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Dastak   

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Author Vinod Bandhu
Features
  • ISBN : 9789353224172
  • Language : Hindi
  • Publisher : Prabhat Prakashan
  • Edition : 1st
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More Information

  • Vinod Bandhu
  • 9789353224172
  • Hindi
  • Prabhat Prakashan
  • 1st
  • 2019
  • 256
  • Hard Cover

Description

विनोद बंधु ईमानदारी और पारदर्शिता से ओत-प्रोत कुछ प्रामाणिक पत्रकारों में से एक हैं। ‘दैनिक हिंदुस्तान’ में सन् 2012 से 2015 के बीच उन्होंने अपने साप्ताहिक कॉलम ‘दस्तक’ में अनेकानेक विषयों पर लिखा था, जो राजसत्ता के लिए चेतावनी देनेवाले और नागरिक समाज के लिए आँख खोलनेवाले होते थे। चूँकि दैनिक हिंदुस्तान बिहार में सर्वाधिक बिकनेवाला अखबार है, इसलिए उनके कॉलम का सरकार पर अकसर निर्णायक प्रभाव होता था। फलतः सरकार अपनी कमियों को दुरुस्त ही नहीं करती थी, बल्कि अपने शासन-तंत्र को भी एक काम करनेवाले राज्य के ढाँचे में बदलने की कोशिश करती थी। ‘दस्तक’ अपनेपन की भावना के साथ बिहार का प्रचार-प्रसार करने में भी बहुत महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता था। ऐसे समय में जब राज्य में उप-राष्ट्रीयता की भावना लगभग अनुपस्थित थी, उसको मजबूत करने में ‘दस्तक’ की गंभीर भूमिका रही। उप-राष्ट्रीयता कोई गुप्त एजेंडा नहीं है। इसे मजबूत करने के लिए ज्वलंत सामाजिक मुद्दों के प्रति चिंतित होना जरूरी है। ऐसे मुद्दे उनके कॉलम में निखरकर आते थे। ‘दस्तक’ में बिहार के बजट या अन्य आर्थिक मुद्दों पर ही बारीकी से चर्चा नहीं होती थी, बल्कि उसमें राज्य को ‘विशेष श्रेणी’ का दर्जा दिलाने के लिए एक जुझारू प्रयास दिखता था। ‘दस्तक’ सरकार के लिए कोई थपकी नहीं थी। यह नागरिक समाज के लिए महत्त्वपूर्ण सुझाव था। यह एक ऐसा उत्प्रेरक माध्यम था, जिसने अनेक बहस-मुबाहिसे पैदा किए। सोशल मीडिया के दौर में, जब वास्तविकता को समझना मुश्किल है, ‘दस्तक’ ने राज्य के सबसे महत्त्वपूर्ण दौर में सामाजिक आलोड़न पैदा करने में पथ-प्रदर्शक की भूमिका निभाई।
—शैवाल गुप्ता

