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Kyunki Jeena Isi Ka Naam Hai   

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Author N. Raghuraman
Features
  • ISBN : 9789351867272
  • Language : Hindi
  • Publisher : Prabhat Prakashan
  • Edition : 1st
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  • Kindle Store

More Information

  • N. Raghuraman
  • 9789351867272
  • Hindi
  • Prabhat Prakashan
  • 1st
  • 2018
  • 216
  • Hard Cover

Description

मुंबई में एयरपोर्ट के पास भीख माँगने की इजाजत नहीं है। यदि कोई इस नियम को तोड़ता है, उसे पुलिस के डंडे की मार झेलनी पड़ती है। क्या हम ऐसे घुमक्कड़ लोगों की पहचान करके, उनकी क्षमताओं के अनुरूप प्रशिक्षण देकर उन्हें गली-गली में कला-प्रदर्शक के रूप में तैयार नहीं कर सकते? दुनिया भर के विरासत विशेषज्ञ तथा टाउन प्लानर इन बेघर लोगों को गलियों में वाद्ययंत्र बजाने या कला-प्रदर्शन करने में प्रशिक्षण दे चुके हैं।
अमेरिका में यात्री और पर्यटक अकसर ऐसे कलाकारों को पहचान सकते हैं। सब-वे, स्टेशन तथा सैदूल-पार्क जैसे गार्डन में ऐसे प्रदर्शन किए जा सकते हैं। एक प्राचीन चीनी कहावत है—‘बच्चे नकलची होते हैं, इसलिए उन्हें नकल करने के लिए कुछ भी विषय दिया जा सकता है।’ भारत के आई.टी. हब बेंगलुरु में भी केस स्टडी किए जा सकते हैं तथा यहाँ भी गलियों में कला-प्रदर्शन किए जा सकते हैं। जो बच्चे भीख माँगते हैं, वे आसानी से यह रोजगार अपना सकते हैं। इससे उनका आत्म-सम्मान बढ़ेगा। पूरे बेंगलुरु में नहीं तो कम-से-कम लालबाग व कब्बन पार्क में यह प्रयोग किया जा सकता है।
मोटिवेशन गुरु एन. रघुरामन की समाज को एक अनूठी दृष्टि से देखने की क्षमता का परिणाम है यह पुस्तक, जो जीवन को रूपांतरित करने का संदेश देती है।

