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Pracheen Bharatiya Arth Chintan Ek Jhalak   

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Author Govind Ram Sahni
Features
  • ISBN : 9788177212815
  • Language : Hindi
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More Information

  • Govind Ram Sahni
  • 9788177212815
  • Hindi
  • Prabhat Prakashan
  • 2016
  • 224
  • Hard Cover

Description

भारतीय चिंतन में अर्थ को अत्यंत महत्त्वपूर्ण माना गया है, परंतु इसे साध्य, सर्वस्व नहीं माना गया है। इसका महत्त्व जीवन के लिए साधन तक ही सीमित रखा गया है। साध्य तो मोक्ष है, जिसकी प्राप्ति धर्म, अर्थ और काम के मर्यादित उपयोग से संभव होती है। अतः यह स्पष्ट है कि भारतीय चिंतन मूल रूप से आध्यात्मिक है, अध्यात्म-प्रधान है, जिसमें अर्थ ‘भौतिकता’ समाविष्ट है। 
एक पूर्ण चिंतन के लिए भौतिक के साथ ही अभौतिक (आध्यात्मिक) चिंतन को भी स्वीकार करना होगा। मानव सुख एवं कल्याण के लिए भौतिक तथा अभौतिक दोनों प्रकार के तत्त्वों का मिश्रित, समन्वित विचार करना होगा। प्रस्तुत पुस्तक में इसी प्राचीन भारतीय अर्थ-चिंतन पर गहराई से विचार किया गया है।
समृद्ध प्राचीन भारतीय अर्थव्यवस्था एवं तत्कालीन सामाजिक ताने-बाने 
का विहंगम दृश्य उपलब्ध कराती विवेचनात्मक पुस्तक।

 

The Author

Govind Ram Sahni

डॉ. गोविंद राम साहनी का जन्म रावलपिंडी (अब पाकिस्तान) जिले के गाँव नाड़ा में 15 जुलाई, 1935 को हुआ। 
माता-पिता के संस्कारों के कारण 
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ एवं अन्य राष्ट्रवादी संगठनों के साथ जुड़ने का जो योग बना, उसी पर वे आजीवन चलते रहे।
शिक्षा की ललक उन्हें इलाहाबाद विश्वविद्यालय ले गई, जहाँ प्रसिद्ध अर्थशास्त्री प्रो. जे.के. मेहता के व्यक्तित्व व शिक्षण ने उन्हें एक चिंतक बना दिया। एम.ए. (अर्थशास्त्र) के उपरांत समाज सेवा के दौरान देश एवं ग्रामीण परिवेश को निकट से देखा। पी. एचडी का विषय ‘उत्तर प्रदेशीय विद्युत् संस्थानों में श्रम स्थितियों का एक अध्ययन’ को चुना। 
परम पूज्य मा.स. गोलवलकर (श्रीगुरुजी) का आध्यात्मवाद, श्री दीनदयाल उपाध्याय का एकात्म मानववाद, श्री दत्तोपंत ठेंगड़ी का मजदूर चिंतन उन्हें प्रेरित करता रहा।
शिक्षण संस्थानों में 35 वर्षों तक अध्यापन के बाद 1995 में पोस्ट ग्रेजुएट कॉलेज के प्राचार्य पद से सेवानिवृत्ति के बाद भी जीवन यात्रा की इतिश्री तक विभिन्न संगठनों में सेवाकार्य करते रहे। शिक्षण के दौरान अर्थशास्त्र एवं अन्य सामाजिक विषयों पर कई पुस्तकें प्रकाशित हुईं। उनकी लेखनी पूवर्जों द्वारा अर्थशास्त्र पर किए चिंतन को समाज तक लाने को आतुर थी व इसी का परिणाम यह ग्रंथ है, जिसे उन्होंने कैंसर से जूझने के बाद भी पूरा किया। 
स्मृतिशेष : 19 दिसंबर, 2014

 

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