खयाल क्यों नहीं रखा? —Pgs. 146
17. लोकल दुकानदार को दी कॉरपोरेट ने टक्कर —Pgs. 44 69. सच-सच बताना प्यारे बाँध, आखिर तुम टूटे कैसे? —Pgs. 148
18. राम-राम...नेताजी! नेताजी राम-राम... 46 70. हुजूर आते-आते बहुत देर कर दी —Pgs. 150
19. अब गिरा, तब गिरा...यह क्या...अटक गया —Pgs. 48 71. बाढ़ और सुखाड़ के बाद बिहार में आई तीसरी आपदा —Pgs. 152
20. यही मौका है आइए, भाव खाते हैं —Pgs. 50 72. हमें गरीबी का गिला है, मगर आप कोई शिकवा न करना —Pgs. 154
21. मेरे पास माँ है... 52 73. जितनी शानदार सर्जिकल स्ट्राइक, उतनी ही जानदार रिटर्न —Pgs. 156
22. परदे में रहने दो, परदा न उठाओ —Pgs. 54 74. प्रस्ताव पारित किया जाता है कि आप बोलने से बाज न आएँ —Pgs. 158
23. जारी है... विभीषणों की सूची का पुनरीक्षण  —Pgs. 56 75. हे भगवान! इस सपने को सच न होने देना —Pgs. 160
24. योग, योग ही होगा या योगफल भी आएगा —Pgs. 58 76. राजा ने भोज दिया, प्रजा ने चटखारे लिये —Pgs. 162
25. आप ही बताइए, सही पकड़े हैं...कि नहीं —Pgs. 60 77. शराब चीज ही ऐसी है न छोड़ी जाए —Pgs. 164
26. नेताजी गढ़ रहे शब्दों की नई परिभाषा —Pgs. 62 78. आइए, आप भी अपना कीमती मशविरा दीजिए —Pgs. 166
27. खुद का कार्ड और अपनी ही रिपोर्ट —Pgs. 64 79. हाथ-में-हाथ डाल लें तो हैरत में मत पडि़ए —Pgs. 168
28. बाकी है राजनीति के सर्कस का आखिरी सीन  —Pgs. 66 80. सोनम तुम इकलौती बेवफा नहीं हो —Pgs. 170
29. वाइड और नो बॉल का बड़ा ही महत्त्व है —Pgs. 68 81. नए साल पर सरकार ला रही है नसबंदी का कानून —Pgs. 172
30. मुझे पता है, डी.एन.ए. यानी डेवलपमेंट नॉट अलाउड —Pgs. 70 82. हे ईश्वर मुझे आप इतने नाम देना कि... —Pgs. 174
31. थोड़ी सी तो लिफ्ट करा दे, थोड़ी सी तो लिफ्ट फँसा दे  —Pgs. 72 83. नेताजी मानते हैं कि नोटबंदी से होगा नसबंदी जैसा हाल —Pgs. 176
32. भैंस तो बेचारी है, वह कहाँ से पटक पाएगी —Pgs. 74 84. रिश्ते में तो हम उनके समधी लगते हैं, नाम है... —Pgs. 178
33. मुलायम...यह मत कहिए कि नाम में क्या रखा है!  —Pgs. 76 85. सुनो, सुनो, सुनो...बाल छिला लो और कान भी छिदवा लो —Pgs. 180
34. धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक और समाजवादी भी होता है दूध —Pgs. 78 86. चेहरे के चक्कर में हम तो हुए घनचक्कर —Pgs. 182
35. राजनीति के छायावाद का नया यथार्थवाद यही तो है —Pgs. 80 87. और भी गम हैं जमाने में सामाजिक न्याय के सिवा —Pgs. 184
36. कल तक तारीख उपेक्षित थी, अब समय अपेक्षित आ गया —Pgs. 82 88. मिट्टी को भी पता नहीं चला,    कहाँ से खुदी, कहाँ पर चिपकी —Pgs. 186
37. बहुत बड़ी कला है, हवा से बातें करना  —Pgs. 84 89. मुन्ना, मेरी बात आखिर तुम्हें कब समझ में आएगी? —Pgs. 188
38. निशान बदलेगा, नाम भी बदला तो नामोनिशान... 86 90. वैकेंसी निकली है, जल्दी से फॉर्म भर दीजिए —Pgs. 190
39. चलो, अपने प्रदेश में असहिष्णुता खोजें —Pgs. 88 91. अब पूरा देश देखेगा अपने जुगाड़ का दम —Pgs. 192
40. हमें खुद पर गुमान है, आप भी करिए  —Pgs. 90 92. अपने हिस्से का माल बटोरना कभी भी इनकम नहीं कहलाता —Pgs. 194
41. हम दोषी किसको कहें तुम्हारे वध का? —Pgs. 92 93. अपने समाज की बदौलत ही हम राजनैतिक हुए हैं जनाब! —Pgs. 196
42. गर्व से कहो मैं पी.एम. मटीरियल हूँ —Pgs. 94 94. राय साहब! हम सबने आपको बहुत मिस किया —Pgs. 198
43. राजा भी होता है, मैन ऑफ द सिस्टम —Pgs. 96 95. हे सम्राट्! इस दफा किसने आपका दिल दुःखा दिया —Pgs. 200
44. भगवान् का दिया सबकुछ है मेरे पास  —Pgs. 98 96. किसान माने हॉकी और क्रिकेट तो पहले से है ही कॉरपोरेट —Pgs. 202
45. शुक्र है, हम देहाती ज्यादा हैं और शहरी बहुत कम —Pgs. 100 97. जी.एस.टी. के सिर्फ मायने जानिए, कोई मतलब न निकालिए —Pgs. 204
46. घोर कलयुग, राष्ट्रपति से शासन करने को कहा जा रहा  —Pgs. 102 98. अपनी तो यह आदत है कि हम कुछ नहीं कहते —Pgs. 206
47. मुखियाजी अब एम.पी. बननेवाले हैं —Pgs. 104 99. बेनिफिट ऑफ सहानुभूति अब तो बटोर ही ले जाएँगे भैया —Pgs. 208
48. ...मगर चप्पल चोरों की भी तो सुनिए —Pgs. 106 100. मध्यस्थता ही करवानी थी तो बँगलादेश को क्यों चुना? —Pgs. 210
49. तोहमत न लगा मेरे तोहफे पे... 108 101. चंदन विष व्यापत है, जब लिपटे रहत भुजंग —Pgs. 212
50. तुम मुझे शराब दो, मैं तुम्हें विकास दूँगा —Pgs. 110 102. शानदार पटकथा हो, तभी बनती है सुपर-डुपर फिल्म —Pgs. 214

 

 

The Author

Bhawesh Chand

भवेश चंद
जन्म : 01 मार्च, 1979
शिक्षा : पत्रकारिता में स्नातकोत्तर।
संप्रति : हिंदुस्तान, पूर्णिया में संपादकीय प्रभारी। 
लेखन : विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में कविता, कहानियाँ और व्यंग्य प्रकाशित। 
कार्यानुभव : दैनिक जागरण, अमर उजाला और दैनिक भास्कर के संपादकीय विभाग में विभिन्न पदों पर कार्य किया। कई शोधपरक खबरें प्रकाशित।
पता : गाँव बासुदेवपुर, पोस्ट कोरिया, जिला बेगूसराय (बिहार), पिन-851127
मो. : 9771419111
इ-मेल :
bhaweshchand@gmail.com

 

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