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Shribharat Vijaya   

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Author Acharya Sohanlal Ramrang
Features
  • ISBN : 9789352665181
  • Language : Hindi
  • Publisher : Prabhat Prakashan
  • Edition : First
  • ...more

More Information

  • Acharya Sohanlal Ramrang
  • 9789352665181
  • Hindi
  • Prabhat Prakashan
  • First
  • 2018
  • 368
  • Hard Cover

Description

श्री भरत विजय महर्षि वाल्मीकि के अनुसार मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम राघवेंद्र के लौकिक जीवनकाल की अंतिम घटना है। कथानक वर्णन में केकय देश आततायी गंधर्वों के कारण अनेक संकटों से ग्रस्त हो गया। इनसे मुक्ति पाने के लिए अयोध्या नरेश श्रीराम से प्रार्थना की गई।
केकय देश को गंधर्वों के आतंक से मुक्त करने के लिए श्री भरत के सेनापतित्व में अयोध्या से विशाल चतुरंगिणी सेना चली। इस सैन्याभियान में उनके दोनों पुत्र तक्ष एवं पुष्कल भी साथ थे। सिंधु नद के पार गंधर्वों से भयंकर युद्ध छिड़ गया, निरंतर सात दिनों तक लोक विलयंक युद्ध होता रहा। किंतु किसी प्रकार विजय-प्राप्ति की स्थिति न आती देखकर श्री भरत ने मृत्युदेव के प्रलयंकारी सेवर्कास्त्र का प्रयोग कर तीन करोड़ गंधर्वों का संहार कर डाला। पाँच वर्ष पश्चात् श्री भरत अयोध्या लौटे। ये पाँच क्यों लगे? इसी का उत्तर अन्यान्य शास्त्रों के आधार पर देने का जो प्रयत्न किया गया, वही ‘श्री भरत विजय’ है। 
श्रीरामकथा के इस अल्पज्ञान प्रसंग की प्रस्तुति ही श्री भरत विजय के रूप में यह कृति है।

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विषय सूची

अनुच्छेद—पृष्ट

समर्पण—5

प्रणामांजलि—7

श्रीरामकालीन भूगोल——9

श्रीराम कथा का एक विलुप्तप्राय अध्याय : श्रीभरत विजय—11

श्रीभरत विजय के पात्र—43

मार्गदर्शक ग्रंथ एवं कृतियाँ—47

आशीर्वचन—51

प्रथम खंड

द्वितीय खंड

तृतीय खंड

The Author

Acharya Sohanlal Ramrang

आचार्य सोहनलाल रामरंग स्वांतः सुखाय कृतिकार, ओजस्वी वक्ता, सरस प्रवचनकर्ता, इतिहास तथा ज्योतिष के गंभीर अध्येता। काव्य-क्षेत्र में विविध विधाओं के आविष्कर्ता के साथ गद्य-क्षेत्र में भी उनकी गहरी पैठ है। 
अनेक देशों की यात्रा कर चुके हैं। देश की अनेक धार्मिक-सामाजिक-साहित्यिक-सांस्कृतिक संस्थाओं से संबंधित होने के अतिरिक्त अंतरराष्ट्रीय तुलसी संगम के संस्थापक प्रधानमंत्री भी हैं। अनेक कृतियों पर पी-एच.डी. हेतु शोध प्रबंध स्वीकृत। दो विद्वान् डी.लिट्. में भी कार्यरत हैं।
प्रकाशित कृतियाँ : उत्तर साकेत (महाकाव्य) दो खंड, युगपुरुष तुलसी (बृहद् उपन्यास) दो खंड, श्रीराम कथा की कथा (शोध कृति) दो खंड, स्वातंत्र्य समर सत्र (1857-1947), श्रीहरि कीर्ति प्रभा (श्रीमद्भागवत संक्षिप्त रूप), दिल्ली की रामलीलाएँ (शोधकृति) के अतिरिक्त  ग्यारह कृतियाँ प्रकाशित। नौ कृतियाँ प्रकाशनाधीन।
कई राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय सम्मानों से विभूषित।

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