Prabhat Prakashan, one of the leading publishing houses in India eBooks | Careers | Events | Publish With Us | Dealers | Download Catalogues
Helpline: +91-7827007777

Karma Hi Pooja Hai   

₹500

In stock
  We provide FREE Delivery on orders over ₹1500.00
Delivery Usually delivered in 5-6 days.
Author Ram Sahay
Features
  • ISBN : 9789386054814
  • Language : Hindi
  • Publisher : Prabhat Prakashan
  • Edition : Ist
  • ...more
  • Kindle Store

More Information

  • Ram Sahay
  • 9789386054814
  • Hindi
  • Prabhat Prakashan
  • Ist
  • 2018
  • 232
  • Hard Cover

Description

प्रस्तुत पुस्तक ‘कर्म ही पूजा है’ में समाहित ज्ञान छोटे बच्चों से लेकर किसी भी आयु वर्ग के लिए उपादेय होगा। पुस्तक के पाठक, शिक्षक का भी कर्तव्य बनता है कि पुस्तक के छिपे ज्ञान के खजाने को बच्चों में पठन के प्रति रुचि उत्पन्न कर उन तक पहुँचाना एक श्रेयस्कर कदम होगा।
इस पुस्तक में प्रकाशित महापुरुषों के जीवन से जुड़ी घटनाएँ बच्चों को आदर्श भावी नागरिक बनाने की दिशा में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। इस पुस्तक के अनेक प्रसंग जन-जागृति की दिशा में एक अच्छी पहल है यथा—गुरु-शिष्य संबंध, दंड-संत टॉलस्टाय की सरलता-प्रेम सर्वोपरि, शिरडी के साँई बाबा, कर्तव्य-निष्ठा, अनाशिक्त, गांधीजी द्वारा पशु-वध का विरोध, क्रांतिकारियों के आदर्श कृष्ण और जल संरक्षण जाति का ढोल सुख एवं दुःख स्वावलंबन, एकता, सेवा-धर्म, महान् दधीचि का त्याग, गौतमी का आत्मबोध गतिशीलता की प्रधानता जैसी इस पुस्तक की विषयवस्तु ज्ञानामृत की आधारिशला है। सच्चा ज्ञान ही हमारे जीवन का आधार बिंदु है। निसंदेह सभी आयु वर्ग के पाठकों के लिए यह एक प्रेरणादायी पुस्तक है।

