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Sahityik Parivesh Ke Vyangya   

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Author Giriraj Sharan
Features
  • ISBN : 9788173151552
  • Language : Hindi
  • Publisher : Prabhat Prakashan
  • Edition : 1st
  • ...more

More Information

  • Giriraj Sharan
  • 9788173151552
  • Hindi
  • Prabhat Prakashan
  • 1st
  • 2011
  • 144
  • Hard Cover

Description

दूसरों का हाल तो हम जानते नहीं, लेकिन जहाँ तक हमारा सवाल है, साहित्यकार बनकर हम बहुत घाटे में रहे; यानी चक्कर में सदा दाल- आटे के रहे । हजारों-लाखों बार सोचा कि काश, हम साहित्यकार न हुए होते, किसी कार्यालय में अहलकार हो गए होते, किसी अधिकारी के पेशकार हो गए होते और यह भी संभव नहीं था तो किसी धनपति राजा- महाराजा के दरबार में चाटुकार ही हो गए होते । चाटुकारिता कुछ भी हो, लेकिन साहित्यकारिता की तुलना में कहीं अधिक लाभदायक होती है ।
अपि अपने विरुद्ध बनाए गए किसी मुकदमे के सिलसिले में अदालत जाइए । आप देखेंगे कि वहाँ पेशकार नाम के सज्जन पूर्णरूप से ध्यानमग्न हुए अपनी कुरसी पर विराजमान हैं । वादियों - प्रतिवादियों की भीड़ सामने खड़ी हुई है । हरेक व्यक्‍त‌ि अपनी- अपनी कह रहा है, लेकिन वह किसी की भी नहीं सुनते हैं, अपने काम में व्यस्त हैं । वह जनवादी साहित्य नहीं, बल्कि कानूनवादी साहित्य रचने में जुटे हैं, और नजर उठाकर अपनी तरफ देखने को भी तैयार नहीं । जैसे-तैसे आप उनके निकट तक पहुँचते हैं और दस का नोट उनकी मुट्ठी में दबा देते हैं । तब वह झटपट कानूनवादी साहित्य रचकर फाइल आपकी ओर बढ़ा देते हैं कि दस्तखत करो ।
साहित्यिक गतिविधियों और साहित्यकारों की परिस्थितियों पर प्रस्तुत ये सार्थक व्यंग्य आपको गुदगुदाएँगे भई और अंदर तक प्रहार भी करेंगे ।

The Author

Giriraj Sharan

जन्म : सन् 1944, संभल ( उप्र.) ।
डॉ. अग्रवाल की पहली पुस्तक सन् 1964 में प्रकाशित हुई । तब से अनवरत साहित्य- साधना में रत आपके द्वारा लिखित एवं संपादित एक सौ से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं । आपने साहित्य की लगभग प्रत्येक विधा में लेखन-कार्य किया है । हिंदी गजल में आपकी सूक्ष्म और धारदार सोच को गंभीरता के साथ स्वीकार किया गया है । कहानी, एकांकी, व्यंग्य, ललित निबंध, कोश और बाल साहित्य के लेखन में संलग्न डॉ. अग्रवाल वर्तमान में वर्धमान स्नातकोत्तर महाविद्यालय, बिजनौर में हिंदी विभाग में रीडर एवं अध्यक्ष हैं । हिंदी शोध तथा संदर्भ साहित्य की दृष्‍ट‌ि से प्रकाशित उनके विशिष्‍ट ग्रंथों-' शोध संदर्भ ' ' सूर साहित्य संदर्भ ', ' हिंदी साहित्यकार संदर्भ कोश '-को गौरवपूर्ण स्थान प्राप्‍त हुआ है ।
पुरस्कार-सम्मान : उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान, लखनऊ द्वारा व्यंग्य कृति ' बाबू झोलानाथ ' (1998) तथा ' राजनीति में गिरगिटवाद ' (2002) पुरस्कृत, राष्‍ट्रीय मानवाधिकार आयोग, नई दिल्ली द्वारा ' मानवाधिकार : दशा और दिशा ' ( 1999) पर प्रथम पुरस्कार, ' आओ अतीत में चलें ' पर उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान, लखनऊ का ' सूर पुरस्कार ' एवं डॉ. रतनलाल शर्मा स्मृति ट्रस्ट द्वारा प्रथम पुरस्कार । अखिल भारतीय टेपा सम्मेलन, उज्जैन द्वारा सहस्राब्दी सम्मान ( 2000); अनेक संस्थाओं द्वारा सम्मानोपाधियाँ प्रदत्त ।

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