Prabhat Prakashan, one of the leading publishing houses in India eBooks | Careers | Events | Publish With Us | Dealers | Download Catalogues
Helpline: +91-7827007777

Dalit-Muslim Rajneetik Gathjod   

₹500

In stock
  We provide FREE Delivery on orders over ₹1500.00
Delivery Usually delivered in 5-6 days.
Author Vijay Sonkar Shastri
Features
  • ISBN : 9789353223755
  • Language : Hindi
  • Publisher : Prabhat Prakashan
  • Edition : 1st
  • ...more
  • Kindle Store

More Information

  • Vijay Sonkar Shastri
  • 9789353223755
  • Hindi
  • Prabhat Prakashan
  • 1st
  • 2019
  • 256
  • Hard Cover

Description

‘दलित-मुसलिम एकता’ का भ्रम उत्पन्न करके वास्तव में कुछ नेता आज देश में राजनीतिक आधार पर अपनी स्वार्थपूर्ति हेतु गठजोड़ बना रहे हैं। एकता एवं  गठबंधन  तो  सामाजिक  एवं राजनीतिक उद्देश्य की पूर्ति के लिए सकारात्मक क्रियाकलाप के अंतर्गत आता है, किंतु गठजोड़ तो नीति या विचारधारा को ताक पर रखकर सत्ता की भूख मिटाने के लिए किया जाता है। ऐसे में इस प्रकार के गठजोड़ से समाज एवं देश टूटता है।
डॉ. भीमराव आंबेडकर का मानना था कि अवसरवादी गठजोड़ नहीं, बल्कि समाज के उन्नति के लिए एकता आवश्यक है। राजनीतिक गठजोड़ समान विचारधारा एवं समान कार्यक्रम पर नहीं, अपितु स्वार्थ एवं अनीति पर आधारित सोच से सत्ता की भूख मिटाने का एक साधन है। बुनियादी रूप से डॉ. आंबेडकर दलित-मुसलिम गठजोड़ के विरुद्ध थे। प्रस्तुत पुस्तक में दलित-मुसलिम गठजोड़ पर डॉ. आंबेडकर के विचारों का विस्तृत उल्लेख दिया जा रहा है। इस पुस्तक के माध्यम से डॉ. आंबेडकर के विचारों के आलोक में दलित-मुसलिम गठजोड़ का वास्तविक चेहरा भी सामने आएगा।
‘दलित-मुसलिम  राजनीतिक गठजोड़’ नामक इस पुस्तक में स्वार्थपूर्ण राजनीति पर महात्मा गांधी, डॉ. आंबेडकर, पंडित नेहरू एवं अन्यान्य नेताओं के विचारों को पढ़ा एवं समझा जा सकेगा। समाज में शुचिता तथा एकता भाव पर आधारित एक सुसंगठित समाज-रचना की दिशा में राजनीतिक योगदान ही इस पुस्तक का लक्ष्य है।

________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________

अनुक्रम

आमुख —Pgs. 5

विचार-भूमि —Pgs. 11

प्रस्तावना —Pgs. 23

1. दलित कौन और कैसे? —Pgs. 27

2. भारत के दलित प्राचीन या वैदिक कालीन शूद्र नहीं  —Pgs. 30

3. स्वतंत्रता के पहले और बाद, दलित का हुआ केवल उपयोग —Pgs. 32

4. अंग्रेजों ने भी किया दलितों का उपयोग अपनी सत्ता की आयु बढ़ाने के लिए  —Pgs. 34