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अनुक्रम 59. बिहार का कृषि विकास राष्ट्रीय एजेंडा क्यों नहीं? —Pgs. 135
बिहार की दास्ताँ है—दस्तक —Pgs. 5 60. सक्रिय समाज और संकल्पित जनता बदल सकती है तस्वीर —Pgs. 137
दस्तक से पहले —Pgs. 7 61. समावेशी विकास मॉडल का सूत्रधार बनेगा बिहार —Pgs. 139
1. जो समय मिला, उसका ​कितना उपयोग हुआ? —Pgs. 17 62. बिजली का मोर्चा जीतने को जरूरी है बेहतर तालमेल —Pgs. 141
2. यह है बिहार हित की राजनीति का मॉड्‍यूल —Pgs. 19 63. विकास पर बनाए रखिए एका के इस जज्बे को —Pgs. 143
3. देवव्रत ने सच कबूलने का साहस दिखाया —Pgs. 21 64. बिहार के शहरों और कस्बों को किसने बनाया बदसूरत? —Pgs. 145
4. विपक्ष के कमजोर होने का जिम्मेदार कौन? —Pgs. 23 65. विकास पर इस बहस को पारदर्शी बनाने की जरूरत —Pgs. 147
5. चुनाव से तय होगी शहरों की तकदीर —Pgs. 25 66. रेल और आम बजट में बिहार की उपेक्षा क्यों? —Pgs. 149
6. जनाधार की चिंता और जातीय आस्था के मायने —Pgs. 27 67. बैंकों का यह रवैया उनके हितों के भी अनुकूल नहीं —Pgs. 151
7. कई मौजूँ सवालों के जवाब अभी बाकी हैं —Pgs. 29 68. निवेश की इस शुरुआत के बड़े नतीजे आएँगे —Pgs. 153
8. वाह! एक तीर के अनगिनत निशाने —Pgs. 31 69. राज्यों को धन देने की समय-सीमा क्यों नहीं? —Pgs. 155
9. बड़प्पन दिखाने में पिछड़ गई भाजपा —Pgs. 33 70. परिश्रम से अर्जित धन ही असल लक्ष्मी! —Pgs. 157
10. होश में जोश का यह अद्भुत संगम —Pgs. 35 71. इस आईने में दिखती है देश-प्रदेश की तस्वीर —Pgs. 159
11. डूबते ‘ठाकरे जहाज’ को चाहिए तिनके का सहारा —Pgs. 37 72. रेल और आम बजट पर टिकीं बिहार की निगाहें —Pgs. 161
12. केंद्र सरकार की असली परख दिल्ली रैली के बाद —Pgs. 39 73. केंद्र ने उम्मीदें जगाईं और निराश भी किया —Pgs. 163
13. निराधार तर्कों से नहीं बनता मजबूत आधार —Pgs. 41 74. जरूरत निचले स्तर पर इच्छाशक्ति की —Pgs. 165
14. बिहार में इतिहास ने खुद को दोहराया —Pgs. 43 75. सूबे की रेल परियोजनाएँ कब तक उपेक्षित रहेंगी? —Pgs. 167
15. काश! चर्चा इस समय शहीदों की वीर गाथा पर केंद्रित होती —Pgs. 45 76. फसल बीमा पर सियासी शास्त्रार्थ —Pgs. 169
16. भटकल की गिरफ्तारी और राजनीतिक जंग —Pgs. 47 77. टैक्स चोरी का यह रैकेट विकास की राह का रोड़ा —Pgs. 171
17. रेड कारपेट के रास्ते नहीं बन सकता रेड कॉरिडोर —Pgs. 49 78. नौकरशाही के लिए यह बड़ा सबक है —Pgs. 173
18. विधानमंडल का ताजा सत्र भी हंगामे की भेंट चढ़ेगा? —Pgs. 51 79. दिशा-निर्देशों पर अमल क्यों नहीं? —Pgs. 175
19. चुनावी शास्त्रार्थ को मुद्दों से भटकाने के प्रपंच भी —Pgs. 53 80. प्राथमिकता वाले क्षेत्र में सुस्ती बड़ी घातक —Pgs. 177
20. ताकि विशेष राज्य के दर्जे के संघर्ष की धार कुंद न हो —Pgs. 55 81. गुड पुलिसिंग में मॉडल बनने की तमन्ना क्यों नहीं? —Pgs. 179
21. ब्रांडिंग और वास्तविकता के बीच गठबंधन की डोर —Pgs. 57 82. ऐसे सख्त कदम बदलेंगे मिजाज —Pgs. 181
22. आप के प्रति आकर्षण की गहराइयों में झाँकें —Pgs. 59 83. रणनीतिक कौशल और सूचना तंत्र की कंगाली —Pgs. 183
23. दोस्ती और वैचारिक व्रत टूटे राजनीति ने नई परिभाषा गढ़ी —Pgs. 61 84. क्यों चाहिए प्रखंड और जिले? —Pgs. 185
24. जनहित के मुद्दों पर मंथन ज्यादा जरूरी —Pgs. 63 85. भ्रष्टाचार खत्म करना है, तो बदलनी होगी कसौटी —Pgs. 187
25. चिंता कल की करें या आनेवाले कल की? —Pgs. 65 86. सामाजिक चेतना का अभियान अब जरूरी —Pgs. 189
26. दल-बदल की आँधी भी कोई वन वे ट्रैफिक नहीं —Pgs. 67 87. निचले स्तर के भ्रष्टाचार को रोकना बड़ी चुनौती —Pgs. 191
27. बिहार की दुःखती रगों पर ही गडकरी ने हाथ रखा! —Pgs. 69 88. खाद्य सुरक्षा की राह में कई बड़ी चुनौतियाँ भी —Pgs. 193
28. घोषणा-पत्र पर जवाबदेही से क्यों मुकर रही हैं पार्टियाँ? —Pgs. 71 89. क्यों है भ्रष्टाचारी की जाति जानना जरूरी? —Pgs. 195
