Prabhat Prakashan, one of the leading publishing houses in India eBooks | Careers | Events | Publish With Us | Dealers | Download Catalogues
Helpline: +91-7827007777

Pardesi   

₹300

Out of Stock
  We provide FREE Delivery on orders over ₹1500.00
Delivery Usually delivered in 5-6 days.
Features
  • ISBN : 9789355214386
  • Language : Hindi
  • Publisher : Prabhat Prakashan
  • Edition : 1st
  • ...more

More Information

  • 9789355214386
  • Hindi
  • Prabhat Prakashan
  • 1st
  • 2023
  • 216
  • Soft Cover
  • 250 Grams

Description

"रामधन ने रामसुख का हाथ पकड़कर कहा, 'भय्या रेलिया देख सकित हा का?'

रामसुख ने कहा, 'अरे काहे नाही, चला स्टेशन पर चली', कहकर तीनों प्लेटफार्म पर पहुँच गए। वहाँ एक रेलगाड़ी खड़ी थी। रामदीन अचानक कूदकर रेलगाड़ी पर चढ़ गए। उनके पीछे उत्सुकतावश रामधन, फिर रामसुख भी एकजुट रहने के मकसद से रेलगाड़ी पर चढ़ गए। रामसुख के चढ़ते ही ट्रेन एकाएक चल पड़ी। तीनों भाई एकदम हक्का-बक्का होकर एक सीट पर बैठ गए। रामसुख को समझ ही नहीं आया कि वे क्या करें? पर रामदीन और रामधन तो खुशी से चहक रहे थे। उन लोगों ने रेलगाड़ी पहले देखी भी न थी। रामसुख भाइयों के साथ खिड़की से बाहर देखकर चलती गाड़ी की गति अनुभव करने लगे। थकान से भरा शरीर, पर रेल की मीठी झुलान ने तीनों को सुला दिया। अचानक एक कड़क आवाज से रामसुख की आँख खुली तो सामने एक रोबदार अंग्रेज खड़ा था। वह टिकट जाँच का अधिकारी था। अंग्रेज ने कहा, 'ओ लड़के! टिकट दिखाओ।' रामसुख ने सिर हिलाकर कहा, 'टिकट नहीं है साहब।'

—इसी पुस्तक से

गाँव-देहात के भोले-भाले सरल निवासियों के अबोध, निश्छल और सहज भावभूमि का दिग्दर्शन करवाता पठनीय एवं मार्मिक उपन्यास, जो पाठकों की संवेदना को झंकृत कर देगा।"

The Author

Customers who bought this also bought

WRITE YOUR OWN REVIEW