__________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________

अनुक्रम    
संदेश—7 88. सत्कर्म करते परमात्मा की शक्ति से जुड़ना श्रेष्ठ है—92 177. राष्ट्रभक्त सुभाष—150
भूमिका—9 89. ईश्वर इच्छा ही सर्वोपरि है—93 178. न्यायप्रियता—151
1. ज्योति जीवन का पर्याय—23 90. गांधीजी द्वारा पशु वध का विरोध—93 179. तत्त्व-बोध—151
2. बड़ों की आज्ञा का पालन—24 91. अहंकार रूपी अंधकार से मुक्ति के लिए अपने भीतर जागरण का दीप जलाएँ—94 180. कर्म का प्रतिफल—152
3. गुरु-शिष्य संबंध—24 92. पुत्र को माँ का आशीर्वाद—95 181. लोकमंगल की कामना—153
4. चोर ने चोरी छोड़ दी—25 93. दास प्रथा से मुक्ति—96 182. हाँड़ी के चावल—153
5. सत्कर्मों से कल्याण—26 94. श्रद्धा का आधार—97 183. सदुपयोग—154
6. भाषण में शिष्टता—26 95. क्रांतिकारियों के आदर्श—97 184. सर्वव्यापी ईश्वर—154
7. आसक्ति ही बंधन—27 96. धर्म की कसौटी—98 185. दधीचि का त्याग—155
8. करामातों से बचो—28 97. स्वाभिमानी माँ—99 186. कर्म ही धर्म है—155
9. गुरु की शिक्षा—29 98. कार्नेगी का समाज-प्रेम—100 187. मानव जीवन परमात्मा की प्राप्ति के लिए है—156
10. रहस्य—29 99. कृष्ण की कृपा और जल-संरक्षण—100 188. जैसी दृष्टि होगी, सृष्टि वैसी ही नजर आएगी—157
11. विद्या प्राप्ति के लिए त्याग की आवश्यकता—30 100. शेख फरीद—101 189. जीवन में नामुमकिन कुछ भी नहीं है—158
12. कलगी नहीं झुका सकता—30 101. जापान के गांधी—102 190. प्रशंसा से बचो—159
13. नींव का पत्थर—31 102. राजधर्म—102 191. धन की तीन स्थितियाँ—159
14. दंड—31 103. समस्या का निदान—103 192. नाम अलग-अलग हैं, पर ईश्वर एक है—160
15. चिरंतन सत्य—32 104. जब भगवान् हुए नीलाम—104 193. गौतमी का आत्मबोध—161
16. बाबा मस्तराम का त्याग—32 105. प्रोत्साहन—104 194. समय का सदुपयोग—162
17. भारतीय की सहिष्णुता—33 106. संत की सलाह—105 195. भगवान् शिव—162
18. साधु की सद्प्रेरणा—33 107. गुरु की ताड़ना—106 196. राजा विक्रमादित्य—163
19. क्षमा बलवान का आभूषण है—34 108. तुलाधार की तीर्थयात्रा—106 197. जो जैसा होता है, उसे वैसा ही दिखाई देता है—164
20. इतिहास कर्मठता की गौरव गाथा—35 109. दुराचरण का फल—107 198. गुरु से किया गया छल सभी छलों से भयावह—165
21. चाटुकारिता एक बाधा के रूप में—35 110. विश्वरथ का राजपाट त्याग—107 199. खुद को चोटिल कर संत नामदेव ने दिया संदेश—166
22. अविश्वास पतन का कारण—36 111. लक्ष्मी का आगमन—108 200. जब इंद्र की तुलना में जुआरी श्रेष्ठ सिद्ध हुआ—167
23. नरक को पसंद किया—37 112. देशभक्ति—108 201. जनसेवा के लिए महात्मा विद्रुध ने छोड़ा स्वर्ग—168
24. त्याग को प्रदर्शित न करें—38 113. स्वच्छ मन—108 202. युवक ने साहित्यकार से बेटी का हाथ माँग लिया—169
25. संत टालस्टॉय की सरलता—39 114. अंतिम परीक्षा—109 203. जब क्रोधी आदमी ने बुद्ध के मुँह पर थूक दिया—170
26. अभिशाप नहीं, वरदान—39 115. सबसे दुर्लभ क्या—110 204. हजरत मोहम्मद ने दिखाया वृद्धा को सही रास्ता—171
27. राजा सबसे बड़ा भिखारी—40 116. सुभद्रा की प्रतिभा का विकास—110 205. मानवता प्रेमियों की होती है अग्नि-परीक्षा—172
28. प्रेम सर्वोपरि—41 117. उदारता—111 206. भगवान् महावीर—173
29. तुच्छ मूल्य के लिए अमूल्यों की बलि मत चढ़ाओ—42 118. सादगी—111 207. शिष्य आनंद के जवाब से प्रसन्न हुए गौतम बुद्ध—174
30. पेंशन का आधार—43 119. बुद्धि की सुंदरता शरीर की सुंदरता पर निर्भर नहीं—112 208. वैज्ञानिक रमन ने ज्ञान के बदले चरित्र को चुना—174
31. गरीबी ने बनाया शाकाहारी—44 120. जाति का ढोल—112 209. तप करनेवाले से ज्यादा श्रेष्ठ था वह चांडाल—175
32. लक्ष्मण और आँसू—44 121. खुशी के आँसू—114 210. जब रामकृष्ण परमहंस ने दी अपने गुरु को शिक्षा—176
33. शिरडी के साईं बाबा—45 122. मीठी चीज—115 211. नेहरू ने दी व्यर्थ आडंबर से बचने की सलाह—177
34. शिक्षा का प्रकाश—46 123. इच्छित वस्तु—115 212. मनुष्य का सिर लेने को कोई तैयार नहीं हुआ—178
35. मोह से मुक्ति—47 124. जन-विश्वास —115 213. विनम्रता से व्यक्तित्व में निखार—179
36. महानता का मापदंड—47 125. हस्ताक्षरों की कीमत—116 214. विदेह नरेश पर क्रोधित हो उठे जब गांधार नरेश —180
37. मर्मज्ञ जीवन-जगत् के रहस्य को सहज समझ लेता है—48 126. राष्ट्रीय संपत्ति का महत्त्व—117 215. जब परमभक्त के अपराध का पश्चात्ताप राम ने किया—181
38. महापुरुषों के जीवन से प्रेरणा लें—49 127. खाली हाथ—118 216. जब महावीर ने गृहस्थ के आगे माथा टेका—181
39. निःस्पृह भाव से मानव की सेवा—50 128. तीस पुत्रों का पिता—119 217. मकड़ी ने राजा को दिया जीतने का सबक—182
40. बादशाह बड़ा भिखारी—50 129. कर्तव्य-पालन का प्रतिफल—119 218. महादजी की जान बचाने के लिए राणे ने बोला झूठ—183
41. कर्तव्य निष्ठा—51 130. माँ की प्रेरणा—120 219. गेटे की हाजिरजवाबी से आलोचक पानी-पानी हुआ—184
42. स्वामी विवेकानंद की भोजन व्यवस्था—52 131. दूसरों पर दया—120 220. 80 साल के बुजुर्ग ने चीनी सीखकर लिखी किताब—185
43. किनारे पर बैठकर नदी का मर्म नहीं समझा जा सकता—53 132. आत्मा का भोजन—120 221. ईश्वरचंद्र विद्यासागर ने की अपने नौकर की सेवा—186
