Prabhat Prakashan, one of the leading publishing houses in India eBooks | Careers | Events | Publish With Us | Dealers | Download Catalogues
Helpline: +91-7827007777

Gitanjali   

₹250

Out of Stock
  We provide FREE Delivery on orders over ₹1500.00
Delivery Usually delivered in 5-6 days.
Author Rabindranath Tagore
Features
  • ISBN : 9789380186054
  • Language : Hindi
  • Publisher : Prabhat Prakashan
  • Edition : 1st
  • ...more
  • Kindle Store

More Information

  • Rabindranath Tagore
  • 9789380186054
  • Hindi
  • Prabhat Prakashan
  • 1st
  • 2020
  • 122
  • Hard Cover

Description

‘गीतांजलि’ महान् रचनाकार नोबल पुरस्कार विजेता कवींद्र रवींद्रनाथ टैगोर का प्रसिद्ध महाकाव्य है। एक शताब्दी पूर्व जब इसकी रचना हुई, तब भी यह एक महाकाव्य था और एक शताब्दी के बाद भी यह महाकाव्य है तथा आनेवाली शताब्दियों में भी यह एक महाकाव्य ही रहेगा। इस महाकाव्य की उपयुक्‍तता तब तक रहेगी जब तक मानव सभ्यता जीवित है।
उन्नीसवीं सदी में विश्‍व साहित्य के क्षेत्र में भारतीयों की पहचान इस महाकाव्य के माध्यम से हुई। यह महाकाव्य हर भारतीय की अनुभूतियों से अंतरंग रूप से जुड़ा है। यह अपने आप में एक अनूठा महाकाव्य है, जो साधारण व्यक्‍ति से लेकर प्रकांड विद्वान् के लिए समान रूप से प्रेरणादायी है। इस काव्य की रचना न किसी विशेष समाज, प्रांत या देश विशेष के लिए है। यह महाकाव्य मानव संस्कृति एवं सभ्यता के लिए सदैव प्रेरणा का स्रोत रहेगा।
किसी महाकाव्य का अनुवाद दूसरी भाषा में करना तथा उसी भाषा में उसका शाब्दिक अर्थ मात्र करना काफी नहीं होता। अनुवाद से पूर्व यह आवश्यक है कि उस महाकाव्य में अंतर्निहित भावों को समझकर सम्यक् रूप में उसका मंथन किया जाए।
गीतांजलि, जिसका अनुवाद विश्‍व की सभी प्रमुख भाषाओं एवं सभी भारतीय भाषाओं में हो चुका है, ऐसे महाकाव्य का फिर से अनुवाद करने का साहस जुटाना अपने आप में अत्यंत प्रशंसनीय कार्य है।

The Author

Rabindranath Tagore

रवींद्रनाथ ठाकुर का जन्म महर्षि देवेंद्रनाथ टैगोर और शारदा देवी की संतान के रूप में 7 मई, 1861 को कलकत्ता के जोड़ासाँको ठाकुरबाड़ी में हुआ। उनकी स्कूली शिक्षा प्रतिष्‍ठित सेंट जेवियर स्कूल में हुई। लंदन विश्‍वविद्यालय से कानून का अध्ययन किया। सन् 1883 में मृणालिनी देवी के साथ उनका विवाह हुआ।
बचपन से ही उनकी कविता, छंद और भाषा में अद‍्भुत प्रतिभा का आभास मिलने लगा था। उन्होंने पहली कविता आठ साल की उम्र में लिखी थी और 1883 में केवल सोलह साल की उम्र में उनकी लघुकथा प्रकाशित हुई। भारतीय सांस्कृतिक चेतना में नई जान पूँक्‍तकनेवाले युगद्रष्‍टा टैगोर के सृजन संसार में ‘गीतांजलि’, ‘पूरबी प्रवाहिनी’, ‘शिशु भोलानाथ’, ‘महुआ’, ‘वनवाणी’, ‘परिशेष’, ‘पुनश्‍च’, ‘वीथिका शेषलेखा’, ‘चोखेरबाली’, ‘कणिका’, ‘नैवेद्य’ ‘मायेर खेला’ और ‘क्षणिका’ आदि शामिल हैं।
उन्होंने कुछ पुस्तकों का अंगेजी में अनुवाद भी किया। अंग्रेजी अनुवाद के बाद उनकी प्रतिभा पूरे विश्‍व में फैली। प्रकृति के सान्निध्य में एक लाइब्रेरी के साथ टैगोर ने शांतिनिकेतन की स्थापना की। सन् 1913 में उनकी काव्य-रचना ‘गीतांजलि’ के लिए उन्हें साहित्य का ‘नोबेल पुरस्कार’ मिला। स्मृतिशेष : 7 अगस्त, 1941

Customers who bought this also bought

WRITE YOUR OWN REVIEW