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Jeet Lo Har Shikhar

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Author Kiran Bedi
Features
  • ISBN : 9789350484951
  • Language : Hindi
  • Publisher : Prabhat Prakashan
  • Edition : 1st
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  • Kindle Store

More Information

  • Kiran Bedi
  • 9789350484951
  • Hindi
  • Prabhat Prakashan
  • 1st
  • 2016
  • 184
  • Hard Cover
  • 370 Grams

Description

जीत लो हर शिखर‘जीत लो हर शिखर’ एक ऐसी पुस्तक है, जिसमें अलग-अलग व्यक्‍तियों की आपबीती (जिनमें से कुछ पुलिस अत्याचार के पीड़ित रहे हैं) का प्रत्यक्ष एवं स्पष्‍ट वर्णन है। इन्होंने स्वेच्छा से अपनी-अपनी कहानी सुनाई, हालाँकि उनमें से अनेक ऐसे भी हैं, जिनका अतीत संदिग्ध रहा है। पुरुषों, स्‍‍त्रियों और बच्चों ने यह बताने की हिम्मत जुटाई कि उनके जीवन में क्या-क्या गलत हुआ और अपनी दुर्दशा के लिए किस हद तक वे स्वयं को उत्तरदायी मानते हैं तथा किस हद तक उन परिस्थितियों को, जिन पर उनका कोई वश नहीं था।
प्रस्तुत पुस्तक में विभिन्न प्रकार के लोगों की असल जिंदगी, उनकी जबानी सुने दिल दहलानेवाले अनुभवों का वर्णन है, जिनमें शामिल हैं—घरेलू हिंसा और पुलिस अत्याचार के मारे, ड्रग्स लेने के आदी, अपराधी और बाल-अपराधी। लेखिका को इनकी बात गहरे तक छू गई, अतः वे इस प्रकार के दुराचार और अन्याय की मूक-दर्शक बनी नहीं रह सकती थीं। उन्होंने एक ऐसा संगठन बनाने का निश्‍चय किया, जो नशे की लत के आदी और समाज के सताए लोगों का मददगार बन सके और उनका जीवन सुधार सके।जाँबाज शीर्ष पुलिस अधिकारी किरण बेदी ने सदा सच्चाई का मार्ग चुना, चाहे उसमें कितने ही व्यवधान आए; आम आदमी में पुलिस के प्रति विश्‍वास उत्पन्न कराया और उनकी भरपूर मदद कर अपने पद को गरिमा दी। समाज-सुधार का पथ-प्रशस्त करती मर्मस्पर्शी जीवन-कथाओं का प्रेरक संकलन।

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अनुक्रम

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1. एक निराश्रिता की आपबीती — Pgs. 11

2. क्रूरता पारिवारिक संबंधों को नहीं पहचानती — Pgs. 15

3. बाप के व्यभिचार की शिकार बेटी की पीड़ा — Pgs. 17

4. क्या बहकाकर शादी के जाल में फँसाया? — Pgs. 20

5. अंत भला तो सब भला — Pgs. 23

6. सहमति से या जबरदस्ती? — Pgs. 26

7. अपनी पहचान न छोड़ें — Pgs. 28

8. कूदने से पहले देख लें — Pgs. 30

9. पैसों के लिए पत्नी की अदला-बदली — Pgs. 32

10. शिक्षित महिलाएँ भी दब्बू बन जाती हैं — Pgs. 35

11. डरपोक नहीं, साहसी बनें स्त्रियाँ — Pgs. 38

12. यह न समझें कि स्त्रियों के कष्टों को सुननेवाला कोई नहीं — Pgs. 40

13. अंतिम विकल्प : तलाक — Pgs. 43

14. अत्याचारी पुलिस और उसके कुटिल तरीके — Pgs. 45

15. विवाह का सुबूत देखने से पुलिस का इनकार — Pgs. 49

16. घुड़दौड़ में घुड़सवारी से खतरनाक क्षेत्र में प्रवेश — Pgs. 52

17. ड्रग्स : ऐसा साँप, जो पूरा डस लेता है — Pgs. 56

18. शराब का फंदा — Pgs. 59

19. ड्रग्स : जानलेवा नशेबाजी — Pgs. 62

20. फंदेबाजों से सावधान रहें — Pgs. 65

21. कर्ज बना गले का फंदा — Pgs. 67

22. भेडि़ए — Pgs. 69

23. मैं क्यों बना हत्यारा? — Pgs.