44. गुरु के लिए सब तुच्छ—54 133. अमरत्व क्या है?—121 222. आखिरकार संत तेप्युजेन का संकल्प रंग लाया—187
45. सेवा कार्य की प्रधानता—55 134. व्यक्ति अपने अभाव से नहीं, दूसरे के प्रभाव से दुःखी है—121 223. जब गांधीजी भोजन के लिए लाइन में लगे—188
46. समस्या के हल की तलाश —55 135. धर्म पर अधर्म की कभी विजय नहीं हो सकती—122 224. विश्व विजेता सिकंदर हुआ शर्म से पानी-पानी—188
47. दुष्कर्म का फल अवश्य मिलता है—56 136. सुख और दुःख—124 225. सम्राट् ने फिर से जीत लिया प्रजा का मन—189
48. मनुष्य की नासमझी—57 137. उचित शैली—124 226. मंदबुद्धि बालक वरदराज विद्वान् बनकर उभरा—190
49. सही निर्णय गलत रूप से जब प्रभावित हों—58 138. बात हैसियत की—125 227. राजा ने अपने आलोचक को भेजा उपहार—191
50. धैर्य जीवन की सफलता का आधार—59 139. ईश्वर की इच्छा—127 228. देशकाल व परिस्थितियों में ढलने से पूरा हुआ लक्ष्य—192
51. भले आदमी की भलाई का महत्त्व बना रहे—59 140. शास्त्रीजी की सादगी—127 229. अहंकारी गरुड़ का घमंड आखिरकार चूर हुआ—193
52. जनता के साथ भेदभाव नहीं—60 141. स्वावलंबन—128 230. रूपसिंह ने तोड़ा शीशा, बदले में पाया इनाम—194
53. अलग-अलग इच्छा—61 142. भिक्षा—128 231. सुभाषचंद्र की प्रतिभा का लोहा मान गए परीक्षक—195
54. आदर्श व्यक्तित्व—62 143. सच्चा उपदेश—129 232. जब अपने ही विवाह में नहीं पहुँचे लुई पाश्चर—196
55. राष्ट्र के जीवन में आत्मविश्वास का महत्त्व—63 144. ऊँचे लक्ष्य की ओर—129 233. चित्रकेतु का अहम्—196
56. राज्य का मूल्य—63 145. शांतिपूर्ण जीवन—130 234. जब विनोबाजी ने गांधीजी का भेजा पत्र फाड़ दिया—197
57. युवक को प्रेरणा—64 146. शत्रु से भी प्यार करो—130 235. जब लेनिन को होटल के बैरे ने पैसे उधार दिए—198
58. अपरिग्रही शिष्य—65 147. मर्यादा—131 236. नेहरूजी ने कहा : मत डरो और आत्मनिर्भर बनो—199
59. माला देवताओं के लिए—66 148. कल्पनाओं का सागर—132 237. अद्भुत स्मरणशक्ति—200
60. प्रेम-सहयोग ही ईश्वर की सच्‍ची पूजा—67 149. त्याग की भावना—132 238. क्रोध को नम्रता से जीतना—201
61. प्रेम, ज्ञान, शक्ति व सौंदर्य से ही सत्य बना है—68 150. दान देना भी सीखें—133 239. रूढ़ियों एवं अंधविश्वास का विरोध—202
62. कविता के समक्ष हीरे का कोई महत्त्व नहीं—69 151. भय व संकीर्णता को छोड़ो—133 240. सगुण उपासना का संदेश—203
63. पापी से घृणा मत करो—70 152. अंतरात्मा को जगा दिया—134 241. घर की विद्वत्ता का सम्मान—204
64. यश की प्रतिद्वंद्विता—70 153. अमरता की शर्त—134 242. स्वाभिमान—205
65. परलोक से इस लोक की चिंता उचित है—71 154. जिंदगी की अहमियत—135 243. धन के प्रति अनासक्ति एवं अद्भुत स्मरण क्षमता—206
66. प्रजा की वस्तु का मूल्य चुकाओ—72 155. सत्य की खोज—135 244. अद्भुत साहस—207
67. परमात्मा को कैसे जानें—73 156. अंजलि भर जल—136 245. आत्म-प्रशंसा पतन का कारण —208
68. मैं अपने को न पा सका—74 157. दान स्वीकार नहीं—136 246. आडंबर भक्ति का माध्यम नहीं हो सकता—209
69. श्रद्धा-भावना का दोहन—74 158. मातृत्व—137 247. नम्रता का आदर्श रूप—210
70. मुक्ति का मार्ग—75 159. तनाव की दवा—138 248. लेख का महत्त्व होता है, लेखक का नहीं—211
71. राजा की सोच बदली—76 160. पुरुषार्थ—138 249. सिफारिश के विरोधी—212
72. अंधकार के बाद ही प्रकाश का आनंद है—76 161. मेधावी सुभाष—139 250. अच्छे कलाकार का सदैव सम्मान होता है—213
73. गुरु के प्रति असीम भक्ति—77 162. ईश्वर कहाँ है?—139 251. गोपीनाथ की विद्वत्ता—214
74. कर्म ही सफलता का आधार—78 163. सच्चा साधु—140 252. श्रोता द्वारा वक्ता का मूल्यांकन—215
75. ईमानदारी का आदर्श रूप—79 164. त्यागमयी कमला—140 253. सच्चा वीर सच्चे वीर का सम्मान करना जानता है—216
76. मनुष्य ही परमात्मा का साक्षात् मंदिर है—80 165. सात हिंदुस्तानी—141 254. महान् आत्मा विद्वत्ता का सम्मान करना जानती है—217
77. संन्यासी को अहंकार व आसक्ति छोड़ने की आवश्यकता है—81 166. चमत्कार—142 255. आत्मोत्सर्ग देवत्व की सीढ़ी है—218
78. मध्यम मार्ग ही फलदायक होता है—82 167. विद्वान् ब्राह्मण ही पूजा योग्य है—142 256. सत्य की साधना ही सिद्धि प्राप्ति का मार्ग है—219
79. समस्या का हल मनुष्य करता है, विधि नहीं—83 168. एकता—143 257. लोभ के वशीभूत माँगा गया वरदान अभिशाप बन जाता है—220
80. जो कल्याणकारी है, वही सत्य है, बाकी असत्य—84 169. बुरा और अच्छा व्यक्ति—143 258. आराधना में बाधक—221
81. अनासक्त पुरुष कर्म करते हुए भी कर्म बंधन में नहीं पड़ता—85 170. असली हकदार—144 259. निर्लोभी मनुष्य का सिर सदा ऊँचा रहता है—222
82. गुस्सा एक प्रकार का क्षणिक पागलपन है—86 171. अद्भुत इंजीनियर—145 260. पावन मंत्र का उच्चारण—223
83. अनाशक्ति—87 172. सेवाधर्म महान्—146 261. मानव मन की विवशता—224
84. परमात्मा को जानने के लिए उसके ध्यान में डूब जाना पड़ता है—88 173. ईमानदारी—146 262. माँ-बाप की महानता—225
85. सच्चाई को जाने—89 174. गुणी आलोचक के दायित्व—147 263. संतोष का महत्त्व—226
86. क्या अध्ययन करना चाहिए, यह कोई नहीं जानता—90 175. ममता का खिंचाव—148 264. आत्मज्ञान सर्वश्रेष्ठ है—228
87. घमंड मत कर, यह एक दिन तुझे सिर के बल गिरा देगा—91 176. स्वाधीनता की बलिवेदी पर—149 265. गतिशीलता की प्रधानता—229

