Prabhat Prakashan, one of the leading publishing houses in India eBooks | Careers | Events | Publish With Us | Dealers | Download Catalogues
Helpline: +91-7827007777

Adhyatma Ki Khoj Mein   

₹600

In stock
  We provide FREE Delivery on orders over ₹1500.00
Delivery Usually delivered in 5-6 days.
Author Sanjiv Shah
Features
  • ISBN : 9789353221164
  • Language : Hindi
  • Publisher : Prabhat Prakashan
  • Edition : 1st
  • ...more
  • Kindle Store

More Information

  • Sanjiv Shah
  • 9789353221164
  • Hindi
  • Prabhat Prakashan
  • 1st
  • 2019
  • 296
  • Hard Cover

Description

जीवन-प्रेमियों के लिए अध्यात्म-विज्ञान
जीवन कितना अमूल्य और दुर्लभ है,
हमारी समझ में क्यों आता नहीं?

जीवन जीने की अभीप्सा एवं अभिलाषा,
हमारे भीतर क्यों प्रज्वलित होती नहीं?

हमारे जीवन की बागडोर किसके हाथ में है,
यह ज्ञान कोई हमें क्यों देता नहीं?

अध्यात्म के बिना जीवन निरर्थक है,
कोई हमें यह क्यों समझाता नहीं?

अध्यात्म बुढ़ापे की कोई प्रवृत्ति नहीं है,
यह सत्य जोर-शोर से क्यों 
पुकारा जाता नहीं?

अध्यात्म को जीवन से अलग 
नहीं किया जा सकता है,
यह रहस्य हमें कोई क्यों बतलाता नहीं?

शरीर का विज्ञान सभी सीखते हैं,
मन का विज्ञान कुछ ही लोग सीखें!
जीवन का विज्ञान सभी क्यों न सीखें

____________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________

 

अनुक्रम

प्रस्तावना : अध्यात्म : जैसा देखा, जाना और जिया —Pgs. 7

अध्यात्म के साथ आँखमिचौनी —Pgs. 11

यह पुस्तक किसे मदद करेगी? —Pgs. 12

प्रकरण 1 भूमिका : सच्‍चा-झूठा अध्यात्म —Pgs. 19

• अध्यात्म अर्थात्?

• ‘अध्यात्म’ का अर्थ

• अध्यात्म-विषयक विविध मान्यताएँ

• आध्यात्मिकता और मन पर नियंत्रण

• धार्मिकता आध्यात्मिकता नहीं है

• परंपरा एवं कर्मकांड के प्रश्न

• अधिक कठिन है खुद से प्रश्न पूछना

• और अब सबसे कठिन सवाल

• अध्यात्म परावलंबन नहीं है

• जिम्मेदारी का स्वीकार : प्रथम चरण

• अध्यात्म निरी बौद्धिकता नहीं है

• बौद्धिकता समझदारी नहीं है

• समझदारी शब्दातीत है

• विरोधाभास अज्ञान है

• अध्यात्म : जीवन तथा जीवन-शैली

• अध्यात्म तथा समग्रलक्षी जीवन

• मानव उत्क्रांति और अध्यात्म

• किसे आध्यात्मिक कहें?

• विश्व के महानुभावों का अध्यात्म

• बिना विकास के अध्यात्म कैसा?

• आइंस्टाइन और अध्यात्म

• बुद्धि को ईश्वर न बनाएँ

प्रकरण 2 स्वाध्याय : मनोविज्ञान की बुनियाद —Pgs. 67

• मनोविज्ञान क्या है?

• मनोविज्ञान के मूलभूत विषय

• मानवीय व्यवहार की पृष्ठभूमि का रहस्य

• मानवीय आवश्यकताएँ—1 : शारीरिक

• मानवीय आवश्यकताएँ—2 : सुरक्षा

• मानवीय आवश्यकताएँ—3 : स्वीकार

• मानवीय आवश्यकताएँ—4 : सिद्धियाँ

• मानवीय आवश्यकताएँ—5 : स्वविकास

• अहं और मनोविज्ञान

• ईड, ईगो और सुपर ईगो की खींचातानी

• पीड़ा से पलायन हेतु मन की पद्धतियाँ

• पीड़ा और बौद्ध धर्म के चार सत्य

• सच्‍चा धर्म जड़ नहीं होता

• मुंडे-मुंडे मार्गभिन्ना

• सच्‍ची आध्यात्मिकता, सच्‍चे गुरु

• अध्यात्म अर्थात् जीवन के लिए प्रेम

प्रकरण 3 प्रवेश : अंतःकरण की समझदारी —Pgs. 103

सूक्ष्म शरीर तथा इंद्रियाँ

• अंतःकरण एवं अंतर्वृत्तियाँ

• मन : इच्छाओं और विचार-स्मृति का उपद्रव

• इच्छाओं के चरम : दमन एवं स्वच्छंदता

• शब्द, स्मृति और संस्कारों की मर्यादा

• बुद्धि : शंका, तर्क एवं अनिर्णायकता

• चित्त : चंचलता एवं राग-द्वेष

• अहंकार : मान्यताएँ एवं ग्रंथियाँ

• अंतःकरण अंततः ऊर्जा है

• जीवन बन जाता है अंतःकरण का मजदूर

• अंतःकरण की सही भूमिकाएँ

• साधना चित्त का विषय है

• जागृति से जीवन कैसे उबरता है?

