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DIVASWAPNA

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Author Acharya Swami Shri Dharmendra Maharaj
Features
  • ISBN : 9789380823706
  • Language : Hindi
  • Publisher : Prabhat Prakashan
  • Edition : 2012
  • ...more

More Information

  • Acharya Swami Shri Dharmendra Maharaj
  • 9789380823706
  • Hindi
  • Prabhat Prakashan
  • 2012
  • 2012
  • 128
  • Hard Cover
  • 250 Grams

Description

हमारी संस्कृति तो अपनी संपूर्ण प्राण-शक्‍ति के साथ हमें यही प्रेरित करती आ रही है कि पुरुष को स्‍‍त्री के प्रति कृतज्ञ होना चाहिए। इसी प्रकार स्‍‍त्री भी पुरुष के अटूट संग की कामना करती है। ‘दाम्पत्य-योग’ अनेक जन्मों की साधना के संस्कारों का मधुर फल है, जो विधि-निषेध सापेक्ष न होकर स्वयंभू जैसा है। यही अभ्युदय और निःश्रेयस का साधक है। वर्षों पूर्व भारत में प्रादुर्भूत एवं आज तक चली आ रही पति-पत्‍नी की अभिन्न-एकात्मता-परम्परा को ‘दाम्पत्य-योग’ की संज्ञा आचार्यश्री ने ही पहली बार दी है।
यह योग संसार के श्रद्धावान और सत्पात्र दम्पतियों को, भगवान् शंकर और माँ पार्वती का कृपा-प्रसाद है। वसिष्‍ठ-अरुंधती, अत्रि-अनसूया और सत्यवान-सावित्री प्रभृति हमारे पितर इस योग के उच्चतम आदर्श एवं प्रेरक उदाहरण हैं। आधी सदी पूर्व आचार्यश्री द्वारा रचित ये गीत, काव्य-सौन्दर्य तथा हिन्दी के गीत-निबन्धन सामर्थ्य के आदर्श प्रमाण हैं। ये केवल पाठकों को आनन्दित ही नहीं करेंगे, वरन् आचार्यश्री के व्यक्‍तित्व और कृतित्व के एक अज्ञात पक्ष को प्रकाशित करके, उनके लाखों प्रशंसकों एवं अनुयायियों को चमत्कृत, चकित और मंत्रमुग्ध भी कर देंगे। ‘दिवास्वप्न’ के गीत ‘दाम्पत्य-योग’ के गीत हैं। दूसरे शब्दों में ‘दिवास्वप्न’ दाम्पत्य-योग का गीति-काव्य है।
निस्संदेह इस कविता-शतक की सभी कृतियाँ सरस गीत हैं, जो श्रव्य-सुखद हैं और गेय हैं। इनमें कहीं भी दैहिक या मांसल आसक्‍ति की झलक नहीं है।

The Author

Acharya Swami Shri Dharmendra Maharaj

आठ वर्ष की बाल्यावस्था से ही आचार्यश्री धर्मेन्द्र महाराज भारत के ग्राम-ग्राम में अपनी प्रखर वाणी द्वारा धर्मद्रोहियों के हृदयों को प्रकम्पित और धर्मप्रेमियों में नवजीवन का संचार कर रहे हैं. उनकी वाणी में भगवती सरस्वती स्वयं निवास करती हैं। उनके तर्क अकाट्य होते हैं और उनकी विवेचनापूर्ण शैली अत्यन्त सुबोध और हृदयग्राहिणी होती है। हिन्दू धर्म, जाति और हिन्दुस्थान के हितों की रक्षा के लिए पूज्य आचार्यश्री ने अपने स्वनामधन्य पिताश्री के समान ही अनेक अनशन, सत्याग्रह, आन्दोलन और कारावास किये हैं. प्रायः सभी गोरक्षा आन्दोलनों और श्रीराम जन्मभूमि मुक्‍ति आन्दोलन के वे अग्रगण्य नेता रहे हैं। वस्तुतः आचार्यश्री का व्यक्‍तित्व वज्र के समान कठोर और पुष्प के समान कोमल है। आचार्यश्री अनेक दिव्य ग्रन्थों के प्रणेता, रससिद्ध कवि, समीक्षक, गम्भीर चिन्तक और श्रेष्‍ठ सम्पादक के साथ-साथ मनोहारी गायक भी हैं. व्यासपीठ पर विराजमान आचार्यश्री साक्षात् शुकदेव के समान धर्मतत्त्व का निरूपण करके विराट् श्रोता समूह को मन्त्रमुग्ध कर देते हैं। 1942 में अवतीर्ण आचार्यश्री को उनके पूज्य गुरुदेव और पिताश्री ने 1978 में श्री पंचखंड पीठ के आचार्यपीठ पर विधिवत् अभिषिक्‍त किया. आज वे भारत के सन्त समुदाय में देदीप्यमान नक्षत्र के समान अपनी कीर्ति-प्रभा विकीर्ण कर रहे हैं।

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