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Jeevan Beema : Kyun Aur Kaise?

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Author Gyansundaram Krishnamurthy
Features
  • ISBN : 9789380186887
  • Language : Hindi
  • Publisher : Prabhat Prakashan
  • Edition : 2012
  • ...more

More Information

  • Gyansundaram Krishnamurthy
  • 9789380186887
  • Hindi
  • Prabhat Prakashan
  • 2012
  • 2012
  • 128
  • Hard Cover
  • 280 Grams

Description

हममें से हरेक ने अपने जीवन में या तो स्वतः या दूसरों के अनुभवों से अपने चहेतों की अचानक मृत्यु और सदमे की इस घबराहट का अनुभव किया है। वह हमारे मित्रों, संबंधियों और अपरिचितों में से कोई भी हो सकता है।
एक खुशहाल परिवार में रोजी कमानेवाला व्यक्‍ति पत्‍नी के अच्छे जीवन, बच्चों की शिक्षा, विवाह, जीवन की शुरुआत और परिवार का यदि कोई ऋण हो तो उसके लिए एक आशा और ‌सुन‌िश्‍च‌ितता होती है। उसकी अनुपस्थिति में ये आशाएँ एक बड़ा प्रश्‍नचिह्न बन जाती हैं। जीवन बीमा एक ऐसा सशक्‍त माध्यम है, जो आवश्यकता के समय परिवार की आर्थिक सुरक्षा की गारंटी प्रदान करता है।
इस पुस्तक का एकमात्र उद‍्देश्‍य जीवन बीमा को इसके बीमांकन या वित्तीय रूप में देखना नहीं है, बल्कि इसके कानूनी पहलुओं को सामने लाना है, ताकि यह लाखों पॉलिसीधारकों को उनकी आवश्यकता के समय बिना किसी परेशानी के इसके लाभ को प्राप्‍त करने और जिस उद‍्देश्‍य के साथ बीमा लिया गया है, उसको पूरा करने की सुन‌िश्‍च‌ितता के लिए एक पथ-प्रदर्शक के रूप में सेवा प्रदान करे।
बीमा संबंधी समस्त जानकारी से परिपूर्ण एक उपयोगी पुस्तक।
अंतिम आवरण पृष्‍ठ
जीवन बीमा एक आवश्यकता है, जो कि जरूरत है समय वित्तीय सुरक्षा की सुन‌िश्‍च‌ितता प्रदान करती है; परंतु यदि इसके नियम व शर्तों को नहीं समझा जाता या उनका पालन नहीं होता है तो यह भले के बजाय बुरा अधिक कर सकती है। लेखक ज्ञानसुंदरम कृष्णमूर्ति, पूर्व अध्यक्ष, भारतीय जीवन बीमा निगम ने जीवन बीमा और इसके दावों से जुड़े कानूनी पहलुओं का मुकदमों के अध्ययन द्वारा सोदाहरण विवेचना की है।
पुस्तक पथ-प्रदर्शक के रूप में—

पॉलिसीधारकों के लिए
• पॉलिसी खरीदने के पहले और बाद में उनके अधिकारों और दायित्व की विवेचना हेतु।
• दावों के अमान्य होने पर शिकायत सुधार प्रक्रिया के अनुसरण हेतु।
बीमाकर्ताओं के लिए
• बीमा की जानकारी एवं इसके कानूनी पहलुओं की आधुनिकता की समझ हेतु।
• मुआवजे और बिक्री के लिए अपने ग्राहकों को बेहतर मार्गदर्शन का प्रस्ताव देने के लिए।
• पॉलिसी लेने से पूर्व अपने ग्राहकों को विवेचित करना कि उन्हें ‘क्या’ जानना जरूरी है।
"

The Author

Gyansundaram Krishnamurthy

ज्ञानसुंदरम कृष्णमूर्ति तमिल साहित्य में स्नातकोत्तर हैं। सन् 1962 में भारतीय जीवन बीमा निगम में कनिष्‍ठ अधिकारी के रूप में अपनी सेवाएँ प्रारंभ; सन् 2000 में सेवानिवृत्ति से पूर्व तीन वर्षों तक इसके अध्यक्ष रहे। अपने अध्यक्षीय काल भारतीय साधारण बीमा निगम, यूनिट ट्रस्ट ऑफ इंडिया, नेशनल हाउसिंग बैंक और आई.सी.आई.सी.आई. के बोर्ड में जीवन बीमा निगम का प्रतिनिधित्व किया।
श्री कृष्णमूर्ति की नियुक्‍त‌ि तीन वर्षों के लिए मुंबई और गोवा के बीमा लोकपाल के रूप में हुई। बीमा कंपनियों और दावाकर्ताओं के बीच उपजे सैकड़ों बीमा विवादों में उन्हें सलाहकार, मध्यस्थ एवं न्याय-निर्णायक के रूप में कार्य करने का अवसर मिला। जीवन बीमा निगम में एक अधिकारी और बीमा लोकपाल के रूप में उन्हें जो अनुभव व अंतर्दृष्‍ट‌ि प्राप्‍त हुई, उसने उन्हें इस पुस्तक में पॉलिसीधारकों के ऊपर विपरीत प्रभाव डालनेवाले कई विषयों को पहचानने के लिए प्रेरित किया और जीवन बीमा पॉलिसीधारकों के ध्यान देने के लिए वे इन्हें आगे भी लाए।
इस पुस्तक में उन्होंने जीवन बीमा पॉलिसीधारकों के अधिकार एवं दायित्व तथा बीमा के कानूनी पहलुओं को भी स्पष्‍ट किया है।

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