29. गाँवों में ज्यादा दिख रहा वोट का जज्बा —Pgs. 73 90. सामाजिक शर्म बने भ्रष्टाचार —Pgs. 197
30. यूँ ही नहीं फिसल जाती बड़े नेताओं की जुबान —Pgs. 75 91. भरथुआ के ग्रामीणों के इंसाफ को सलाम —Pgs. 199
31. नीतीश के इस्तीफे का फैसला साधारण नहीं —Pgs. 77 92. विरोध का यह अंदाज लोकतंत्र के खिलाफ —Pgs. 201
32. अब रणनीति के केंद्र में राजनीति की अगली कड़ी —Pgs. 80 93. मधुबनी में जनभावना को समझने में हुई चूक —Pgs. 203
33. गहरा रहा है जदयू का आंतरिक संकट —Pgs. 83 94. क्या हर समस्या के समाधान का रास्ता जाम से गुजरता है? —Pgs. 205
34. वैकल्पिक राजनीतिक समीकरण की पहल —Pgs. 85 95. बात रखने की इस प्रवृत्ति का ओर-छोर कहीं और! —Pgs. 207
35. बिहार में चुनावी महाभारत दो ध्रुवीय होने के आसार —Pgs. 87 96. आस्था का उग्र प्रदर्शन क्या धर्म का अपमान नहीं? —Pgs. 209
36. शिक्षा विभाग के रवैये से गंभीर बन रहीं चुनौतियाँ —Pgs. 89 97. पुरावशेषों के प्रति ऐसी उदासीनता समझ से परे —Pgs. 211
37. काश! इसे संकल्प का दिवस बना पाते —Pgs. 91 98. तो महासुंदरी की मुराद कैसे पूरी होती? —Pgs. 213
38. नर्सरी बंद रही, तो कैसे पनपेगी नई पौध? —Pgs. 93 99. बच्‍चों से हमने क्या छीना और बदले में क्या दिया? —Pgs. 215
39. राहतजीवी सोच है विकास में बाधक —Pgs. 95 100. पेड़ों पर पेंटिंग, मैथिली फिल्म और धरहरा —Pgs. 217
40. केंद्रीय विवि पर जिद के निहितार्थ को समझे केंद्र —Pgs. 97 101. सेहत के बीमा में निष्ठा है दाँव पर —Pgs. 219
41. वी.सी. नियुक्ति पर लगे नारों के निहितार्थ गंभीर —Pgs. 99 102. मौत के इन सौदागरों के खजाने पर चोट जरूरी —Pgs. 221
42. नालंदा विवि की स्थापना में अब उदासीनता क्यों? —Pgs. 101 103. सांस्कृतिक आदान-प्रदान की यह खूबसूरत मिसाल —Pgs. 223
43. इसे बिहार की जिद नहीं सत्य का आग्रह मानिए —Pgs. 103 104. समाज भी इस चुनौती के खिलाफ खड़ा हो —Pgs. 225
44. इस आईने में चेहरा देखें तो सबका भला —Pgs. 105 105. क्रिकेट की पिच को राजनीति से बख्श दें —Pgs. 227
45. इच्छाशक्ति ने बनाया कृषि का रोल मॉडल —Pgs. 107 106. जमीन की खरीद-बिक्री में फर्जीवाड़ा नई चुनौती —Pgs. 229
46. समारोहों से बने माहौल को विस्तार देना होगा —Pgs. 109 107. धमारा हादसे का जिम्मेवार कौन? सवाल आज भी मौजूँ —Pgs. 231
47. बिहार की धरोहर है धरहरा —Pgs. 111 108. दरभंगा-जयनगर एनएच के आईने में देखें अपना चेहरा —Pgs. 233
48. समय की माँग है शर्तों में संशोधन —Pgs. 113 109. घर में घूँघट और खुले में शौच, कैसा विरोधाभास? —Pgs. 235
49. इसमें बिहार का भी पुनर्जन्म निहित है —Pgs. 115 110. सोहेल अपहरण कांड से परदा हटाने में सहयोग करें हनीफ —Pgs. 237
50. क्या बिहार का दर्द भी कोई समझेगा? —Pgs. 117 111. सीमांध्र को विशेष दर्जा से उठा फैसले की कसौटी पर सवाल —Pgs. 239
51. पवार साहब! बिहार का अपराध क्या है? —Pgs. 119 112. पेयजल पर सरकारी चिंता मौसमी क्यों? —Pgs. 241
52. यह बिहार के हक की लड़ाई है —Pgs. 121 113. धरती की प्यास बुझी नहीं तबाही का खतरा सिर पर —Pgs. 243
53. कोई भी विचार अंतिम या अनुपयोगी नहीं होता —Pgs. 123 114. आवागमन को सुगम बनाने की चिंता क्यों नहीं? —Pgs. 245
54. बिहार ने इंसाफ की आधी जंग जीत ली —Pgs. 125 115. यह संगठित ताकत का बेजा इस्तेमाल नहीं? —Pgs. 247
55. सांस्कृतिक आदान-प्रदान की यह खूबसूरत मिसाल —Pgs. 127 116. आधा-अधूरा मन और बड़ा मंसूबा —Pgs. 249
56. सीठियो के माथे पर राष्ट्रीय धर्म निभाने का सेहरा भी —Pgs. 129 117. ऐसी करतूतों से जंगली सभ्यता भी शरमा जाए! —Pgs. 251
57. विशेष दर्जे का लाभ लेने की रणनीति अभी से बने —Pgs. 131 118. चुनौतियों के बीच सब्र कोई प्रकृति से सीखे —Pgs. 253
58. आयोजन के बाद संवाद और सरोकार भी जरूरी —Pgs. 133 119. नेपाल को लेकर समय रहते सँभलना जरूरी —Pgs. 255

