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Atishaya   

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Author Mridula Sinha
Features
  • ISBN : 9789386001375
  • Language : Hindi
  • Publisher : Prabhat Prakashan
  • Edition : 1
  • ...more

More Information

  • Mridula Sinha
  • 9789386001375
  • Hindi
  • Prabhat Prakashan
  • 1
  • 2016
  • 288
  • Hard Cover

Description

‘‘जीवन जीने के क्रम में जब हम पाँचों इंद्रियों की लगाम ढीली कर देते हैं तो हमारी भी स्थिति महाभारत के नहुष-पुत्र ययाति जैसी होती है। ययाति के जीवन में आए अनुभवों से हमारी सभी पीढि़यों को लाभ उठाना चाहिए। उन्होंने अपने पुत्र पुरु को उसका यौवन लौटाते हुए भोग की वीथियों से निकलकर जो संदेश दिए, वे हमारी संस्कृति और समाज-जीवन के संबल रहे हैं। हमें आनेवाली पीढ़ी को भी सौंपना चाहिए।

सुख, सुख और सुख! सुख और सुविधा की चाह में मनुष्य दुःखी होता जा रहा है। उपभोक्तावाद को हमने जीवन-व्यवहार बना लिया। भूख, भय, भ्रष्टाचार और प्रदूषण से दुनिया तबाह हो रही है। आतंकवाद के पीछे भी भय है; दूसरों से भय, छीने जाने का भय, ठगे जाने का भय। इसलिए हिंसा बढ़ रही है। कितना भी भौतिक संपत्ति-संपन्न राष्ट्र क्यों न हो, आतंकवाद के आगे तबाह हो जाता है, टूट जाता है। यह विश्वबंधुत्व भाव की अनुपस्थिति की स्थिति है। बड़ी-बड़ी भौतिक उपलब्धियाँ क्षणों में समाप्त की जा सकती हैं। इसलिए कि मनुष्य को मनुष्य बनाने पर बल नहीं दिया जा रहा।

आज भारतीय जीवन-शैली में रचा-बसा संदेश दुनिया को सुनाने की आवश्यकता है और वह संदेश है संयम का, त्याग का; भोग का नहीं।
—इसी पुस्तक से
विश्व भर में भारत के उत्कर्ष का जयघोष करती पीढ़ी का संदेश प्रसारित करता एक पठनीय उपन्यास।

The Author

Mridula Sinha

मृदुला सिन्हा 
27 नवंबर, 1942 (विवाह पंचमी), छपरा गाँव (बिहार) के एक मध्यम परिवार में जन्म। गाँव के प्रथम शिक्षित पिता की अंतिम संतान। बड़ों की गोद और कंधों से उतरकर पिताजी के टमटम, रिक्शा पर सवारी, आठ वर्ष की उम्र में छात्रावासीय विद्यालय में प्रवेश। 16 वर्ष की आयु में ससुराल पहुँचकर बैलगाड़ी से यात्रा, पति के मंत्री बनने पर 1971 में पहली बार हवाई जहाज की सवारी। 1964 से लेखन प्रारंभ। 1956-57 से प्रारंभ हुई लेखनी की यात्रा कभी रुकती, कभी थमती रही। 1977 में पहली कहानी कादंबिनी' पत्रिका में छपी। तब से लेखनी भी सक्रिय हो गई। विभिन्न विधाओं में लिखती रहीं। गाँव-गरीब की कहानियाँ हैं तो राजघरानों की भी। रधिया की कहानी है तो रजिया और मैरी की भी। लेखनी ने सीता, सावित्री, मंदोदरी के जीवन को खंगाला है, उनमें से आधुनिक बेटियों के लिए जीवन-संबल हूँढ़ा है तो जल, थल और नभ पर पाँव रख रही आज की ओजस्विनियों की गाथाएँ भी हैं।
लोकसंस्कारों और लोकसाहित्य में स्त्री की शक्ति-सामर्थ्य ढूँढ़ती लेखनी उनमें भारतीय संस्कृति के अथाह सूत्र पाकर धन्य-धन्य हुई है। लेखिका अपनी जीवन-यात्रा पगडंडी से प्रारंभ करके आज गोवा के राजभवन में पहुँची हैं।

 

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