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Hindi Ki Vartani   

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Author Sant Sameer
Features
  • ISBN : 9788173157493
  • Language : Hindi
  • Publisher : Prabhat Prakashan
  • Edition : 1st
  • ...more

More Information

  • Sant Sameer
  • 9788173157493
  • Hindi
  • Prabhat Prakashan
  • 1st
  • 2019
  • 256
  • Hard Cover
  • 350 Grams

Description

'योतो विस्तृत क्षेत्रफल में बोली जानेवाली किसी भी भाषा मे क्षेत्रीयता, भौगोलिक परिस्थितियों, सामाजिक-सांस्कृतिक पृष्ठभूमि आदि के कारण उच्चारणगत परिवर्तन दष्टिगोचर होते हैं, पर लेखन के स्तर पर व रानी की जैसी अराजकता आजकल हिंदी में दिखाई देती है, वैसी अन्य भाषाओं में नहीं है। संसार की सर्वाधिक वैज्ञानिकतापूर्ण लिपि में लिखी जाने के बावजूद हिंदी का हाल यह है कि बहुत से ऐसे शब्द हैं, जिनकी वर्तमान में कई- कई वर्तनी प्रचलित हैं। जबकि किसी भी दृष्टिकोण से विचार करने पर इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि साधारण या विशिष्ट, किसी भी तरह के लेखन में शब्दों की वर्तनी के मानक स्वरूप की आवश्यकता होती ही है।
प्रस्तुत पुस्तक में लेखक, पत्रकार और प्रतिष्ठित समाजकर्मी संत समीर ने हिंदी-वर्तनी की विभिन्न समस्याओं पर तर्कपूर्ण ढंग से विचार करते हुए कई महत्त्वपूर्ण सुझाव दिए हैं। लेखक ने हिंदी-वर्तनी का मानक स्वरूप निर्धारित करने में हिंदी के समाचार-पत्रों की अहम भूमिका रेखांकित की है । हमें उम्मीद है कि यह पुस्तक हिंदी भाषा की वर्तनी के मुद्दे पर हिंदीभाषी जनता को जागरूक बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी।

