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Dashaguru Parampara Ke Navam Guru Shri Tegabahaduraji   

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Author Dr. Kuldip Chand Agnihotri
Features
  • ISBN : 9789393111333
  • Language : Hindi
  • Publisher : Prabhat Prakashan
  • Edition : 1st
  • ...more

More Information

  • Dr. Kuldip Chand Agnihotri
  • 9789393111333
  • Hindi
  • Prabhat Prakashan
  • 1st
  • 2021
  • 48
  • Soft Cover

Description

सप्तसिंधु क्षेत्र की कुछ घटनाएँ ऐसी हैं, जिन्होंने भारतवर्ष के इतिहास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इनमें सबसे पहली घटना तो सिंधु-सरस्वती सभ्यता का विकास है। दरअसल वर्तमान भारतीय विश्वासों, आस्थाओं एवं पूजा-पद्धति का आधार सिंधु-सरस्वती घाटी में ही मिलता है। इसके उपरांत वेद रचना का युग आता है। यह सिंधु-सरस्वती सभ्यता का अगला चरण है—गंभीर चिंतन का युग। इस युग के चिंतन ने भारतवर्ष को ही नहीं, बल्कि पूरे जंबूद्वीप को आच्छादित किया। कुरुक्षेत्र में हुआ महाभारत का युद्ध इस क्षेत्र की ऐसी घटना है, जिसने पूरे हिंदुस्तान को सप्तसिंधु के मैदान में लाकर खड़ा कर दिया था।
बाद के काल में विदेशी आक्रांता येन-केन-प्रकारेण विजित प्रदेश के निवासियों को अपने मजहब में मतांतरित करने लगे थे। हमले क्योंकि सप्तसिंधु क्षेत्र से ही होते थे, इसलिए इसका सर्वाधिक दंश भी इसी क्षेत्र को सहना पड़ा। लेकिन इस नई आफत का सामना कैसे किया जाए, यह सबसे बड़ी चुनौती थी। इस मरहले पर दशगुरु परंपरा की शुरुआत एक दैवी योजना ही मानी जा सकती है। गुरु नानक देवजी इसके संस्थापक थे। दुर्भाग्य से दशगुरु परंपरा का मूल्यांकन आध्यात्मिक क्षेत्र में तो हुआ है, लेकिन ऐतिहासिक व सामाजिक क्षेत्र में समग्र रूप से नहीं हुआ। यह ऐसा क्षेत्र है, जिसमें कुदाल चलाने की जरूरत है और यह पुस्तक दशगुरु परंपरा को प्रकाश में लाने का स्तुत्य प्रयास है।

The Author

Dr. Kuldip Chand Agnihotri

डॉ. कुलदीप चंद अग्निहोत्री गुरुवाणी और मध्यकालीन दशगुरु परंपरा के अध्येता हैं। आजकल दशगुरु परंपरा के संदर्भ में सप्तसिंधु और जंबूद्वीप का इतिहास खँगालने में व्यस्त हैं। वह हिमाचल प्रदेश केंद्रीय विश्वविद्यालय धर्मशाला के कुलपति रह चुके हैं। कुछ समय के लिए हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय, शिमला में आंबेडकर पीठ में चेयर प्रोफेसर रहे। जम्मू-कश्मीर अध्ययन केंद्र दिल्ली से भी जुड़े हुए हैं। प्रो. अग्निहोत्री ने अनेक देशों की यात्रा की। जिन दिनों ईरान में अयातुल्लाह खुमैनी ने आर्यमेहर शाह का तख्तापलट किया, उन दिनों वह ईरान में थे। शायद उनकी पुस्तक ईरानी क्रांति तथा उसके बाद हिंदी में लिखी गई अपने प्रकार की पहली किताब है।

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