24. शादी, शादी और शादी — Pgs. 75

25. बहन बहन की दुश्मन — Pgs. 78

26. काहे का सत्यमेव जयते — Pgs. 81

27. इन बच्चों को बचाओ — Pgs. 86

28. मजबूरी का दर्द — Pgs. 89

29. हृश्वयार, शोषण और धोखा — Pgs. 92

30. अनाथों से नाइनसाफी — Pgs. 95

31. है हिम्मत — Pgs. 99

32. पीडि़त मसीहा — Pgs. 103

33. लौटी जिंदगी — Pgs. 108

34. सपनों की हकीकत — Pgs. 111

35. आ, अब लौट चलें — Pgs. 114

36. आँख खुलने के बाद — Pgs. 117

37. फिर सुबह होगी — Pgs. 120

38. दलदल में तिल-तिल — Pgs. 123

39. मकड़जाल — Pgs. 126

40. उजाले की किरण — Pgs. 130

41. सपनों से दूर हकीकत — Pgs. 133

42. रंग बदलती जिंदगी — Pgs. 137

43. कतरा-कतरा जिंदगी — Pgs. 141

44. कुसूरवार कौन? — Pgs. 144

45. सिगरेट से हेरोइन तक — Pgs. 147

46. अपराधी बना उपदेशक — Pgs. 150

47. सपना ऐसे टूटा — Pgs. 155

48. देर होने से पहले — Pgs. 159

49. आसमान से गिरा — Pgs. 162

50. एक गलत फैसला — Pgs. 166

51. अपने दम पर — Pgs. 169

52. दर-बदर का दंश — Pgs. 173

53. हमारा क्या कुसूर — Pgs. 177

परिशिष्ट-1 : इंडिया विजन फाउंडेशन — Pgs. 180

परिशिष्ट-2 : नवज्योति : सुधार, नशा-मुक्ति एवं पुनर्वास के लिए दिल्ली पुलिस फाउंडेशन — Pgs. 182

The Author

Kiran Bedi

भारत की पहली महिला आई.पी.एस. किरण बेदी सन् 1972 में भारतीय पुलिस सेवा में शामिल हुईं। पुलिस सेवा में सबसे ऊँचे पद पर पहुँचनेवाली वे देश की पहली महिला पुलिस अधिकारी हैं। पुलिस और जेल विभाग में रचनात्मक सुधार करने की उन्हें पैंतीस साल से अधिक की विशेषज्ञता हासिल है।
उन्होंने कानून, स्नातकोत्तर और डॉक्टरेट की उपाधियाँ हासिल की हैं। उन्हें एशिया का नोबेल पुरस्कार कहा जानेवाला प्रतिष्‍ठित ‘रेमन मैग्सेसे पुरस्कार’ भी मिल चुका है। इसके साथ ही उन्हें कई राष्‍ट्रीय व अंतरराष्‍ट्रीय सम्मान भी मिले हैं। उनके लेख भी प्रमुख समाचार-पत्रों व पत्रिकाओं में नियमित रूप से छपते रहते हैं।
वे दो स्वैच्छिक संगठनों—‘नवज्योति’ और ‘इंडिया विजन फाउंडेशन’ की संस्थापक हैं।

इंडिया अगेंस्ट करप्शन आंदोलन, पुलिस और जेल-सुधार के विभिन्न उपक्रमों में वे अग्रणी भूमिका निभा चुकी हैं।
उन्होंने कई पुस्तकें लिखी हैं, जिनमें ‘इट्स ऑलवेज पॉसिबल’, ‘वॉट वेंट रॉन्ग’, ‘एज आई सी’, ‘ब्रूम एंड ग्रूम’ और ‘अपराइजिंग 2011’ प्रमुख हैं।

अधिक जानकारी के लिए उनकी वेबसाइट www.kiranbedi.com या tweet@thekiranbedi देख सकते हैं।

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