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सूची-क्रम

इतिहास संरक्षण का विनम्र प्रयास —Pgs. 5

अपनी बात —Pgs. 9

1. मानक वर्तनी की आवश्यकता क्यों —Pgs. 17

2. देवनागरी लिपि की वैज्ञानिकता —Pgs. 22

3. समाचार-पत्र-पत्रिकाओं की वर्तनी नीतियों पर एक दृष्टि —Pgs. 27

4. केंद्रीय हिंदी निदेशालय द्वारा प्रस्तावित मानक वर्तनी  —Pgs. 46

5. हिंदी वर्तनी की प्रमुख समस्याएँ —Pgs. 63

6. पंचमाक्षर बनाम अनुस्वार —Pgs. 65

7. अनुनासिकता की समस्या —Pgs. 75

8. विसर्ग की बेदख़ली आसान नहीं —Pgs. 81

9. ध्वनियों के संदर्भ में कुछ और —Pgs. 87

10. विभक्ति-चिह्न मिलाएँ या अलग लिखें —Pgs. 94

11. ‘वाला’ प्रत्यय का प्रयोग —Pgs. 99

12. आदरसूचक शब्दों का प्रयोग —Pgs. 101

13. गा-गे-गी की बात —Pgs. 102

14. श्रुतिमूलक ‘य’, ‘व’ की समस्या —Pgs. 103

15. दो रूप वाले वर्णों की समस्या —Pgs. 111

16. व्यंजनों के संयोगी रूप —Pgs. 115

17. हल् चिह्न लगाएँ या हटाएँ —Pgs. 120

18. एकाधिक उच्चारण वाले शब्द —Pgs. 125

19. मिलते-जुलते उच्चारण वाले शब्द —Pgs. 131

20. गिनती के शब्द —Pgs. 141

21. अंग्रेज़ी मूल के शब्दों का सवाल —Pgs. 152

22. अंग्रेज़ी शब्दों के बहुवचन रूप —Pgs. 159

23. विदेशी संज्ञाओं की वर्तनी —Pgs. 162

24. विदेशी ध्वनियों के चिह्न —Pgs. 165

25. उर्दू का नुक़्ता अपनाएँ या भूल जाएँ —Pgs. 167

26. शब्दों के शुद्ध प्रयोग —Pgs. 184

27. अशुद्ध वर्तनी के शिकार शब्द —Pgs. 192

28. बात विराम चिह्नों की —Pgs. 208

अंतरजाल पर हिंदी —Pgs. 237

29. अराजकता-ही-अराजकता —Pgs. 237

30. महा-लोकतंत्र की महा-संभावनाएँ —Pgs. 240

31. कितने कुंजीपटल! —Pgs. 248

32. फॉण्ट की समस्या —Pgs. 251

33. रोमन में कैसी हिंदी —Pgs. 253

संदर्भ स्रोत —Pgs. 256

 

The Author

Sant Sameer

जन्म : 10 जुलाई, 1970।
शिक्षा : समाजशास्‍‍त्र में स्नातकोत्तर।
प्रतिष्‍ठि समाजकर्मी संत समीर उन कुछ महत्त्वपूर्ण लोगों में से हैं, जिन्होंने स्वतंत्र भारत में पहली बार बहुराष्‍ट्रीय उपनिवेश के खिलाफ आवाज उठाते हुए अस्सी के दशक के उत्तरार्ध में स्वदेशी-स्वावलंबन का आंदोलन पुनः शुरू किया। समाजकर्म के ही समानांतर लेखन में भी उनकी सक्रियता बराबर बनी हुई है। संख्यात्मक रूप से कम लिखने के बावजूद आपकी लिखी कुछ पुस्तकें और आलेख खासे चर्चित रहे। हैं। कुछ लेखों की अनुगूँज संसद् और विधानसभाओं तक भी पहुँची है। वैकल्पिक चिकित्सा, समाज-व्यवस्था, भाषा, संस्कृति, अध्यात्म आदि आपकी रुचि के खास विषय रहे हैं।
वैकल्पिक पत्रकारिता की दृष्‍टि से नब्बे के दशक की प्रतिष्‍ठित फीचर सर्विस ‘स्वदेशी संवाद सेवा’ के आप संस्थापक संपादक रहे। बहुराष्‍ट्रीय उपनिवेशवाद, वैश्‍वीकरण, डब्ल्यूटीओ जैसे मुद‍्दों पर बहस की शुरुआत करनेवाली इलाहाबाद से प्रकाशित वैचारिक पत्रिका ‘नई आजादी उद‍्घोष’ के भी संपादक औ सलाहकार संपादक रहे। व्यावसायिक पत्रकारिता के तौर पर कुछ अखबारों व न्यूज एजेंसियों के लिए खबरनवीसी भी की। कुछ समय तक क्रॉनिकल समूह के पाक्षिक ‘प्रथम प्रवक्‍ता’ से जुडे़ रहने के बाद फिलहाल हिंदुस्तान टाइम्स समूह की मासिक पत्रिका ‘कादंबिनी’ से जुड़े हुए हैं। इसके अलावा रेडियो लेखन और विभिन्न टी.वी. चैनलों के कार्यक्रमों में भी जब-तब आपकी सक्रियता बनी रहती है।
कृतियाँ : ‘सफल लेखन के सूत्र’ (1996), ‘स्वदेशी चिकित्सा’ (2001), ‘सौंदर्य निखार’ (2002), ‘स्वतंत्र भारत की हिंदी पत्रकारिता : इलाहाबाद जिला’ (शोध प्रबंध, 2007) ‘हिंदी की वर्तनी’ (2010), पत्रकारिता के युग निर्माता : प्रभाष जोशी (2010)।
संपर्क : सी-319/एफ-2, शालीमार गार्डन एक्सटेंशन-2, साहिबाबाद, गाजियाबाद-201005 (उ.प्र.)
मोबाइल : 9868202052, 9868902022
इ-मेल: santsameer@gmail.com

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