• स्वनिरीक्षण ही उपाय

• बौद्धिक एवं आध्यात्मिक समझदारी में अंतर

• जागृति के प्रकाश में अंतःकरण

• विवेक एवं प्रतिभावात्मकता

• अंतःकरण के रोग एवं व्याधियाँ

• जहाँ रोग, वहाँ उपाय

• रोग का निदान और उपचार

प्रकरण 4 साधना : अध्यात्म-विज्ञान की बारहखड़ी —Pgs. 147

• अकेलापन, एकांत और अध्यात्म

• एकांत का प्रयोजन है मौन

• मौन का प्रथम प्रयोजन है—स्व-निरीक्षण

• दूसरों का निरीक्षण आसान है

• एकांत और आत्मसम्मान

• एकांत की भव्यता

• एकांत में दुःख से संबंधित प्रश्न

• साधना एवं पुरुषार्थ

• साधना के सोपान और ढाई अवस्था

• सबसे भयंकर है—साधना का अहंकार

• झूठी साधना एवं झूठा वैराग्य

प्रकरण 5 दर्शन : ध्यान की दहलीज पर —Pgs. 173

• अध्यात्म-साधना और ध्यान

• ध्यान क्या नहीं है?

• ध्यान की परिभाषा

• ध्यान किसलिए?

• विचार-शून्यता या विचार-परिवर्तन?

• ध्यान को चाहिए स्वानुशासन

• ध्यान के लिए पूर्व तैयारियाँ

• ध्यान की पद्धतियाँ

• निरंतर विचार क्यों आते हैं?

• वर्तमान में न जीने का तात्पर्य

• विचार-शून्यता या समझ-शून्यता

• निर्विचार मनोदशा का नीर-क्षीर

• ध्यान एवं आदर्श कल्पना

• ध्यान किए बिना ध्यान

• वर्तमान में जीने का सही अर्थ

• ज्ञान पूर्वग्रहों को जन्म देता है?

• ध्यान एवं समझदारी

प्रकरण 6 शोधन : व्यूह-रचना और पकड़ दाँव —Pgs. 211

• कसौटियाँ और परीक्षण

• धारणाएँ या सत्यनिष्ठा

• तर्कों में जीतना या सत्यग्रहण

• मन का दर्पण स्वच्छ रहता है?

• वाणी, प्रतिभावात्मकता और एकसूत्रता

• वृत्तियाँ जीतती हैं या संयम?

• सच्‍चे जीवन का मानदंड : नम्रता

• शांति एवं विश्रांति

• संतुष्ट, फिर भी उच्‍चाभिलाषी?

• संबंधों की भूमिका पर कसौटियाँ

• दूसरों का मूल्यांकन करते रहने का अर्थ

• दूसरे लोग आक्षेप करें, तब

• आक्रामकता पाशवी है

• सच्‍चा श्रवण ध्यान है

• कृतज्ञता छलकती है

• क्षमा : भूतकाल की कैद से आजादी

• क्षमापना : मानवता की विनम्र स्वीकृति

• अहंकार की कसौटियाँ सर्वोच्‍च महत्त्वपूर्ण

• अहंकार के लक्षण

प्रकरण 7 सातत्य : सहृदय सजीव सावधान —Pgs. 253

मृत्यु और अध्यात्म

• जीवन की भूमिकाएँ और अध्यात्म

• विवाह संबंध और अध्यात्म

• कुटुंब-परवरिश और अध्यात्म

• जीवन-कर्म और अध्यात्म

• संगठन और अध्यात्म

• ईश्वर और अध्यात्म

• धर्म और अध्यात्म

• सत्य और अध्यात्म

• प्रेम और अध्यात्म

• मित्रता और अध्यात्म

• त्याग और अध्यात्म

• निर्वाण और अध्यात्म

• अभीप्सा और अध्यात्म

• जीवन और अध्यात्म

परि​शिष्ट —Pgs. 287

अध्यात्म से संबंधित पुस्तकों की सूची —Pgs. 288

ओएसिस प्रकाशनों की सूची —Pgs. 291

अध्यात्म की खोज में —Pgs. 296

The Author

Sanjiv Shah

लेखक संजीव शाह, ओएसिस सेल्फ डेवलपमेंट के प्रशिक्षक हैं। मात्र 25 वर्ष की आयु में अपनी अंतरात्मा की आवाज सुनकर संजीव ने मेकैनिकल इंजीनियर के अपने पेशे को छोड़ा और उन सैकड़ों युवाओं का नेतृत्व किया, जो अपने तथा समाज के विकास में योगदान करना चाहते थे। इसका परिणाम ‘ओएसिस’ नाम के युवाओं के एक संगठन के रूप में सामने आया, जिसका गठन 1989 में किया गया। 
आगे चलकर, राष्ट्रीय मान्यता प्राप्त युवाओं का नेतृत्व करने वाले और सामाजिक कार्यकर्ता से वे एक लेखक तथा अनेक सीईओ, परिवारों, समुदायों और संगठनों को पेशेवर सलाह देने वाले की भूमिका में आए। उनके प्रबंधन में, ‘ओएसिस वैली’ नाम का एक अनोखा संस्थान वडोदरा के करीब बनाया गया है, जो चरित्र निर्माण के प्रति समर्पित अपनी तरह का पहला एकमात्र संस्थान है। 
उन्होंने 65 से अधिक पुस्तकों और बुकलेट की रचना की है, जिनकी 10 लाख से अधिक प्रतियाँ बिक चुकी है। इस विशिष्ट उपलब्धि ने वैज्ञानिक स्वयं-सहायता की पीढ़ी के बीच उन्हें इस क्षेत्र का सबसे सम्मानित और सर्वाधिक लोकप्रिय समसामयिक लेखक बना दिया है।

 

Customers who bought this also bought

WRITE YOUR OWN REVIEW