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Maun Ka Mahashankh   

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Author Bhavna Shekhar
Features
  • ISBN : 9789386001818
  • Language : Hindi
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  • Kindle Store

More Information

  • Bhavna Shekhar
  • 9789386001818
  • Hindi
  • Prabhat Prakashan
  • 2018
  • 144
  • Hard Cover

Description

हिंदी कविता के मौजूदा परिदृश्य में धीरे-धीरे जगह बनानेवाली भावना शेखर ने ‘मौन का महाशंख’ तक आते-आते एक पहचान बना ली है। भाव, संवेदना और कथ्य के उर्वर परिवेश में उम्मीद की हरी पत्तियों को अँजुरी में भींचे भावना शेखर के भीतर का कवि कल्पना की पगडंडियों पर चलते हुए हर बार मिट्टी के सच्चे रंग की तरह एक नया जन्म लेता है। 
कवयित्री के कचनार-गंधी मन के दरवाज़े जब खुलते हैं तो जैसे जीवन की उदासियाँ किसी एक कोने में ठिठककर रह जाती हैं। मान-मनुहार और उद्दीप्त अनुराग के रंगों से रँगी भावना शेखर की कविताओं पर बेशक वक्त का चाबुक कम नज़र आता है, लेकिन कविताओं के पीछे एक सीधा-सच्चा, निर्मल मन अवश्य है, जो किसी प्रायोजित स्वाँग, दुःख या जद्दोजहद के अहसासों से परे है और परदुःख से कातर होकर किसी लाचार आँसू को अपने भाल पर रखने में अपना गौरव समझता है। 
भावना शेखर हिंदुस्तानी ज़बान की कवयित्री हैं, जिनका शायराना अंदाज़ हौले-हौले अपना बना लेता है। वे अपनी कविताओं में पुरुष को प्रतिलोम के रूप में न खड़ा कर स्त्री को महाकविता के अनन्य छंद के रूप में देखे जाने का आग्रह करती हैं। 
भावना शेखर की कविताओं में ‘काश’ की कशिश है तो यक्ष हुए जाते मन की विदग्ध चेतना भी। स्त्री की पीड़ा का संसार है तो पुरुष के साहचर्य पर एतबार जतानेवाला एक समावेशी मन भी। उसे भरोसा है, सुषुप्त वेदना की नदी को साँसों के रेशमी कंकड़ फेंककर कोई हौले से जगा दे तो अँगड़ाई लेकर नदी जी उठेगी और पत्थर का सीना भी बज उठेगा; जैसे मौन में महाशंख। 
—ओम निश्चल

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अनुक्रम

मेरी बात—7

1. हिसाब—11

2. जूते—14

3. कवच—16

4. शोर—18

5. जानवर—20

6. नई जाति के पेड़—23

7. हक़—25

8. पगडंडी—28

9. औरत का कमरा—31

10. प्रेम——33

11. लड़कियाँ—35

12. औरत और पायदान —37

13. उफ़... 39

14. चुप हूँ मैं—41

15. खाना बनानेवाली औरतें—42

16. मेट्रो का लेडीज़ डिब्बा —44

17. यक्षप्रश्न—47

18. देह पर की नदी—49

19. पुरुष—51

20. मन कचनार हो गया —54

21. वियोग—57

22. प्रेम को मुक्त करो —59

23. तुमने दिया है —61

24. मन यक्ष हुआ जाता है—62

25. नदी—64

26. देर कर दी—65

27. नेह-कण—67

28. चुल्लू भर प्रेम—68

29. सर्दी—71

30. हिमाचल—72

31. मैं और नीम—75

32. झोंपड़ी बहुत उदास है—77

33. पीपल—80

34. वो सरमाया था —84

35. वनजा —86

36. हे पुरुष!—88

37. काश!—91

38. माई कभी नहीं हँसेगी —94

39. मुनिया—98

40. मन——101

41. तितिक्षा —103

42. सफाई—104

43. पत्थरों में इक नदी —105

44. पानी—106

45. बदल गए मायने —108

46. सिलवटें —110

47. पुल—111

48. दुःख—112

49. भोर —114

50. प्रारब्ध—115

51. क्यों नहीं —116

52. पुष्पक विमान-सा —117

53. रेलगाड़ी से—119

54. वेदना—121

55. हथेली के घाव—122

56. धृति—124

57. ज्वार उतरेगा—125

58. फ़रमान —127

59. एक मुट्ठी धूप—128

60. प्रतिरोध—129

61. काफ़ी है—130

62. आईने—131

63. गुलाब से रिश्ता—133

64. लफ़्ज़—135

65. मैं चाहती हूँ —136

66. आसां नहीं—137

67. आसमां का चौकोर

टुकड़ा—138

68. खौफ़ज़दा है आसमां—139

69. तिश्नगी—140

70. गुमशुदा लम्हे—141

71. कहीं तो कभी तो—142

72. ज़िंदगी और कॉफ़ी—143

73. महफ़ूज़—144

The Author

Bhavna Shekhar

भावना शेखर
जन्म एवं शिक्षा : मूलतः हिमाचल प्रदेश से जुड़ी, दिल्ली में जनमी, लेडी श्रीराम कॉलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर द्वय (हिंदी, संस्कृत), एम.फिल. और पी-एच.डी.। गत सत्ताईस वर्षों से अध्यापन।
रचना-संसार : आस्तिक दर्शनों में प्रतिपादित  मीमांसा  सिद्धांत,  सत्तावन पँखुडि़याँ, साँझ का नीला किवाड़, मौन का महाशंख, जुगनी, खुली छतरी, जीतो सबका मन, मिलकर रहना। अनेक कविताओं का जापानी भाषा में अनुवाद।
गतिविधियाँ : आकाशवाणी के सर्वभाषा कवि सम्मेलन, बिहार के राष्ट्रीय ‘कविता समारोह’ और भारत-जापान द्वारा आयोजित पोएट्री सिंपोजियम में काव्य-पाठ। बिहार में ‘जागरण संवादी’ एवं पटना लिटरेचर फेस्टिवल में भागीदारी, छत्तीसगढ़ सरकार के ‘हिंदी हैं हम’ और दिल्ली सरकार की शैक्षिक कार्यशालाओं में विशेषज्ञ की भूमिका। इंडोनेशिया में ‘रामायण का वैज्ञानिक संदर्भ’ पर व्याख्यान।
पुरस्कार-सम्मान : सर्वश्रेष्ठ बालकथा का मधुबन संबोधन पुरस्कार एवं TERI संस्था द्वारा पुरस्कार। हिंदी साहित्य सम्मेलन, बिहार द्वारा साहित्यसेवी एवं शताब्दी पुरस्कार। नव अस्तित्व फाउंडेशन, दैनिक जागरण, दैनिक भास्कर द्वारा साहित्य के लिए वीमेंस अचीवर्स अवार्ड। 
संप्रति : ए.एन. कॉलेज पटना में अध्यापन। 
संपर्क : 8809931217

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