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Amir Khusro (PB)   

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Author Bhola Nath Tiwari
Features
  • ISBN : 9789353227708
  • Language : Hindi
  • Publisher : Prabhat Prakashan
  • Edition : 1
  • ...more

More Information

  • Bhola Nath Tiwari
  • 9789353227708
  • Hindi
  • Prabhat Prakashan
  • 1
  • 2021
  • 208
  • Soft Cover

Description

अमीर खुसरो फरसी, अरबी, तुर्की, संस्कृत तथा हिंदी के विद्वान् थे। उनका मूल नाम अबुल हसन था। 'खुसरो' उनका उपनाम था, जो आगे चलकर इतना चर्चित हुआ कि लोग उनका असली नाम ही भूल गए |जलालुद्दीन खिलजी ने उनकी कविता से प्रसन्न होकर उन्हें 'अमीर' का खिताब दिया, तब से वे 'अमीर खुसरो' कहे जाने लगे । खुसरो ने दस वर्ष की उम्र में ही काव्य-रचना शुरू कर दी थी। उन्होंने दर्शन, धर्मशास्त्र, इतिहास, युद्धविद्या, व्याकरण, ज्योतिष, संगीत आदि का गहन अध्ययन किया। उनकी पुस्तक 'लैला मजनू' से पता चलता है कि उनकी एक पुत्री तथा तीन पुत्र थे। खुसरो में देशप्रेम कूट-कूटकर भरा था। उन्हें अपनी मातृभूति भारत पर बड़ा गर्व था। उन्होंने एक स्थान पर कहा है-'मैं हिंदुस्तान की तूती हूँ। अगर तुम वास्तव में मुझसे जानना चाहते हो तो हिंदवी में पूछो, मैं तुम्हें अनुपम बातें बता सकूँगा।' खुसरो ने कई लाख शेर लिखे । इनकी कृतियों की संख्या ९९ बताई जाती है, परंतु अभी तक ४५ कृतियों का ही पता चला है। अमीर खुसरो एक बहुत अच्छे गायक और संगीतशास्त्री भी थे। संगीत के वाद्य और गेय दोनों ही क्षेत्रों में इनका योगदान रहा है। कई भाषाओं के प्रकांड विद्वान् और आपसी सद्भाव के प्रतीक अमीर खुसरो के जीवन-प्रसंग और उनके रचनासंसार से परिचित करानेवाली अनुपम पुस्तक।

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अनुक्रम

प्रथम खंड

(क) जीवन-परिचय —Pgs. 9

(ख) संगीत-प्रेम —Pgs. 20

(ग) रचनाएँ —Pgs. 23

(घ) आधुनिक भारतीय भाषाओं के प्रथम उल्लेखकर्ता —Pgs. 48

(ङ) ख़ुसरो की भाषा —Pgs. 52

द्वितीय खंड

(क) पहेलियाँ —Pgs. 57

(ख) मुकरियाँ —Pgs. 94

(ग) निस्बतें —Pgs. 112

(घ) दो-सख़ुन —Pgs. 117

(ङ) ढकोसले —Pgs. 125

(च) गीत —Pgs. 127

(छ) क़व्वाली —Pgs. 132

(ज) फ़ारसी-हिंदी मिश्रित छंद —Pgs. 135

(झ) सूफ़ी दोहे —Pgs. 137

(ञ) ग़ज़ल —Pgs. 141

(ट) फुटकर छंद —Pgs. 142

(ठ) ख़ालिक़बारी —Pgs. 143

ख़ालिक़बारी के शब्दों की ‘अर्थ तथा स्रोत-सहित’ अनुक्रमणी —Pgs. 184

सहायक साहित्य —Pgs. 207

The Author

Bhola Nath Tiwari

डॉ. भोलानाथ तिवारी ४ नवंबर, १९२३ को गाजीपुर (उ.प्र.) के एक अनाम ग्रामीण परिवार में जनमे डॉ. तिवारी का जीवन बहुआयामी संघर्ष की अनवरत यात्रा थी, जो अपने सामर्थ्य की चरम सार्थकता तक पहुँची। बचपन से ही भारत के स्वाधीनता-संघर्ष में सक्रियता के सिवा अपने जीवन-संघर्ष में कुलीगिरी से आरंभ करके अंततः प्रतिष्ठित प्रोफेसर बनने तक की जीवंत जय-यात्रा डॉ. तिवारी ने अपने अंतरज्ञान और कर्म में अनन्य आस्था के बल पर गौरव सहित पूर्ण की। हिंदी के शब्दकोशीय और भाषा-वैज्ञानिक आयाम को समृद्ध और संपूर्ण करने का सर्वाधिक श्रेय मिला डॉ. तिवारी को। भाषा-विज्ञान, हिंदी भाषा की संरचना, अनुवाद के सिद्धांत और प्रयोग, शैली-विज्ञान, कोश-विज्ञान, कोश-रचना और साहित्य-समालोचना जैसे ज्ञान-गंभीर और श्रमसाध्य विषयों पर एक से बढ़कर एक प्रायः ८८ ग्रंथरत्नों का सृजन कर उन्होंने कृतित्व का कीर्तिमान स्थापित किया।
६६ वर्ष की आयु में २५ अक्तूबर, १९८९ को उनका निधन हो गया।

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