Prabhat Prakashan, one of the leading publishing houses in India eBooks | Careers | Events | Publish With Us | Dealers | Download Catalogues
Helpline: +91-7827007777

Thalua Club and Phir Nirasha Kyon?   

₹300

In stock
  We provide FREE Delivery on orders over ₹1500.00
Delivery Usually delivered in 5-6 days.
Author Babu Gulab Rai
Features
  • ISBN : 9789386001559
  • Language : Hindi
  • ...more

More Information

  • Babu Gulab Rai
  • 9789386001559
  • Hindi
  • Prabhat Prakashan
  • 2017
  • 152
  • Hard Cover

Description

साहित्यकारों के विचार
‘‘पहली ही भेंट में उनके प्रति मेरे मन में जो आदर उत्पन्न हुआ था, वह निरंतर बढ़ता ही गया। उनमें दार्शनिकता की गंभीरता थी, परंतु वे शुष्क नहीं थे। उनमें हास्य-विनोद पर्याप्त मात्रा में था, किंतु यह बड़ी बात थी कि वे औरों पर नहीं, अपने ऊपर हँस लेते थे।’’
—राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त
‘‘बाबूजी ने हिंदी के क्षेत्र में जो बहुमुखी कार्य किया, वह स्वयं अपना प्रमाण है। प्रशंसा नहीं, वस्तुस्थिति है कि उनके चिंतन, मनन और गंभीर अध्ययन के रक्त-निर्मित गारे से हिंदी-भारती के मंदिर का बहुत सा भाग प्रस्तुत हो सका है।’’
—पं. उदयशंकर भट्ट
‘‘आदरणीय भाई बाबू गुलाब रायजी हिंदी के उन साधक पुत्रों में से थे, जिनके जीवन और साहित्य में कोई अंतर नहीं रहा। तप उनका संबल और सत्य स्वभाव बन गया था। उन जैसे निष्ठावान, सरल और जागरूक साहित्यकार बिरले ही मिलेंगे। उन्होंने अपने जीवन की सारी अग्नि परीक्षाएँ हँसते-हँसते पार की थीं। उनका साहित्य सदैव नई पीढ़ी के लिए प्रेरक बना रहेगा।’’
—महादेवी वर्मा
‘‘गुलाब रायजी आदर्श और मर्यादावादी पद्धति के दृढ समालोचक थे। भारतीय कवि-कर्म का उन्हें भलीभाँति बोध था। विवेचना का जो दीपक वे जला गए, उसमें उनके अन्य सहकर्मी बराबर तेल देते चले जा रहे हैं और उसकी लौ और प्रखर होती जा रही है। हम जो अनुभव करते हैं—जो आस्वादन करते हैं, वही हमारा जीवन है।’’
—पं. लक्ष्मीनारायण मिश्र
‘‘अपने में खोए हुए, दुनिया को अधखुली आँखों से देखते हुए, प्रकाशकों को साहित्यिक आलंबन, साहित्यकारों को हास्यरस के आलंबन, ललित-निबंधकार, बड़ों के बंधु और छोटों के सखा बाबू गुलाब राय को शत प्रणाम!’’
—डॉ. रामविलास शर्मा

___________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________

अनुक्रम

ठलुआ लब

भूमिका— Pgs. 7

संपादकीय— Pgs. 9

1. मधुमेही लेखक की आत्म-कथा— Pgs. 13

2. बेकार वकील— Pgs. 25

3. विज्ञापन-युग का सफल नवयुवक— Pgs. 34

4. निराश कर्मचारी— Pgs. 42

5. समालोचक — Pgs. 51

6. प्रेमी वैज्ञानिक— Pgs. 60

7. सिद्धांती— Pgs. 69

8. आलस्य-भत— Pgs. 79

9. आफत का मारा दार्शनिक— Pgs. 87

फिर निराशा यों?

प्राकथन— Pgs. 93

लेखक का वतव्य— Pgs. 95

1. फिर निराशा यों?— Pgs. 99

2. मनुष्य की मुयता— Pgs. 103

3. सा-सागर— Pgs. 105

4. समष्टि-व्यष्टि— Pgs. 108

5. हमारा कर्तव्य और हमारी कठिनाइयाँ— Pgs. 111

6. सौंदर्योपासना— Pgs. 113

7. कुरूपता— Pgs. 116

8. विश्व-प्रेम और विश्व-सेवा— Pgs. 119

9. अपूर्ण की पूर्णता— Pgs. 123

10. पुनीत पापी— Pgs. 125

11. स्वयंभू सुधारकों का सुधार— Pgs. 128

12. दु:ख— Pgs. 131

13. भूल— Pgs. 133

14. हमारा नेता कौन?— Pgs. 136

15. कर्मयोग की मोक्ष— Pgs. 138

16. संघर्ष— Pgs. 141

17. विफलता— Pgs. 147

18. चिर-वसंत— Pgs. 150

The Author

Babu Gulab Rai

जन्म : 17 जनवरी, 1888 को इटावा (उ.प्र.) में।
शिक्षा : एम.ए. (दर्शनशास्त्र), एल-एल.बी., डी.लिट. (आगरा विश्‍वविद्यालय द्वारा मानद उपाधि)।
अवागढ़ राज्य में एक वर्ष कंट्रोलर ऑफ सेंट जोंस कॉलेज, आगरा में हिंदी का अध्यापन (अवैतनिक)। नागरी प्रचारिणी सभा, आगरा में ‘साहित्य रत्‍न’ तथा ‘विशारद’ की कक्षाओं का अध्यापन (अवैतनिक)। सरकारी और गैर-सरकारी संस्थाओं एवं समितियों के नीति संचालन में सहयोग।
‘साहित्य संदेश’ पत्रिका तथा अनेक महत्त्वपूर्ण साहित्यिक ग्रंथों का संपादन।
प्रकाशन : दर्शन, समीक्षा, निबंध, आत्म-जीवनी और जीवन प्रकीर्ण पर लगभग पचास पुस्तकें लिखीं तथा कुछ संपादित कीं।
सम्मान/पुरस्कार : साहित्यकार संसद्, प्रयाग और प्रांतीय व केंद्रीय सरकारों द्वारा पुरस्कृत।
हिंदी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग की परिषदों; ना.प्र. सभा, आगरा; ब्रज साहित्य मंडल तथा उच्च संस्थाओं का सभापतित्व।
स्मृति-शेष : 13 अप्रैल, 1963।

Customers who bought this also bought

WRITE YOUR OWN REVIEW