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अनुक्रम  
1. अनुमान न लगाएँ, सीधे पूछ लें —Pgs. 13 52. बोलो कम, सुनो ज्यादा —Pgs. 116
2. निरंतर प्रयास करते रहने की इच्छा-शति —Pgs. 15 53. जवाब दें, झल्लाएँ नहीं —Pgs. 118
3. आप दूसरों को याद रखें तो कोई आपको भी याद रखेगा —Pgs. 17 54. मन की शति का आह्वान —Pgs. 120
4. पश्चाप की बजाय स्वाभिमान जगाएँ —Pgs. 19 55. बूँद से ही समुद्र बनता है —Pgs. 122
5. सपना साकार करना है तो सपने के साथ जीना सीखें —Pgs. 21 56. सही निर्णय —Pgs. 124
6. अतीत के गर्भ में वर्तमान और भविष्य पनपता है —Pgs. 23 57. मिलकर रहना सीखें —Pgs. 126
7. उत्कृष्टता : हमारे व्यतित्व का अंग —Pgs. 25 58. डाकिए को बचाने में मदद करें —Pgs. 128
8. बच्चे अपने माँ-बाप पर भरोसा करें —Pgs. 27 59. मैंने हटकर राह चुनी है —Pgs. 130
9. उपहार की कद्र करें —Pgs. 29 60. अपने मन को साधें —Pgs. 132
10. नए कौशल सीखें —Pgs. 31 61. सफलता पाने के लिए पसीना बहाने के साथ-साथ कुछ और भी चाहिए —Pgs. 134
11. तलाक के बाद भी जीवन धारा प्रवाहमान रहती है —Pgs. 33 62. हर इनसान में कुछ खास है —Pgs. 136
12. जीवन-रक्षा के लिए ड्यूटी की लक्ष्मण रेखा भी पार कर गए —Pgs. 35 63. पिता का आशीर्वाद —Pgs. 138
13. प्रकृति नेक इनसानों की मददगार है —Pgs. 37 64. भूलों से बचें —Pgs. 140
14. संतोष : जीवन का परम धन —Pgs. 39 65. मन का सौंदर्य —Pgs. 142
15. मातृत्व पूरे दिन की संतोषप्रद ‘जॉब’ है —Pgs. 41 66. चेहरा धोखा दे सकता है —Pgs. 144
16. हर पल का आनंद उठाएँ —Pgs. 43 67. एक में अनेक बनें —Pgs. 146
17. मित्र : हमारे अनदेखे प्रतिद्वंद्वी —Pgs. 45 68. प्यार करना सीखें —Pgs. 148
18. पैसा नहीं, बल्कि इच्छा-शति के बलबूते पर ही सफलता मिलती है —Pgs. 47 69. लघुता से प्रभुता मिले —Pgs. 150
19. आपकी दुर्बलता में ही आपकी शति छिपी है —Pgs. 49 70. मूल्यवान् वस्तुओं पर नहीं, मूल्यों पर ध्यान दें —Pgs. 152
20. जरा सोचें—आप में कितनी इनसानियत है? —Pgs. 51 71. सीखने की ललक जगाएँ —Pgs. 154
21. अकेले इनसान के प्रति तत्क्षण सहृदय बनें —Pgs. 53 72. धार्मिक ग्रंथों से शुद्धि —Pgs. 156
22. मिल-बाँटकर खाने से ज्यादा संतुष्टि और कहीं नहीं —Pgs. 56 73. भारत का अन्य रूप —Pgs. 158
23. प्रौद्योगिकी पर नहीं, इनसानों पर विश्वास करें —Pgs. 58 74. शारीरिक विकास की दिशा में बच्चों को प्रेरित करें —Pgs. 160
24. विपदा दूर करने के लिए स्वयं को बदलें —Pgs. 60 75. एक आसरा छूटता है तो दूसरा मिल जाता है —Pgs. 162
25. उाम जीवन का आधार—शिक्षा —Pgs. 62 76. न्याय के लिए लड़ें —Pgs. 164
26. पूर्व धारणा आपको बरबाद कर सकती है, निष्पक्ष रहें —Pgs. 64 77. अपनी इच्छा-शति जगाए रखें —Pgs. 166
27. उबंतू —Pgs. 66 78. नया शिक्षा-मंत्र —Pgs. 168
28. आपके भीतर का ‘एस’ फैटर —Pgs. 68 79. कम पढ़े-लिखे भी बुद्धिमान होते हैं —Pgs. 170
29. हर रात के बाद उजाला होता है —Pgs. 70 80. जस की तस धर दीनी चदरिया —Pgs. 172
30. ग्रामीण बाजार का विस्तार आवश्यक है —Pgs. 72 81. बुद्धि बनाम आत्मा : किसकी सुनें? —Pgs. 174
31. निस्स्वार्थ प्रेम —Pgs. 74 82. हमेशा आभारी रहें, यही हमारी संस्कृति है —Pgs. 176
32. बच्चों को पैसे की कद्र करना सिखाएँ —Pgs. 76 83. प्रलोभन मिलने पर फैसला आपको लेना है —Pgs. 178
33. दृष्टि सीमा से परे भी देखें —Pgs. 78 84. असाधारण प्रयासों की सराहना की जाती है —Pgs. 180
34. साथी हाथ बढ़ाना —Pgs. 80 85. अपनी जिज्ञासा बनाए रखें —Pgs. 182
35. जीवन का आनंद उठाएँ —Pgs. 82 86. समस्या को हर पहलू से देखें —Pgs. 184
36. खर्चे नोट करके जेब-खर्च बचाएँ —Pgs. 84 87. शिक्षा को कॉरपोरेट की दृष्टि से आँकें —Pgs. 186
37. लघुता में ही प्रभुता —Pgs. 86 88. त्याग की कोई सीमा नहीं होती है —Pgs. 188
38. निस्स्वार्थ सेवा का आनंद —Pgs. 88 89. निष्ठा का कोई अन्य विकल्प है ही नहीं —Pgs. 190
39. देखें, परखें, समझें —Pgs. 90 90. नेकी चाहते हैं तो नेकी करें —Pgs. 192
40. छोटे कदम : कितने मददगार —Pgs. 92 91. दृढ़ संकल्प लें, हिम्मत न छोड़ें —Pgs. 194
41. राष्ट्र को जगानेवाले शब्द —Pgs. 94 92. कभी खुद को रिटायर न समझें, न कहें —Pgs. 196
42. इनसानियत की खातिर —Pgs. 96 93. धारणा दुधारू तलवार होती है —Pgs. 198
43. छोटी-से-छोटी बात पर भी ध्यान दें —Pgs. 98 94. सफल होना है तो बस सफलता के बारे में सोचें —Pgs. 200
44. भावी पीढ़ी की खातिर संगीत विरासत —Pgs. 100 95. पैसे के अभाव का अर्थ नाकामी नहीं —Pgs. 202
45. शुभकामनाएँ —Pgs. 102 96. अपनी कंपनी की ‘फायर वॉल’ के प्रति शुक्रगुजार रहें —Pgs. 204
46. विश्वास बनाए रखें, लेकिन संजीदगी से —Pgs. 104 97. शल से पहले अल पर ध्यान दें —Pgs. 206
47. अपने बच्चों को अपना दोस्त बनाएँ —Pgs. 106 98. विजेता की कोई आयु सीमा नहीं होती —Pgs. 208
48. खुद करें और जानें —Pgs. 108 99. यथार्थ में सृजनशीलता देखें —Pgs. 210
49. ग्राहक पिता-तुल्य होता है —Pgs. 110 100. जीतना है तो पागलपन की हदें छूनी होंगी —Pgs. 212
50. भिखारी भी मँजे कलाकार होते हैं —Pgs. 112 101. विनम्रता है या?—प्यार का आधार —Pgs. 214
51. बड़ी सोच —Pgs. 114  

