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Ethiopia ki Lok Kathayen-1 (Folk Tales of Ethiopia)   

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Author Sushma Gupta
Features
  • ISBN : 9789351867791
  • Language : Hindi
  • Publisher : Prabhat Prakashan
  • Edition : 1
  • ...more

More Information

  • Sushma Gupta
  • 9789351867791
  • Hindi
  • Prabhat Prakashan
  • 1
  • 2017
  • 120
  • Hard Cover

Description

लोककथाएँ किसी भी समाज की संस्कृति का एक अटूट हिस्सा होती हैं। आज से करीब सौ साल पहले ये लोककथाएँ केवल जबानी ही कही जाती थीं और कह-सुनकर ही एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को सौंप दी जाती थीं, इसलिए किसी भी लोककथा का मूल रूप क्या रहा होगा, यह कहना मुश्किल है।
यह पुस्तक ऐसी ही कुछ अंग्रेजी की और कुछ दूसरी भाषा बोलनेवाले देशों की लोककथाएँ हिंदी भाषा बोलनेवाले समाज तक पहुँचाने का एक विनम्र प्रयास है। इनमें से बहुत सारी लोककथाएँ अंग्रेजी की पुस्तकों से, कुछ विश्वविद्यालयों में दिए गए शोध-प्रबंधों से, कुछ पत्रिकाओं से संकलित की हैं एवं कुछ कहानियाँ लोगों से सुनकर भी लिखी हैं। अब तक एक हजार से अधिक लोककथाएँ संकलित की जा चुकी हैं। इनमें से चार सौ से भी अधिक लोककथाएँ तो अकेले अफ्रीका की ही हैं।
ये सभी लोककथाएँ ‘देश-विदेश की लोककथाएँ’ शीर्षक शृंखला के अंतर्गत प्रकाशित हो रही हैं। आशा है, ये लोककथाएँ पाठकों का मनोरंजन तो करेंगी ही, साथ में दूसरे देशों के समाज-रीति-नीति-संस्कृति व परंपराओं के बारे में भी जानकारी देंगी।

 

The Author

Sushma Gupta

सुषमा गुप्ता का जन्म सन् 1943 में उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ शहर में हुआ था। उन्होंने आगरा विश्वविद्यालय से समाज शास्त्र और अर्थशास्त्र में एम.ए. किया और मेरठ विश्वविद्यालय से बी.एड. किया। सन् 1976 में ये नाइजीरिया चली गईं। वहाँ उन्होंने यूनिवर्सिटी ऑफ इबादान से लाइबे्ररी साइंस में एम.एल.एस. किया और एक थियोलॉजिकल कॉलेज में 10 वर्षों तक लाइब्रेरियन का कार्य किया। 
वहाँ से फिर वे इथियोपिया चली गईं और एडिस अबाबा यूनिवर्सिटी में इंस्टीट्यूट ऑफ इथियोपियन स्टडीज की लाइब्रेरी में 3 साल कार्य किया। तत्पश्चात् उन्हें दक्षिणी अफ्रीका के एक देश, लिसोठो के विश्वविद्यालय में इंस्टीट्यूट ऑफ सदर्न अफ्रीकन स्टडीज में एक साल कार्य करने का अवसर मिला। वहाँ से सन् 1993 में ये अमेरिका आ गईं, जहाँ उन्होंने फिर से मास्टर ऑफ लाइब्रेरी ऐंड इनफॉर्मेशन साइंस किया। फिर 4 साल ऑटोमोटिव इंडस्ट्री एक्शन ग्रुप के पुस्तकालय में कार्य किया। 
1998 में उन्होंने सेवानिवृत्ति ले ली और अपनी एक वेबसाइट बनाई—222. sushmajee.com। तब से ये उसी पर काम कर रही हैं।
लोककथाओं में विशेष अभिरुचि होने के कारण अधिक समय इन्हीं के संकलन-प्रकाशन पर व्यतीत।

 

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