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Vatan Par Marnewale   

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Author Jagdish Jagesh
Features
  • ISBN : 9789380839004
  • Language : Hindi
  • ...more

More Information

  • Jagdish Jagesh
  • 9789380839004
  • Hindi
  • Prabhat Prakashan
  • 2020
  • 176
  • Hard Cover

Description

दोनों क्रांतिकारी तुरंत अपने शिकार को पहचान गए । शाम को साढ़े पाँच बजे तक जिला परिषद् की मीटिंग की कार्यवाही नियमित रूप से चलती रही । एजेंडे के नौवें बिंदु पर विचार शुरू हुआ । डगलस जिला परिषद् के कागजों पर हस्ताक्षर कर रहा था और अपनी सम्मति भी देता जा रहा था कि अचानक सभाभवन गोली चलने की दहशत- भरी आवाज से गूँज उठा । सभी सदस्य एकदम सकते में आ गए । उन्होंने देखा, दो युवक डगलस के पीछे की तरफ दाएँ-बाएँ खड़े गोली चला रहे थे । गोली चलानेवाले तथा डगलस की दूरी एक-डेढ़ गज से ज्यादा नहीं थी । 
उनकी हर गोली छूटने की आवाज होती और वह डगलस की गाड़ी पीठ में घुस जाती । कोट के ऊपर एक नया लाल छेद बन जाता । पहली गोली पर वह हलके से चीखा, जिसमें दर्द और पुकार दोनों थी । फिर वह कुछ उठने की कोशिश करता रहा, जो दूसरी गोली तक जारी थी । तीसरी गोली तक स्थिर रहा । पाँचवीं गोली लगने के बाद वह मेज पर मुँह के बल गिरकर निढाल पड़ गया । उसकी वह चीख चार गोलियों तक धीमी होती गई और पाँचवीं गोली तक लगता था, वह होशोहवास खो चुका था । प्रभांशु की पाँचों गोलियाँ उसे छेदकर घुस गई थीं । प्रद्योत ने एक गोली चलाई, जो चली, मगर लगी नहीं । उसकी पिस्तौल अब जाम हो गई थी । जैसे राजगुरु की पिस्तौल सांडर्स को मारने के लिए पहली गोली चलाने के बाद जाम हो गई थी ।
-इसी पुस्तक से

 

The Author

Jagdish Jagesh

जन्म : 21 जून, 1936, वाराणसी । 
शिक्षा : काशी विद्यापीठ, वाराणसी से शास्त्री, एम.ए.एस., एम.ए. तथा कानपुर विश्‍वविद्यालय से एल-एल.बी. ।
पहली कहानी 1949 में ' साहूमित्र ' पत्रिका में छपी । तब से कई सौ रचनाएँ तथा पाँच पुस्तकें प्रकाशित ।
जगदीश जगेश ने इतिहास लेखन को तारीखों एवं घटनाक्रमों का ब्योरा देने के दायरे से बाहर निकालकर, क्रांतिकारियों के बम और पिस्तौल की भाषा के पीछे छिपे उनके मिशन के सिद्धांत, आदर्श और विचारधारा के पक्ष को उजागर करने में अपनी लेखनी चलाई । उन्होंने क्रांतिकारियों के जीवन पर अनेक लेख, कहानियाँ तथा एक इतिहास ग्रंथ लिखा । उनके इतिहास ग्रंथ ' कलम आज उनकी जय बोल ' को दिल्ली सरकार ने विशिष्‍ट पुरस्कार प्रदान किया था । इसी ग्रंथ पर उन्हें उत्तर प्रदेश सरकार के हिंदी संस्थान के ' कबीर पुरस्कार ' से सम्मानित किया गया तथा देश की अन्य संस्थाओं द्वारा भी उन्हें सम्मानित किया गया ।
जगेशजी अंतिम समय में अमर शहीद चंद्रशेखर आजाद के जीवन की अब तक की अज्ञात गतिविधियों पर गहन शोध कर रहे थे । उन्होंने ' शहीद संस्मृति ' नामक संस्था का भी गठन किया था ।
साठ वर्ष की आयु में 23 फरवरी, 1997 को उनका निधन हो गया ।

 

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