5. फिर जिन्ना ने भी देश को बाँटने के लिए किया दलितों का उपयोग —Pgs. 36

6. कांग्रेस ने 60 वर्ष तक दलितों को भ्रमित करके सत्ता का सुख उठाया —Pgs. 38

7. दलितों को महज सत्ता-प्राप्ति का उपकरण न समझा जाए  —Pgs. 40

8. आवश्यकता है कि समझा जाए अब दलित आंदोलन  —Pgs. 41

अध्याय-1

प्राचीन भारत का भौगोलिक, सांस्कृतिक एवं धार्मिक स्वरूप  —Pgs. 45

1.1 प्राचीन भारत में हिंदू समाज का ताना-बाना —Pgs. 51

1.2 जातियों और उप जातियों के उदय का कालखंड  —Pgs. 52

1.3 हिंदू, हिंदुत्व और हिंदू धर्म  —Pgs. 54

1.4 हिंदू एक जीवन-पद्धति : उच्‍चतम न्यायालय  —Pgs. 59

1.5 हिंदू लोकजीवन में जातियों-उपजातियों के निर्माण का इतिहास  —Pgs. 60

1.6 भारत की पहचान—सर्व धर्म समभाव  —Pgs. 65

1.7 भेदभावरहित हिंदू​ समाज  —Pgs. 68

1.8 दलित समस्या : सत्ता के खेल का एक प्रायोजित षड‍्यंत्र —Pgs. 70

अध्याय-2

भारत पर बाह्य‍ आक्रमणों का इतिहास  —Pgs. 73

2.1 यूनानी, यवनों, चीनी, हूणों एवं शकों का प्राचीनकालीन आक्रमण  —Pgs. 76

2.2 इस्लाम का उदय एवं अरब के खलीफाओं के आक्रांताओं का आक्रमण  —Pgs. 78

2.3 अरब के विदेशी तुर्कों का आक्रमण  —Pgs. 80

2.4 मध्यकालीन शासन एवं विदेशी आक्रमणकारी शासक  —Pgs. 82

2.5 विदेशी आक्रांता शासकों द्वारा हिंदुओं का धर्म-परिवर्तन  —Pgs. 82

2.6 चंगेज खान एवं तैमूर लंग का आक्रमण  —Pgs. 85

2.7 मुगल आक्रमणकारी बाबर और औरंगजेब का क्रूर शासन —Pgs. 85

2.8 अंग्रेजों से युद्ध, लंबी दासता एवं भयानक लूटपाट  —Pgs. 87

अध्याय-3

दासता काल की देन : दलित, वनवासी,  मुस्लिम, सिख और ईसाई  —Pgs. 90

3.1 बारहवीं सदी के पहले और बाद में हिंदू समाज का ताना-बाना  —Pgs. 91

3.2 पाँच नए चेहरों का उदय हुआ और आज भी यही वर्ग समस्या के रूप में है —Pgs. 94

• मुस्लिम पंथ और मुस्लिम वर्ग —Pgs. 95

• दलित अथवा अनुसूचित जातियाँ  —Pgs.  —Pgs. 96

• वनवासी अथवा जनजातीय जातियाँ  —Pgs. 97

• सिक्ख पंथ अथवा सिख वर्ग  —Pgs. 97

• ईसाई पंथ एवं ईसाई वर्ग  —Pgs. 98

3.3 उक्त सभी समस्याओं की जड़ विदेशी मुस्लिम आक्रांता  —Pgs. 99

3.4 दलित बनाया मुगलों ने, स्थायी पहचान दी अंग्रेजों ने —Pgs. 100

3.5 अभाव और गरीबी के कारण भारत का हुआ सामाजिक पतन  —Pgs. 104

3.6 अस्वच्छ पेशों के कारण आई अस्पृश्यता  —Pgs. 105

3.7 1930 में जनगणना में पहली बार दलित चि​न्हित  —Pgs. 107

3.8 मैकाले शिक्षा नीति ने 1935 में बनाया दलितों के साथ पूरे देश को अशिक्षित —Pgs. 109

अध्याय-4

स्वतंत्रता संघर्ष में गांधी, नेहरूजी, डॉ. आंबेडकर, जिन्ना और जोगेंद्र नाथ मंडल —Pgs.  112

4.1 गांधी की दृष्टि में दलित और दलितोत्थान  —Pgs. 113

4.2 डॉ. आंबेडकर थे दलितोत्थान के अग्रणी दूत  —Pgs. 115

4.3 प्रथम प्रधानमंत्री नेहरूजी की दलितों के प्रति उदासीनता  —Pgs. 119

4.4 मोहम्मद अली जिन्ना का दलितों से कुटिल राजनीतिक दावँ —Pgs. 121

4.5 जोगेंद्र नाथ मंडल से हुई भयानक चूक  —Pgs. 124

4.6 वर्तमान में दलित वर्ग नेतृत्व द्वारा भ्रमित  —Pgs. 126

4.7 दलित-मुस्लिम गठजोड़ : नेताओं का चरित्र और चेहरा  —Pgs. 131

4.8 दलित-मुस्लिम नेताओं का एकमात्र लक्ष्य : सत्ता-प्राप्ति —Pgs. 133

अध्याय-5

दलित-मुस्लिम राजनीतिक गठजोड़ पर डॉ. आंबेडकर के  विचार —Pgs. 135

5.1 दलित-मुस्लिम गठजोड़ नहीं, राष्ट्रीय गठजोड़ आवश्यक  —Pgs. 137

5.2 स्वतंत्रता संघर्ष में कुछ मुस्लिम नेताओं की संदिग्ध   भूमिका एवं उनके सार्वजनिक बयान  —Pgs. 143

