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Jammu-Kashmir Ka Vishmrit Adhyay   

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Author Dr. Kuldeep Chand Agnihotri
Features
  • ISBN : 9789352669011
  • Language : Hindi
  • Publisher : Prabhat Prakashan
  • Edition : Ist
  • ...more

More Information

  • Dr. Kuldeep Chand Agnihotri
  • 9789352669011
  • Hindi
  • Prabhat Prakashan
  • Ist
  • 2018
  • 208
  • Hard Cover

Description

जम्मू-कश्मीर में पिछले सात दशकों से जो राजनैतिक संघर्ष हुए, उनमें सबसे बड़ा संघर्ष राज्य को संघीय सांविधानिक व्यवस्था का हिस्सा बनाए रखने को लेकर ही था। विदेशी ताकतों की सहायता व रणनीति से कश्मीर घाटी का एक छोटा समूह इस व्यवस्था से अलग होने के लिए हिंसक आंदोलन चलाता रहा है। उसका सामना करनेवालों में लद्दाख के कुशोक बकुला रिंपोछे का नाम प्रमुखता से लिया जा सकता है। ये रिंपोछे ही थे, जिन्होंने 1947-48 में ही स्पष्ट कर दिया था कि तथाकथित अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं के वेश में जनमत संग्रह के परिणाम जो भी हों, लद्दाख उससे बँधा नहीं रहेगा। वह हर हालत में भारत का अविभाज्य अंग रहेगा। इसकी जरूरत शायद इसलिए पड़ी थी, क्योंकि भारत में ही प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने कहना शुरू कर दिया था कि राज्य का भविष्य जनमत संग्रह पर टिका है। ऐसे समय में नेहरू व शेख अब्दुल्ला के साथ रहते हुए भी देश की अखंडता के मामले में बकुला रिंपोछे चट्टान की तरह अडिग रहे। 
हिंदी में कुशोक बकुला रिंपोछे पर यह पहली पुस्तक है। निश्चय ही इससे जम्मू-कश्मीर को उसकी समग्रता में समझने के इच्छुक समाजशास्त्रियों को सहायता मिलेगी।

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अनुक्रम

 पुरोवाक्

 1. भगवान् बुद्ध के सोलह अर्हत और लद्दाख का संदर्भ

 2. उन्नीसवें कुशोक बकुला लोबजंग थुपतन छोगनोर का प्रारंभिक जीवन और शिक्षा

 3. वापस लद्दाख में (1940-1947)

 4. जम्मू-कश्मीर का भारत में विलय और पाकिस्तानी आक्रमण

 5. नेहरू का लद्दाख से पहला आमना-सामना

 6. राजनीति में भूमिका

 7. लद्दाख के अधिकारों की जंग

 8. तिब्बत के सरोकार

 9. साम्यवादी देशों में बौद्ध जागरण

 10. मंगोलिया में सांस्कृतिक पुनरुत्थान

 11. सामाजिक समरसता, संवाद रचना और भविष्य दृष्टि

 12. अंतिम यात्रा और आगामी बकुला

 13. मूल्यांकन

 संदर्भ ग्रंथ सूची

परिशिष्‍ट-1

 कुशोक बकुला रिंपोछे द्वारा 15 मई, 1952 को
 बजट प्रस्ताव पर जम्मू-कश्मीर विधान सभा में
 दिया गया ऐतिहासिक भाषण

परिशिष्‍ट-2

 Tour Report of Kushok Bakula, Member,
 Minorities Commission, on His Visit to
 Leh From August 24–31, 1989

The Author

Dr. Kuldeep Chand Agnihotri

डॉ. कुलदीप चंद अग्निहोत्री (1951) लंबे अरसे से अध्ययन-अध्यापन से जुड़े हैं। सिख नेशनल कॉलेज बंगा से बी.एससी. करने के बाद लायलपुर खालसा कॉलेज जालंधर से एम.ए. और पंजाब विश्वविद्यालय चंडीगढ़ से पीएच.डी की उपाधि प्राप्त की। पंजाब विश्वविद्यालय से ही आदि ग्रंथ आचार्य की परीक्षा उत्तीर्ण की। पंजाबी विश्वविद्यालय पटियाला से पंजाबी भाषा में ऑनर्ज की डिग्री प्राप्त की। कुछ देर गुरु नानक खालसा कॉलेज-सुलतानपुर लोधी में भी पढ़ाते रहे। हिमाचल प्रदेश में अनेक उच्च अकादमिक पदों पर रहे— बाबासाहेब आंबेडकर पीठ के अध्यक्ष रहे। कुछ समय तक पंजाब स्कूल शिक्षा बोर्ड के उपाध्यक्ष का दायित्व भी सँभाला। 
भारत तिब्बत सहयोग मंच के संरक्षक अग्निहोत्री ने सन् 1975 में भारत सरकार द्वारा घोषित की गई आपातस्थिति का विरोध करते हुए जेल यात्रा भी की। अग्निहोत्रीजी की दो पुस्तकें, मध्यकालीन भारतीय दशगुरु परंपरा-इतिहास का स्वर्णिम पृष्ठ तथा गुरु गोबिंद सिंह व्यक्तित्व और कृतित्व काफी चर्चित हैं। हिमाचल प्रदेश के बडसर नगर में दीनदयाल उपाध्याय महाविद्यालय की स्थापना की। भारतीय भाषाओं की एकमात्र संवाद समिति ‘हिंदुस्थान समाचार के निदेशक मंडल के सदस्य रहे।’ ‘जनसत्ता’ अखबार से भी जुड़े रहे। हिमाचल प्रदेश विधानसभा की पुस्तकालय समिति के विशेष आमंत्रित सदस्य रहे। संप्रति हिमाचल प्रदेश केंद्रीय विश्वविद्यालय धर्मशाला के कुलपति है।

 

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