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Patrakarita Jo Maine Dekha, Jana, Samjha   

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Author Sanjay Kumar Singh
Features
  • ISBN : 9789380839912
  • Language : Hindi
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  • Kindle Store

More Information

  • Sanjay Kumar Singh
  • 9789380839912
  • Hindi
  • Prabhat Prakashan
  • 2017
  • 184
  • Hard Cover

Description

स्वतंत्रता मिलने के बाद देश में लोकतांत्रिक व्यवस्था स्थापित हुई। प्रकारांतर में अखबारों की भूमिका लोकतंत्र के प्रहरी की हो गई और इसे कार्यपालिका, विधायिका, न्यायपालिका के बाद लोकतंत्र का ‘चौथा स्तंभ’ कहा जाने लगा। 
कालांतर में ऐसी स्थितियाँ बनीं कि खोजी खबरें अब होती नहीं हैं; मालिकान सिर्फ पैसे कमा रहे हैं। पत्रकारिता के उसूलों-सिद्धांतों का पालन अब कोई जरूरी नहीं रहा। फिर भी नए संस्करण निकल रहे हैं और इन सारी स्थितियों में कुल मिलाकर मीडिया की नौकरी में जोखिम कम हो गया है और यह एक प्रोफेशन यानी पेशा बन गया है। और शायद इसीलिए पत्रकारिता की पढ़ाई की लोकप्रियता बढ़ रही है, जबकि पहले माना जाता था कि यह सब सिखाया नहीं जा सकता है। 
अब जब छात्र भारी फीस चुकाकर इस पेशे को अपना रहे हैं तो उनकी अपेक्षा और उनका आउटपुट कुछ और होगा। दूसरी ओर मीडिया संस्थान पेशेवर होने की बजाय विज्ञापनों और खबरों के घोषित-अघोषित घाल-मेल में लगे हैं। ऐसे में इस पुस्तक का उद्देश्य पाठकों को यह बताना है कि कैसे यह पेशा तो है, पर अच्छा कॅरियर नहीं है और तमाम लोग आजीवन बगैर पूर्णकालिक नौकरी के खबरें भेजने का काम करते हैं और जिन संस्थानों के लिए काम करते हैं, वह उनसे लिखवाकर ले लेता है कि खबरें भेजना उनका व्यवसाय नहीं है।

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अनुक्रम

कहाँ से कहाँ आ गई पत्रकारिता  — Pgs. 7

लेखकीय — Pgs. 9

पुस्तक परिचय — Pgs. 13

1. अपेक्षा — Pgs. 17

2. पत्रकारिता  — Pgs. 26

3. शुरुआत  — Pgs. 34

4. रिपोर्टिंग  — Pgs. 43

5. स्थिति  — Pgs. 51

6. नौकरी  — Pgs. 59

7. हताशा  — Pgs. 68

8. हड़ताल — Pgs. 76

9. योग्यता  — Pgs. 84

10. चुनौतियाँ  — Pgs. 92

11. ‘जनसा’  — Pgs. 100

12. एसप्रेस  — Pgs. 108

13. प्रोडट — Pgs. 116

14. कायापलट — Pgs. 125

15. प्रेसटीट्यूट — Pgs. 134

16. बैसाखी — Pgs. 143

17. अधोगति — Pgs. 152

18. अनुभव — Pgs. 161

19. जोखिम — Pgs. 169

20. उपसंहार — Pgs. 177

The Author

Sanjay Kumar Singh

संजय कुमार सिंह

छपरा के मूल निवासी संजय कुमार सिंह का बचपन जमशेदपुर में बीता। स्कूल में रहते हुए ही वहाँ के हिंदी दैनिक ‘उदितवाणी’ और पटना से प्रकाशित होने वाले अंग्रेजी दैनिक ‘दि इंडियन नेशन’ में संपादक के नाम पत्र लिखने से शुरुआत करके ‘प्रभात खबर’, ‘आज’ आदि के लिए रिपोर्टिंग करते हुए आखिरकार ‘इंडियन एक्सप्रेस समूह’ के हिंदी अखबार ‘जनसत्ता’ के लिए प्रशिक्षु उप-संपादक चुन लिये गए। वहाँ 1987 से 2002 तक रहे। फिलहाल अंग्रेजी से हिंदी अनुवाद करनेवाली फर्म ‘अनुवाद कम्युनिकेशन’ के संस्थापक हैं। संजय का कहना है कि ‘जनसत्ता’ की नौकरी उन्हें जिस और जैसी परीक्षा के बाद मिली थी, वैसी परीक्षा ‘जनसत्ता’ में एक और बार ही हुई तथा इसमें बैठने की हिम्मत नहीं जुटा पानेवाले कई मित्र आज बड़े पत्रकार और मीडिया की हस्ती हैं। ऐसे में यह अफसोस होना स्वाभाविक है कि उन्हें क्यों चुन लिया गया।

अखबार की नौकरी करने का निर्णय करने से पहले यह पुस्तक पढ़ने से पाठक को इस प्रोफेशन के विषय में एक अंतर्दृष्टि मिलेगी।

संपर्क : 9810143426

anuvaad@hotmail.com

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