5.3 डॉ. आंबेडकर की दृष्टि में इस्लाम का भाईचारा   गैर-मुस्लिमों के साथ अस्वाभाविक एवं दिखावापूर्ण  —Pgs. 145

5.4 डॉ. आंबेडकर चाहते थे जनसंख्या का पूर्ण बँटवारा  —Pgs. 146

5.5 बँटवारे के बाद राष्ट्रीय सुरक्षा विषय पर   डॉ. आंबेडकर के मौलिक विचार  —Pgs. 149

5.6 जोगेंद्र नाथ मंडल एवं जिन्ना के खतरनाक खेल से   डॉ. आंबेडकर थे असहमत  —Pgs. 152

5.7 मुसलमानों को अनुसूचित जाति में सम्मिलित करने के प्रस्ताव को  डॉ. आंबेडकर ने किया खारिज  —Pgs. 154

5.8 मुस्लिम लीग और जिन्ना की माँगें, डॉ. आंबेडकर की दृष्टि में अनैतिक  —Pgs. 158

अध्याय-6

दलित-मुस्लिम राजनीतिक गठजोड़ का प्रथम मॉडल : जिन्ना एवं मंडल-परिणाम पाकिस्तान की उत्पत्ति —Pgs.  160

6.1 स्वतंत्रता आंदोलन और अंग्रेजों से  सत्ता हस्तांतरण का सुनिश्चित वातावरण —Pgs. 161

6.2 सत्ता प्राप्ति की होड़ : विभिन्न विचारधारा एवं शक्तियों का उदय  —Pgs. 163

6.3 सत्ता-प्राप्ति के ध्रुवीकरण में दलित वर्ग बना आकर्षण का केंद्र —Pgs. 166

6.4 दलित-मुस्लिम गठजोड़ के लिए जिन्ना और गांधी में मची होड़ —Pgs. 167

6.5 एक बड़ी दलित हिस्सेदारी के साथ जिन्ना को मिली बढ़त —Pgs. 168

6.6 दलित-मुस्लिम गठजोड़ के कारण जिन्ना ने की सौदेबाजी  —Pgs. 170

6.7 अंग्रेजों ने उठाया फायदा और बाँट दिया देश  —Pgs. 171

6.8 दलित-मुस्लिम गठजोड़ के दबाव में बन गया पाकिस्तान  —Pgs. 173

अध्याय-7

दलित-मुस्लिम राजनीतिक गठजोड़ का द्वितीय मॉडल : कांशीराम, मायावती तथा हिंदू समाज का बँटवारा —Pgs. 174

7.1 स्वतंत्रता के तीस वर्षों बाद भी मुसलमानों एवं दलितों की स्थिति थी दयनीय  —Pgs. 176

7.2 उत्तर भारत एवं दक्षिणी भारत में आंबेडकरजी के  नाम पर हुए अलग-अलग दलित आंदोलन  —Pgs. 177

7.3 आंबेडकर के नाम पर सत्ता हथियाने की होड़ का इतिहास  —Pgs. 180

7.4 हिंदुओं को आपस में बाँटने में सफल हुए दलित नेता —Pgs. 181

7.5 दलित-मुस्लिम गठजोड़ के कारण सत्ता की छीना-झपटी में  कांशीराम-मायावती एवं पेरियार हुए सफल  —Pgs. 183

7.6 दलितों के दर्द को समझने में असफल रहे दलित नेता —Pgs. 184

7.7 दलित-मुस्लिम गठजोड़ पर आधारित उत्तर एवं  दक्षिण भारत का दलित आंदोलन —Pgs. 186

7.8 दलित-मुस्लिम गठजोड़ के इस द्वितीय मॉडल  से बँट गया हिंदू समाज  —Pgs. 188

अध्याय-8

दलित-मुस्लिम गठजोड़ का राजनीतिक तृतीय मॉडल : भारत की बरबादी और टुकड़े —Pgs. 190

8.1 भारतीय राजनीति में चल रहे जाति, वंश, तुष्टीकरण  के राजनीतिक मुद्दों का अंत और विकासवाद का उदय  —Pgs. 192

8.2 भारतीय राजनीति में विकासवाद के प्रवर्तक : नरेंद्र मोदी  —Pgs. 194

8.3 स्वतंत्रता के उपरांत सत्ता हाथ से फिसलते ही भारत विरोधी शक्तियों का विविध रूपों में प्रकटीकरण  —Pgs. 195

