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Raven Ki Lokkathayen   

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Author Sushma Gupta
Features
  • ISBN : 9788177213898
  • Language : Hindi
  • Publisher : Prabhat Prakashan
  • Edition : 1
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  • Kindle Store

More Information

  • Sushma Gupta
  • 9788177213898
  • Hindi
  • Prabhat Prakashan
  • 1
  • 2020
  • 176
  • Hard Cover

Description

लोककथाएँ किसी भी समाज की संस्कृति का अटूट हिस्सा होती हैं, जो संसार को उस समाज के बारे में बताती हैं, जिसकी वे लोककथाएँ हैं। सालों पहले ये केवल जबानी कही जाती थीं और कह-सुनकर ही एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को पहुँचाई जाती थीं; इसलिए यह कहना मुश्किल है कि किसी भी लोककथा का मूल रूप क्या रहा हो!
रैवन का जिक्र केवल कनाडा की लोककथाओं में ही नहीं है, बल्कि ग्रीस और रोम की दंतकथाओं में भी पाया जाता है। प्रशांत महासागर के उत्तर-पूर्व के लोगों में रैवन की जो लोककथाएँ कही-सुनी जाती हैं, उनसे पता चलता है कि वे लोग अपने वातावरण के कितने अधीन थे और उसका कितना सम्मान करते थे।
रैवन कोई भी रूप ले सकता है— जानवर का या आदमी का। वह कहीं भी आ-जा सकता है और उसके बारे में यह पहले से कोई भी नहीं बता सकता कि वह क्या करनेवाला है।
रैवन की ये लोककथाएँ रैवन के चरित्र के बारे कुछ जानकारी तो देंगी ही, साथ में बच्चों और बड़ों दोनों का मनोरंजन भी करेंगी। आशा है कि ये लोककथाएँ पाठकों का मनोरंजन तो करेंगी ही, साथ ही दूसरे देशों की संस्कृति के बारे में जानकारी भी देंगी।

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अनुक्रम

भूमिका—Pgs. 5

रैवन की लोककथाएँ—Pgs. 7

1. रैवन ने व्हेल कैसे मारी—Pgs. 13

2. रैवन की समुद्री यात्रा—Pgs. 16

3. रैवन और बड़ी बाढ़—Pgs. 22

4. सूरज की चोरी—Pgs. 25

5. रैवन और बेचारी चिड़ियाँ—Pgs. 32

6. लोमड़ा और रैवन—Pgs. 34

7. रैवन और उल्लू—Pgs. 37

8. रैवन और मिंक—Pgs. 39

9. नर गिलहरी और रैवन—Pgs. 43

10. रैवन और एक आदमी—Pgs. 46

11. रैवन और कौए का पौटलैच—Pgs. 49

12. रैवन और बतखें—Pgs. 54

13. रैवन और उसकी बतख पत्नी—Pgs. 60

14. रैवन ने शादी की—Pgs. 62

15. रैवन और उसकी दादी—Pgs. 65

16. शिकारी रैवन—Pgs. 73

17. जब रैवन की आँखें खो गईं—Pgs. 79

18. जिराल्डा का रैवन—Pgs. 84

19. एक बूढ़े पति-पत्नी और जूता बनानेवाले—Pgs. 94

20. जब रैवन मारा गया—Pgs. 100

21. रैवन पकड़ना आसान नहीं—Pgs. 103

22. रैवन ने तेल बेकार किया—Pgs. 109

23. बोलता रैवन जो हीरो बन गया—Pgs. 116

 

The Author

Sushma Gupta

सुषमा गुप्ता का जन्म सन् 1943 में उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ शहर में हुआ था। उन्होंने आगरा विश्वविद्यालय से समाज शास्त्र और अर्थशास्त्र में एम.ए. किया और मेरठ विश्वविद्यालय से बी.एड. किया। सन् 1976 में ये नाइजीरिया चली गईं। वहाँ उन्होंने यूनिवर्सिटी ऑफ इबादान से लाइबे्ररी साइंस में एम.एल.एस. किया और एक थियोलॉजिकल कॉलेज में 10 वर्षों तक लाइब्रेरियन का कार्य किया। 
वहाँ से फिर वे इथियोपिया चली गईं और एडिस अबाबा यूनिवर्सिटी में इंस्टीट्यूट ऑफ इथियोपियन स्टडीज की लाइब्रेरी में 3 साल कार्य किया। तत्पश्चात् उन्हें दक्षिणी अफ्रीका के एक देश, लिसोठो के विश्वविद्यालय में इंस्टीट्यूट ऑफ सदर्न अफ्रीकन स्टडीज में एक साल कार्य करने का अवसर मिला। वहाँ से सन् 1993 में ये अमेरिका आ गईं, जहाँ उन्होंने फिर से मास्टर ऑफ लाइब्रेरी ऐंड इनफॉर्मेशन साइंस किया। फिर 4 साल ऑटोमोटिव इंडस्ट्री एक्शन ग्रुप के पुस्तकालय में कार्य किया। 
1998 में उन्होंने सेवानिवृत्ति ले ली और अपनी एक वेबसाइट बनाई—222. sushmajee.com। तब से ये उसी पर काम कर रही हैं।
लोककथाओं में विशेष अभिरुचि होने के कारण अधिक समय इन्हीं के संकलन-प्रकाशन पर व्यतीत।

 

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