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Vinayak Damodar Savarkar   

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Author Raghuvendra Tanwar
Features
  • ISBN : 9789351868903
  • Language : Hindi
  • Publisher : Prabhat Prakashan
  • Edition : 1
  • ...more

More Information

  • Raghuvendra Tanwar
  • 9789351868903
  • Hindi
  • Prabhat Prakashan
  • 1
  • 2018
  • 104
  • Hard Cover

Description

विनायक दामोदर सावरकर एक ऐसा नाम है, जो भारतीय क्रांतिकारी आंदोलन के इतिहास में सबसे अलग है। उन्हें दो-दो बार आजीवन निर्वासन की सजा, अंडमान द्वीप की कुख्यात जेल में दस वर्षों से भी अधिक समय तक कठोरतम कारावास की यातना झेलनी पड़ी। वे एक महान् बुद्धिजीवी थे; उनकी कुछ रचनाएँ अंग्रेजी और मराठी भाषा की उत्कृष्ट कृतियाँ हैं। उनकी पुस्तक ‘द इंडियन वार ऑफ इंडिपेंडेंस : 1857’ ने पूरे विश्व को भारत के स्वतंत्रता के उद्देश्य के प्रति जाग्रत् किया। वे इस बात की चेतावनी देनेवाले पहले व्यक्ति थे कि देश की जनसंख्या के एक वर्ग के प्रति तुष्टीकरण की नीति देश को बँटवारे की ओर ले जा सकती है। सावरकर के लिए ‘मातृभूमि’ की एकता और अखंडता सर्वोच्च थी। सन् 1947 में धर्म के आधार पर भारत का विभाजन हो गया। इसे हिंदुओं की मातृभूमि या हिंदुस्तान कहना कहाँ तक गलत था! वे कहते थे कि क्या हिंदू बहुसंख्यक नहीं थे? इस बात को समझने के लिए उनके लेखों को पढ़ना पड़ेगा कि वे केवल हिंदुओं के लिए ही ‘हिंदुस्तान’ की कल्पना नहीं करते थे। इसके विपरीत वे तो अल्पसंख्यकों के धर्म, संस्कृति और भाषा के संरक्षण की कामना भी करते थे। 
यह पुस्तक भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महानायक वीर सावरकर के जीवन और योगदान का एक संक्षिप्त परिचय मात्र है।

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अनुक्रम

आमुख—5-13

1. आरंभिक जीवन और संघर्ष का प्रथम चरण—17-36

• परिवार एवं बचपन—17-18

• अभिनव भारत—19-21

• कॉलेज से निष्कासन—21-22

• लंदन—फ्री इंडिया सोसाइटी (Free India Society)—22-24

• 1857 का भारतीय स्वतंत्रता संग्राम—24-31

• मदनलाल ढींगरा—31-32

• सावरकर और महात्मा गांधी—32-33

• गिरतारी और निर्वासन—33-34

• भारत पहुँचना—आजीवन निर्वासन—34-36

 