The Author

Vinod Bandhu

विनोद बंधु
जन्म : 3 अगस्त, 1964 मधुबनी।
शिक्षा : स्नातक (ऑनर्स)।
कृतित्व : सन् 1984 से पत्रकारिता में सक्रिय; 1984 में ‘जनचेतना’ पत्रिका का संपादन; पाटलिपुत्र टाइम्स, आर्यावर्त और जनमत आदि पत्र-पत्रिकाओं में नियमित लेखन; 1986 में नवभारत टाइम्स से जुड़े; 1995 में राष्ट्रीय नवीन मेल के संपादकीय प्रभारी रहे; 1997 में दिल्ली पहुँचे और न्यूज चैनल टी.वी.आई. में सीनियर असिस्टेंट न्यूज प्रोड्यूसर के पद पर कार्य किया; 1999 से अमर उजाला के विभिन्न संस्करणों में कार्य किया; 2004 में आउटलुक के बिहार-झारखंड प्रभारी बने; 2008 में नई दुनिया के बिहार-झारखंड प्रभारी बने; 2010 में हिंदुस्तान, भागलपुर के संपादक बने; फिर हिंदुस्तान, पटना में राजनीतिक संपादक रहे। वर्तमान में ‘हिंदुस्तान’ के झारखंड स्टेट एडिटर हैं।
संपर्क : वीणा कुंज, शेख गली रोड, ग्राम-पोस्ट—रांटी, मधुबनी-847211 (बिहार)।
इ-मेल : vinod_bandhu@rediffmail.com

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