Prabhat Prakashan, one of the leading publishing houses in India eBooks | Careers | Events | Publish With Us | Dealers | Download Catalogues
Helpline: +91-7827007777

Hindi Bal Sahitya Ka Itihas   

₹1000

Out of Stock
  We provide FREE Delivery on orders over ₹1500.00
Delivery Usually delivered in 5-6 days.
Author Prakash Manu
Features
  • ISBN : 9789352666713
  • Language : Hindi
  • Publisher : Prabhat Prakashan
  • Edition : Ist
  • ...more
  • Kindle Store

More Information

  • Prakash Manu
  • 9789352666713
  • Hindi
  • Prabhat Prakashan
  • Ist
  • 2018
  • 556
  • Hard Cover

Description

हिंदी बाल साहित्य के इस नवोन्मेष और उन्नयन-काल में उसके इतिहास लेखन की जरूरत भी बड़ी शिद्दत से महसूस की जा रही थी। बाल साहित्य की अलग-अलग विधाओं के इतिहासपरक अध्ययन की किंचित् कोशिशें भी हुईं, पर समूचे हिंदी बाल साहित्य के इतिहास लेखन की दिशा में कोई गंभीर पहल अब तक नहीं हुई थी। पिछले कोई सवा सौ वर्षों में लिखे गए बाल साहित्य की अलग-अलग विधाओं की हजारों दुष्प्राप्य पुस्तकों को इकट्ठा करके, उनका काल-क्रमानुसार अध्ययन, यह काम किसी दुर्गम पहाड़ की चढ़ाई से कम न था। पर बरसों तक ‘नंदन’ पत्रिका के संपादन से जुड़े रहे, बच्चों के प्रिय लेखक और सुप्रसिद्ध साहित्यकार प्रकाश मनु ने इस गुरुतर कार्य का जिम्मा उठाया। कोई दो-ढाई दशकों से वे इस काम में जुटे थे और उनके निरंतर अध्यवसाय और निराली धुन का ही नतीजा है कि हिंदी बाल साहित्य का पहला इतिहास अब सुधी पाठकों और आलोचकों के सामने है।
यह बहुत प्रसन्नता और संतोष की बात है कि जिस हिंदी बाल साहित्य के इतिहास-लेखन के लिए वे इतने लंबे समय से निरंतर खट रहे थे, उसकी पूर्णाहुति ऐसे सुखद काल में हुई, जब उसकी दमदार उपस्थिति पर कोई सवाल नहीं उठाता। बाल साहित्य की यह विकास-यात्रा बड़े-बड़े बीहड़ों से निकलकर आई और अब एक प्रसन्न उजास हमें चारों ओर दिखाई देता है। कविता, कहानी, उपन्यास, नाटक समेत अनेक विधाओं में निरंतर लिखे जा रहे बाल साहित्य की एक विकासकामी, सुदीर्घ और गरिमामयी परंपरा रही है, जिसकी हिंदी साहित्य की महाधारा में एक अलग पहचान रेखांकित की जा सकती है, यह प्रकाश मनु के इस बृहत् इतिहास-ग्रंथ को पढ़कर बहुत स्पष्टता से सामने आता है। फिर इस इतिहास की शैली भी बहुत सर्जनात्मक और रसपूर्ण है, जो पाठकों से निरंतर एक सार्थक संवाद करती चलती है।
साहित्य अकादेमी के पहले बाल साहित्य पुरस्कार से सम्मानित प्रकाश मनु ने हिंदी बाल साहित्य की अलग-अलग विधाओं की उपलधियों को सहेजते हुए बाल साहित्य का यह पहला इतिहास लिखकर खुद में एक बड़ा और ऐतिहासिक महव का काम किया है। आशा है, हिंदी के साहित्यिक और प्रबुद्ध समालोचक ही नहीं, आम पाठक भी इसका उत्साह के साथ स्वागत करेंगे।

__________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________

अनुक्रम

भूमिका —7

1. काल-विभाजन—21

2. बाल कविता—28

3. बाल कहानी—138

4. बाल उपन्यास—253

5. बाल नाटक—336

6. बाल ज्ञान-विज्ञान साहित्य—400

7. बाल जीवनी तथा अन्य विधाएँ—458

8. बाल पत्रिकाओं की विकास-यात्रा—520

अनुक्रमणिका—545

The Author

Prakash Manu

जन्म : 12 मई, 1950, शिकोहाबाद ( उप्र.)।
प्रकाशन : ' यह जो दिल्ली है ', ' कथा सर्कस ', ' पापा के जाने के बाद ' ( उपन्यास); ' मेरी श्रेष्‍ठ कहानियाँ ', ' मिसेज मजूमदार ', ' जिंदगीनामा एक जीनियस का ', ' तुम कहाँ हो नवीन भाई ', ' सुकरात मेरे शहर में ', ' अंकल को विश नहीं करोगे? ', ' दिलावर खड़ा है ' ( कहानियाँ); ' एक और प्रार्थना ', ' छूटता हुआ घर ', ' कविता और कविता के बीच ' (कविता); ' मुलाकात ' (साक्षात्कार), ' यादों का कारवाँ ' (संस्मरण), ' हिंदी बाल कविता का इतिहास ', ' बीसवीं शताब्दी के अंत में उपन्यास ' ( आलोचना/इतिहास); ' देवेंद्र सत्यार्थी : प्रतिनिधि रचनाएँ ', ' देवेंद्र सत्यार्थी : तीन पीढ़ियों का सफर ', ' देवेंद्र सत्यार्थी की चुनी हुई कहानियाँ ', ' सुजन सखा हरिपाल ', ' सदी के आखिरी दौर में ' (संपादित) तथा विपुल बाल साहित्य का सृजन ।
पुरस्कार : कविता-संग्रह ' छूटता हुआ घर ' पर प्रथम गिरिजाकुमार माथुर स्मृति पुरस्कार, हिंदी अकादमी का ' साहित्यकार सम्मान ' तथा साहित्य अकादेमी के ' बाल साहित्य पुरस्कार ' से सम्मानित । ढाई दशकों तक हिंदुस्तान टाइम्स की बाल पत्रिका ' नंदन ' के संपादकीय विभाग से संबद्ध रहे । इन दिनों बाल साहित्य की कुछ बड़ी योजनाओं को पूरा करने में जुटे हैं तथा लोकप्रिय साहित्यिक पत्रिका ' साहित्य अमृत ' के संयुका संपादक भी हैं । "

Customers who bought this also bought

WRITE YOUR OWN REVIEW