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S.H. Vatsyayan 'Ajneya'   

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Author Ramesh Chandra Shah
Features
  • ISBN : 9788173158599
  • Language : Hindi
  • Publisher : Prabhat Prakashan
  • Edition : 1st
  • ...more

More Information

  • Ramesh Chandra Shah
  • 9788173158599
  • Hindi
  • Prabhat Prakashan
  • 1st
  • 2010
  • 120
  • Hard Cover

Description

सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ मूलत: साहित्यकार रहे, किंतु उनका पत्रकारी-संपादक कृतित्व भी उतना ही महत्त्वपूर्ण और उल्लेखनीय है। अज्ञेय की पत्रकारिता के दो रूप हैं—साहित्यिक पत्रकारिता और मुख्यधारा की पत्रकारिता, जिसमें सामाजिक-राजनीतिक सरोकारों का स्वर प्रधान रहा। सन् 1965 में अज्ञेय के संपादकत्व में प्रकाशित ‘दिनमान’ स्वातंत्र्योत्तर हिंदी पत्रकारिता में एक नया मोड़ लेकर आया। ‘दिनमान’ ने पत्रकारिता को नई भाषा और शैली दी। विषयों का विस्तार दिया। कला-समीक्षा, विज्ञान, संस्कृति, कृषि, राजनीति, समाज—सब के सब सर्वथा नए आयाम और जन-सरोकारों के साथ ‘दिनमान’ में मुकाम पाते रहे। उन्होंने सुदूर कस्बों तक लेखकों-पत्रकारों की बड़ी जमात तैयार की। उन्हें सरल भाषा में सीधी बात लिखने के लिए प्रेरित और प्रोत्साहित किया। सच लिखने का हौसला और संघर्ष में संरक्षण दिया। ‘दिनमान’ निकलते ही अवाम की आवाज और पत्रकारों की पाठशाला बन गया। यही है अज्ञेय होने का मतलब।
अज्ञेय ‘नवभारत टाइम्स’ और ‘प्रतीक’ के भी संपादक रहे। उनकी पत्रकारिता आगरा के ‘सैनिक’ और कलकत्ता के ‘विशाल भारत’ से परवान चढ़ी; परंतु नवाचार और नव-प्रयोगों के कारण ‘दिनमान’ हिंदी पत्रकारिता के इतिहास का स्वर्णिम अध्याय बन गया। अज्ञेय को सर्वांग रूप में सहजता से समझने-जानने में सहायक एक पठनीय पुस्तक।

The Author

Ramesh Chandra Shah

जन्म : 1937 अल्मोड़ा (उत्तराखंड)।
शिक्षा : बी.एस-सी., अंग्रेजी साहित्य में एम.ए. तथा पी-एच.डी.।
रचना-संसार : ‘रचना के बदले’, ‘शैतान के बहाने’, ‘आड़ू का पेड़’, ‘पढ़ते-पढ़ते’, ‘स्वधर्म और कालगति’ (निबंध-संग्रह); ‘कछुए की पीठ पर’, ‘हरिश्चंद्र आओ’, ‘नदी भागती आई’, ‘प्यारे मुचकुंद को’, ‘देखते हैं शब्द भी अपना समय’, (काव्य-संकलन); तीन बाल कविता-संग्रह तथा दो बाल-नाटक भी; ‘गोबरगणेश’, ‘किस्सा गुलाम’, ‘पूर्वापर’, आखिरी दिन’, ‘पुनर्वास’, ‘आप कहीं नहीं रहते विभूति बाबू’, ‘असबाब-ए-वीरानी’ (उपन्यास); ‘मुहल्ले का रावण’, ‘मानपत्र’, ‘थिएटर’, ‘प्रतिनिधि कहानियाँ’ (कहानी-संग्रह) के साथ-साथ एक यात्रा-संस्मरण, सात समालोचना पुस्तकें एवं काव्यानुवादों की चार पुस्तिकाएँ ‘तनाव’ पुस्तकमाला में; ‘राशोमन’ नाटक का अनुवाद ‘मटियाबुर्ज’ नाम से; प्रसाद रचना-संचयन तथा अज्ञेय काव्य-स्तवक, निराला-संचयन (संपादित)।
पुरस्कार-सम्मान : कई कृतियाँ पुरस्कृत; उपन्यास ‘किस्सा गुलाम’ नेशनल बुक ट्रस्ट द्वारा आठ भारतीय भाषाओं में अनूदित। ‘साहित्य अकादेमी पुरस्कार’, ‘शिखर-सम्मान’, ‘व्यास-सम्मान’ तथा भारत सरकार द्वारा ‘पद्मश्री’ से अलंकृत।

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