8.4 असहिष्णुता आंदोलन : पराजित शक्तियों का एक बुद्धिमानी भरा राजनीतिक दावँ —Pgs. 197

8.5 भारत सरकार का पहली बार गरीबी उन्मूलन एवं जाति-पंथ भेद से ऊपर उठकर ‘सबका साथ-सबका विकास’ का सफल प्रयास  —Pgs. 199

8.6 भारत विरोधी शक्तियों ने दलित-मुस्लिम गठजोड़ के एक सूत्र पर सत्ता-प्राप्ति का तैयार किया तृतीय मॉडल —Pgs. 201

8.7 देश के विभिन्न संस्थानों में दलित-मुस्लिम गठजोड़ के नाम पर भारत विरोधी प्रदर्शन एवं नारे  —Pgs. 202

8.8 विकासवादी राजनीति को पटरी से उतारना एवं देश के सामाजिक, राजनीतिक एवं आर्थिक गति को पुनः बरबाद करने का लक्ष्य  —Pgs. 205

निष्कर्ष —Pgs.  207

1. सत्ता-प्राप्ति की अमानवीय भूख —Pgs. 208

2. देश और समाज के मूल्य पर सत्ता-प्राप्ति अहितकर  —Pgs. 209

3. सत्ता-प्राप्ति के लिए देश विरोधी शक्तियों से  समझौता सबसे बड़ा देशद्रोह  —Pgs. 210

4. जिन्ना और जोगेंद्र नाथ मंडल ने किया देश से विश्वासघात  —Pgs. 212

5. दलित और मुसलमानों का द्वीप बनाना असंभव  —Pgs. 214

6. शक्तिशाली राष्ट्र के लिए सबका साथ-सबका   विकास नीति श्रेयस्कर  —Pgs. 215

7. सामाजिक गतिशीलता और निरंतरता के लिए   सर्व धर्म-समभाव उचित  —Pgs. 217

8. विवेकानंद और डॉ. आंबेडकर का भारत निर्माण मान्य  —Pgs. 219

जोगेंद्र नाथ मंडल का पाकिस्तान के कानून मंत्री पद से इस्तीफा —Pgs. 223

संदर्भ ग्रंथ-सूची —Pgs. 247

The Author

Vijay Sonkar Shastri

डॉ. विजय सोनकर शास्त्री का जन्म उत्तर प्रदेश में वाराणसी जनपद में हुआ।
काशी हिंदू विश्‍वविद्यालय से बी.ए., एम.बी.ए., पी-एच.डी. (प्रबंध शास्त्र) के साथ ही संपूर्णानंद संस्कृत विश्‍वविद्यालय से शास्त्री की उपाधि प्राप्‍त। बाल्यकाल से ही संघ की शाखाओं में राष्‍ट्रोत्थान एवं परमवैभव के भाव से परिचित डॉ. शास्त्री की संपूर्ण शिक्षा-दीक्षा काशी में हुई।
तीन जानलेवा बीमारियों के बाद पूर्णरूपेण स्वस्थ हुए डॉ. शास्त्री ने प्रकृति के संदेश को समझा। हिंदू वैचारिकी और हिंदू संस्कृति को आत्मसात् कर राजनीति में प्रवेश किया और लोकसभा सदस्य बने। सामाजिक न्याय एवं सामाजिक समरसता के पक्षधर डॉ. सोनकर शास्त्री को राष्‍ट्रीय अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति आयोग, भारत सरकार का अध्यक्ष भी नियुक्‍त किया गया।
देश एवं विदेश की अनेक यात्राएँ कर डॉ. शास्त्री ने हिंदुत्व के प्रचार-प्रसार में अपनी भूमिका को सुनिश्‍च‌ित किया तथा मानवाधिकार, दलित हिंदू की अग्नि-परीक्षा, हिंदू वैचारिकी एक अनुमोदन, सामाजिक समरसता दर्शन एवं अन्य अनेक पुस्तकों का लेखन किया। विश्‍वमानव के ‘सर्वोत्तम कल्याण की भारतीय संकल्पना’ को चरितार्थ करने का संकल्प लेकर व्यवस्था के सभी मोरचा पर सतत सक्रिय एवं वर्तमान में भारतीय जनता पार्टी के राष्‍ट्रीय प्रवक्‍ता के दायित्व का निर्वहन कर रहे हैं।

Customers who bought this also bought

WRITE YOUR OWN REVIEW