Prabhat Prakashan, one of the leading publishing houses in India eBooks | Careers | Events | Publish With Us | Dealers | Download Catalogues
Helpline: +91-7827007777

Vidhya Vindu Singh ki lokpriya kahaniyan    

₹350

Out of Stock
  We provide FREE Delivery on orders over ₹1500.00
Delivery Usually delivered in 5-6 days.
Author Vidhya Vindu Singh
Features
  • ISBN : 9789352662951
  • Language : Hindi
  • ...more
  • Kindle Store

More Information

  • Vidhya Vindu Singh
  • 9789352662951
  • Hindi
  • Prabhat Prakashan
  • 2017
  • 184
  • Hard Cover

Description

लोक संस्कृति में रची-बसी भारतीय संस्कृति को पहचान देने में निरंतर साधना करनेवाली विद्या विंदु सिंह की कहानियाँ गाँव की संस्कृति बाँचती हैं। उनके कथा साहित्य में नारी विमर्श का एक नया रूप प्रस्तुत होता है। उनके पात्र संघर्षों से जूझते हैं, आग में तपकर स्वयं को सोने सा निखारते हैं। वे केवल अपने लिए नहीं जीते, समाज का ऋण चुकाते हुए जीते हैं और स्वयं को एक ऐसी आभा देते हैं कि उनके आलोक में लोग मार्ग पा सकें।
यह उत्सर्ग भाव स्वयं को मिटाने के लिए नहीं, स्वयं को पहचान देने का है, जीवन की सार्थकता पाने का है। ये पात्र सिद्ध करते हैं कि स्त्री दया या करुणा की पात्र नहीं, सबके प्रति ममत्व बिखेरने वाली शक्ति है।
गाँव की जमीन से जुड़ी ये कहानियाँ आधुनिक उपभोक्ता संस्कृति के पीछे भागते हुए अशांत मन को विश्राम देने का आमंत्रण देती हैं। टूटते परिवारों के बीच उठती दीवारों को पारदर्शी बनाकर रूठों को मनाने का न्योता देती हैं।
इन कहानियों को पढ़कर मन में आश्वस्ति जगती है कि अवध की लोक संस्कृति में रचा-बसा मन आज भी सीता-राम की संस्कृति का संवाहक है। इन कहानियों में शहर में रहते हुए भी गाँव की जोड़ने वाली संस्कृति का रस है, वापस जमीन से जुड़ने का चाव है। इसमें वरिष्ठ नागरिकों का दर्द है, उपेक्षित कन्या के महत्त्वपूर्ण अस्तित्व की पहचान है। अबला कही जाने वाली नारी का पुरुषार्थ और पराक्रम है, जो सहारा पाने से अधिक, सहारा देने में विश्वास रखती है।

__________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________

अनुक्रम

रचना का दर्द और रचने का संतोष — 5

1. एडियही काकी — 11

2. युद्ध विराम — 19

3. चीनी बाबा — 30

4. मंदिर को छावा — 38

5. तख्ता — 45

6. घरबैठी — 62

7. वी. आई. पी.  ट्रीटमेंट — 77

8. बेवा — 89

9. पिंडाइन अइया — 101

10. हड़ताल — 112

11. शमा — 120

12. वैतरनी — 130

13. पत्थर — 139

14. पुरस्कार — 144

15. काशीवास — 149

16. भूले-फिरें भँवर — 158

17. बनदेई — 167

18. सुमिरन बहू — 173

19. बेटियों की माँ — 180

The Author

Vidhya Vindu Singh

कृतित्व : 105 प्रकाशित एवं 18 प्रकाशनार्थ। 9 उपन्यास, 10 कहानी-संग्रह, 10 कविता-संग्रह, 25 लोक साहित्य, 6 नाटक, 8 निबंध-संग्रह, 20 नवसाक्षर एवं बाल साहित्य, 17 संपादित। अन्य अनेक पुस्तकों और पत्रिकाओं का संपादन। आकाशवाणी व दूरदर्शन के विभिन्न केंद्रों से निरंतर प्रसारण। देश-विदेश की संस्थाओं, विश्वविद्यालयों से संबद्ध। अनेक विश्वविद्यालयों से इनके कृतित्व पर शोध कार्य। इनकी अनेक रचनाओं का भारतीय व विदेशी भाषाओं में अनुवाद।
साहित्यिक आयोजनों में देश-विदेश में सक्रिय भागीदारी।
सम्मान : देश-विदेश की 90 संस्थाओं द्वारा सम्मान एवं पुरस्कार।
उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान, लखनऊ में संयुक्त निदेशक पद से सेवानिवृत्त।
संपर्क : ‘श्रीवत्स’, 45 गोखले विहार मार्ग, लखनऊ।
दूरभाष : 0522-2206454, 9335904929, 9451329402
इ-मेल : 45srivatsa@gmail.com 
वेब : www.drvidyavindusingh.in

Customers who bought this also bought

WRITE YOUR OWN REVIEW