2. अंडमान की सेल्यूलर जेल—37-58

• सेल्यूलर जेल—38-41

• अपना कोटा पूरा करो—41-44

• जेल में पहली बार अपने भाई से भेंट—44-45

• अंडमान जेल में मुसलमानों और  शुद्धि आंदोलन पर विचार—45-48

• लोकमान्य तिलक की मृत्यु की सूचना—48

• जेल में गुरु गोविंद सिंह का जन्मदिवस—49-50

• जेल में प्राथमिक पाठशाला—51-52

• अंडमान में जीवन का आगे बढ़ना—52-54

• अंडमान से लिखे पत्र—54-58

3. भारत की मुयभूमि पर वापसी—59-101

• रत्नागिरी और हिंदुत्व—59-62

• जेल से रिहाई—पाबंदियाँ जारी—62-63

• डॉ. के.बी. हेडगेवार से भेंट—64

• महात्मा गांधी से दूसरी बार भेंट—64-65

• जाति-पाति के बंधनों का विरोध—65-66

• तर्कसंगता—66

• 1930 और 40 के दशक में राजनीति—66-67

• हिंदू राष्ट्रवादियों को क्षमाप्रार्थी नहीं होना चाहिए—67-68

• हिंदू संगठनवादी कांग्रेस का बहिष्कार करें—68-69

• 1942 में हिंदू महासभा का 24वाँ अधिवेशन—69-70

• हिंदुत्व, हिंदू धर्म से भिन्न है—70-72

• पंजाब में—72-73

• भारत भ्रमण—73

• कांग्रेस का सावरकर को एक खतरे के रूप में देखना—73-75

• सावरकर का भारत—75-76

• स्वतंत्रता और राष्ट्रवाद—76-77

• कश्मीर में—77-78

• विभाजन के विरोध में बोलना—78-79

• एक हिंदू राष्ट्र यों नहीं—80-84

• महात्मा गांधी का निधन—84-85

• दूसरी बार एक आजाद व्यति के तौर पर—85-86

• अपराध में सावरकर की संलिप्तता पर सरदार पटेल—87-89

• एक बार फिर गिरतारी—89-91

• अपने आप में सिमट जाना—91-93

• 1857 की शतादी—94

• अंतिम वर्ष—95-99

संदर्भ—102-104

 

The Author

Raghuvendra Tanwar

शिक्षा : एम.ए. (इतिहास) में प्रथम स्थान व सामाजिक विज्ञान संकाय में सर्वाधिक अंक प्रतिशत हेतु सम्मानित। यू.जी.सी. के राष्ट्रीय फैलो (रिसर्च अवार्डी 2002-2005); अध्यक्ष, पंजाब इतिहास कांग्रेस (मॉडर्न 2001); प्रथम अध्यक्ष, भारतीय इतिहास कांग्रेस (समकालिक 2008) हैं। 
प्रकाशन : रिपोर्टिंग द पार्टिशन ऑफ 
पंजाब : प्रेस, पब्लिक ऐंड अदर ओपिनियन 1947। इस अध्ययन की समीक्षा अनेक विद्वानों द्वारा भारत, यू.के., यू.एस.ए. तथा कनाडा के विभिन्न महत्त्वपूर्ण जर्नलों के लिए की गई। उनकी पुस्तक ‘पॉलिटिक्स ऑफ शेयरिंग पावर : द पंजाब यूनियनिस्ट पार्टी 1923-1947’ को विभाजन के पूर्व पंजाब में विद्यमान राजनैतिक व्यवस्था पर एक महत्त्वपूर्ण एवं सर्वस्वीकार्य शोध के रूप में मान्यता दी जाती है। फ्रैंकली स्पीकिंग : ऐसे ऐंड ओपिनियंस, 1990 के दशक में प्रमुख राष्ट्रीय समाचार-पत्रों में प्रकाशित उनके लेखों एवं विचारों का संकलन है। उनके निरीक्षण में 14 शोधार्थी 
पी-एच.डी. कर चुके हैं। ‘द एसेसिनेशन ऑफ महात्मा गांधी ऐंड द पॉलिटिक्स ऑफ बैनिंग द राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ’ नामक पुस्तक का प्रकाशन अखिल भारतीय इतिहास संकलन योजना, नई दिल्ली द्वारा 2015 में किया गया। ‘द कश्मीर डिस्प्यूट 1947-48 : ए स्टडी ऑफ अरली कंटेम्पैररी व्यूज ऐंड रिएक्शन’ का कार्य पूर्ण।
प्रो. तंवर कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के अधिष्ठाता शैक्षणिक, अधिष्ठाता सामाजिक विज्ञान संकाय एवं कुलसचिव के पदों पर आसीन रहे हैं। उनका विश्वविद्यालय का शैक्षणिक अनुभव लगभग 38 वर्षों का है।
कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय, कुरुक्षेत्र में प्रोफेसर एमिरेटस के पद पर कार्यरत हैं।

 

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