 

The Author

N. Raghuraman

एन. रघुरामन
मुंबई विश्वविद्यालय से पोस्ट ग्रेजुएट और आई.आई.टी. (सोम) मुंबई के पूर्व छात्र श्री एन. रघुरामन मँजे हुए पत्रकार हैं। 30 वर्ष से अधिक के अपने पत्रकारिता के कॅरियर में वे ‘इंडियन एक्सप्रेस’, ‘डीएनए’ और ‘दैनिक भास्कर’ जैसे राष्ट्रीय दैनिकों में संपादक के रूप में काम कर चुके हैं। उनकी निपुण लेखनी से शायद ही कोई विषय बचा होगा, अपराध से लेकर राजनीति और व्यापार-विकास से लेकर सफल उद्यमिता तक सभी विषयों पर उन्होंने सफलतापूर्वक लिखा है। ‘दैनिक भास्कर’ के सभी संस्करणों में प्रकाशित होनेवाला उनका दैनिक स्तंभ ‘मैनेजमेंट फंडा’ देश भर में लोकप्रिय है और तीनों भाषाओं—मराठी, गुजराती व हिंदी—में प्रतिदिन करीब तीन करोड़ पाठकों द्वारा पढ़ा जाता है। इस स्तंभ की सफलता का कारण इसमें असाधारण कार्य करनेवाले साधारण लोगों की कहानियों का हवाला देते हुए जीवन की सादगी का चित्रण किया जाता है।
श्री रघुरामन ओजस्वी, प्रेरक और प्रभावी वक्ता भी हैं; बहुत सी परिचर्चाओं और परिसंवादों के कुशल संचालक हैं। मानसिक शक्ति का पूरा इस्तेमाल करने तथा व्यक्ति को अपनी क्षमता के अधिकतम इस्तेमाल करने के उनके स्फूर्तिदायक तरीके की बहुत सराहना होती है।
इ-मेल : nraghuraman13@gmail.com

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