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Author Ramesh Chandra Mehrotra
Features
  • ISBN : 9789382901617
  • Language : Hindi
  • Publisher : Prabhat Prakashan
  • Edition : 1st
  • ...more
  • Kindle Store

More Information

  • Ramesh Chandra Mehrotra
  • 9789382901617
  • Hindi
  • Prabhat Prakashan
  • 1st
  • 2019
  • 120
  • Hard Cover

Description

हम जैसे हैं, उससे श्रेयस्कर बन सकते हैं । श्रेयस्कर होने का अर्थ है मानव के उन उदात्त गुणों का सर्वतोमुखी विकास, जो उसे अंतत: दिव्यता की ओर ले जाता है । दिव्यता के समस्त गुण मनुष्य के भीतर ही निहित हैं । आवश्यकता होती है उन्हें चैतन्य करने की । इसलिए इस जगत् के साथ ही मनुष्य को अपने बारे में भी जानना चाहिए । आत्मज्ञान बेहतर इनसान बनने का प्रथम सूत्र है । '
अध्यात्म और मनोविज्ञान दोनों मानते हैं कि जिस व्यक्‍त‌ि का मन निर्मल है और जो मनोयोग से अपने दैनंदिन दायित्वों का निर्वाह करते हुए कठोर श्रम करता है, वह निर्विघ्न निद्रा का अधिकारी बनता है । दूसरों को सुख पहुँचाना और समस्त ब्रह्मांड के कल्याण की कामना करना मन की निर्मलता के सर्वश्रेष्‍ठ उपाय हैं ।
अच्छा बनने के लिए और अच्छा बनने में विश्‍वास की भूमिका संभवत: सर्वाधिक महत्वपूर्ण है । आस्था व्यक्‍त‌ि को सतत आनंद देने के अलावा अनेक शारीरिक- मानसिक व्याधियों से भी उसकी रक्षा करती है । आस्था के इस बोनस को प्राप्‍त करने के लिए कोई सांसारिक व्यक्‍त‌ि भी लालायित होगा । तो क्यों न अच्छा बनने की सुखकारी यात्रा आस्था के रास्ते पर कदम बढ़ाकर शुरू की जाए । इस दृष्‍ट‌ि से सुप्रसिद्ध भाषाविद् और विचारक डॉ. रमेश चंद्र महरोत्रा की यह पुस्तक निस्संदेह प्रेरक होगी ।

The Author

Ramesh Chandra Mehrotra

जन्म : 17 अगस्त, 1934 ।
प्राप्‍त सम्मान : राष्‍ट्रीय स्तर से लेकर प्रादेशिक और क्षेत्रीय स्तर तक के दस सम्मान- सील ऑफ ऑनर (पूना, लखनऊ), विद्यासागर (बिहार), शब्द - सम्राट (हैदराबाद), छत्तीसगढ़ -विभूति (बिलासपुर), मायाराम सुरजन फाउंडेशन सम्मान (रायपुर) आदि ।
संबद्धता : केंद्र सरकार एवं राज्य सरकार के दो दर्जन आयोगों और परिषदों आदि से- विश्‍वविद्यालय अनुदान आयोग, संघ लोक सेवा आयोग, केंद्रीय हिंदी निदेशालय, वैज्ञानिक एवं तकनीकी शब्दावली का स्थायी आयोग, राष्‍ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद् तथा देश की अन्यान्य संस्थाओं से भाषाशास्त्री के रूप में संबद्ध हैं ।
प्रकाशन : इकतीस पुस्तकें (हिंदी भाषा विज्ञान और हिंदी साहित्य-लेखक, संपादक आदि), तेरह सौ पचास से अधिक लेख (शताधिक पत्र-पत्रिकाओं, ग्रंथों आदि मे) ।
शोध-निर्देशन : पाँच डी.लिट., उनतालीस पी -एच.डी., छह परियोजनाएँ ।
कुछ खास : जनवरी 1992 में ' नि:शुल्क विधवा विवाह केंद्र ' की स्थापना और उसका अनवरत सफल और सुफल संचालन (सपत्‍नीक) ।
सेवानिवृत्त प्रोफेसर एवं अध्यक्ष, भाषा विज्ञान एवं भाषा अध्ययनशाला, पं. रविशंकर शुक्ल विश्‍वविद्यालय, रायपुर ।

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