The Author

Ram Sahay

जन्म  :  19 अगस्त, 1934।
शिक्षा  :  एम.ए. (राजनीति विज्ञान), बी.टी.।
कर्तृत्व  :  समाज के पूर्व राष्ट्रीय उपाध्यक्ष, पूर्व जिला समाज-अध्यक्ष, स्थानीय समाज के पूर्व अध्यक्ष, समाज के राष्ट्रीय संरक्षक, जिला वैश्य महासम्मेलन-उपाध्यक्ष, समाज पत्रिका प्रभारी, सुंदरदास पुस्तकालय की स्थापना, स्थानीय समाज भवन में संत श्री सुंदरदास एवं बलराम दासजी की प्रतिमाओं की स्थापना, स्थानीय मंडी चौराहा पर संत श्री सुंदर दास की प्रतिमा की स्थापना, स्थानीय स्तर पर विभिन्न क्षेत्रों में सेवा कार्य।
प्रकाशन  :  ‘प्रकृति की गोद में’, ‘सांस्कृतिक उत्थान का मार्ग’, ‘कर्म ही पूजा है’, ‘परमार्थ ही जीवन है’ प्रकाशित। 
संपर्क  :  वार्ड नं. 16, खेरली जिला अलवर (राज.)।

 

Customers who bought this also bought

WRITE YOUR OWN REVIEW