Prabhat Prakashan, one of the leading publishing houses in India eBooks | Careers | Events | Publish With Us | Dealers | Download Catalogues
Helpline: +91-7827007777

Bharat Ko Samajhane Ki Sharten   

₹600

Out of Stock
  We provide FREE Delivery on orders over ₹1500.00
Delivery Usually delivered in 5-6 days.
Author Suryakant Bali
Features
  • ISBN : 9789351868507
  • Language : HINDI
  • Publisher : Prabhat Prakashan
  • Edition : 1
  • ...more
  • Kindle Store

More Information

  • Suryakant Bali
  • 9789351868507
  • HINDI
  • Prabhat Prakashan
  • 1
  • 2016
  • 360
  • Hard Cover

Description

तो? पीला यानी भगवा। रक्ताभ-पीत यानी भगवा। रक्त यानी भगवा। पीताभ-रक्त यानी भगवा। केसरिया यानी भगवा। फाग, बसंती रंग, होली का रंग, पकी-फसल का रंग, यानी भगवा। सूर्योदय का रंग भगवा। यज्ञ की अग्नि का रंग भगवा। कश्मीर यानी केसर का रंग भगवा। यह भगवा रंग अपने स्वभाव से जुड़ा हुआ है। पिछले दस हजार साल से जुड़ा हुआ है। हमने तो इसकी सिर्फ राजनीतिक व्याख्या भर की है। धर्मनिरपेक्षता की मार खाए और पिछले कुछ दशकों में उस मार से कराहते लोगों को ‘भगवा’ शब्द से परेशानी होती हो तो हुआ करे। धर्मनिरपेक्ष कोड़ों की मार से कराहते बेबस बुद्धिजीवियों की इस काँपती-कराहती हुई आवाज को क्या सुनना हुआ? हमारी ये सभी पंक्तियाँ, ये सभी पृष्ठ ऐसे कराहते लोगों को समझाने की कल्याण भावना से ही लिखे गए हैं। दशकों से कराह रहे बुद्धिजीवी सदियों से उपलब्ध इस औषध को न लेना चाहें तो कोई क्या कर सकता है। पर इसकी वजह से देश नहीं रुक जाएगा। दस हजार साल से देश अपने हाथ में भगवा पताका उठाए ही चल रहा है। भविष्य में भी देश यही करता रहेगा, उसमें किसी को कोई शक है क्या? गंगा को गंगासागर से मिलने से कोई रोक पाया है?

______________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________

अनुक्रम

पूर्वकथन — Pgs. 7

पस्पशा

1. ‘भगवाही है भारत की पहचान — Pgs. 15

2. या होता है सांस्कृतिक राष्ट्रवाद — Pgs. 26

भारत तुझे नमस्कार

3. एक महाशति की वर्षगाँठ — Pgs. 39

4. गणतंत्र के गणपति, जागो — Pgs. 43

5. भारत को पूजने का पर्व — Pgs. 48

6. भारत के महाशति होने का अर्थ — Pgs. 53

7. खुद को तलाशती एक बेचैन महाशति — Pgs. 57

8. मखौल मूल्य नहीं हो सकते — Pgs. 61

9. सुंदर है सेस का चेहरा, इसे बिगाड़िए मत — Pgs. 64

पंचपरमेश्वर : शिव-राम-कृष्ण-बुद्ध-महावीर

10. भगवान् शिव : आसान नहीं जीवन में शिव पा लेना — Pgs. 69

11. भगवान् राम : नर से नारायण की यात्रा — Pgs. 72

12. भगवान् कृष्ण : जिस कृष्ण को देश भुला बैठा है — Pgs. 75

13. भगवान् बुद्ध : आचरण से ही है दु:ख-मुक्ति — Pgs. 78

14. भगवान् महावीर : तपस्या में छिपा है जीवन का मर्म — Pgs. 83

तीन वैचारिक आंदोलन

15. आचार्य याज्ञवल्य : अध्यात्म आंदोलन के प्रवर्तक — Pgs. 91

16. जगद्गुरु शंकराचार्य : अद्वैत आंदोलन का दूसरा नाम — Pgs. 98

17. महाप्रभु वल्लभाचार्य : भति-आंदोलन का शीर्ष व्यतित्व — Pgs. 107

मेरे देश की राष्ट्रीयता

18. हम विभाजन को भूल यों गए हैं? — Pgs. 117

19. राष्ट्रीयता पर बहस अब जरूरी हो गई है — Pgs. 123

20. राष्ट्रीयता : मिट्टी से उपजा यकीन — Pgs. 127

21. राष्ट्रीयता : विरासत की ईमानदार पहचान — Pgs. 135

22. 1857 से सिखाया जा रहा एक सबक — Pgs. 140

भारत राष्ट्र राज्य : राज्य बनाम समाज

23. व्यवस्था को न पचा पाने का संकट — Pgs. 147

24. इस राष्ट्र को राज्य बनने से एलर्जी यों है? — Pgs. 152

25. इतिहास से कुछ न सीखने की जिद — Pgs. 157

26. राजनीतिक एकता की जमीन — Pgs. 161

27. महाविलय के दौर में एक गणराज्य — Pgs. 165

28. नया राज्य पुनर्गठन आयोग बनाया जाए — Pgs. 169

29. राष्ट्रपति तंत्र ही भारत को बचाएगा — Pgs. 173

उपराष्ट्रीयता विमर्श

30. उपराष्ट्रीयता बोध अलगाव का पर्यायवाची नहीं — Pgs. 181

31. उप-राष्ट्रीयताओं से परहेज कैसा — Pgs. 187

32. उप-राष्ट्रीयताओं को समझने के लिए — Pgs. 190

33. भारत के इस नशे को भी देखिए — Pgs. 193

हिन्दुत्व : समेकित विमर्श

34. या रामकृष्ण मिशन हिंदू नहीं है? — Pgs. 199

35. बुंदेलखंड का पौराणिक चेहरा महर्षि वेदव्यास — Pgs. 207

36. राम हैं तो रामसेतु भी है — Pgs. 210

37. लंदन के ईसाई, भारत के ईसाई — Pgs. 213

38. वे जो रामसेतु बचाने निकले हैं — Pgs. 216

39. करुणानिधि का राम-विरोध — Pgs. 219

40. हिंदू सरोकार की परिभाषा — Pgs. 222

41. भारत में सिर्फ गटर ढूँढ़नेवाले ये — Pgs. 225

42. याद करें नैमिषारण्य की वह संत सभा — Pgs. 228

हिन्दुत्व : दलित विमर्श

43. पिछड़े तो सिर्फ दलित हैं-1 — Pgs. 233

44. पिछड़े तो सिर्फ दलित हैं-2 — Pgs. 238

45. दलितों की हत्याओं पर हड़ताल यों नहीं होती? — Pgs. 241

46. अपने ही भाइयों को दलित बनानेवाला हिंदुत्व — Pgs. 247

47. हिंदुत्व : एक जागरण से बेखबर दो पुनर्जागरण — Pgs. 251

48. हिंदुत्व : दलित, मध्यम, सवर्ण जातियों के समीकरण — Pgs. 256

49. हिंदुत्व : एक विराट् भति आंदोलन की प्रतीक्षा — Pgs. 261

50. अंबेडकर दर्शन की खुशनुमा सफलता — Pgs. 266

51. बसपा, कालाराम और दलित गोविंदम् — Pgs. 269

52. धर्म, जाति और विचारधारा — Pgs. 272

हिन्दुत्व : अयोध्या विमर्श

53. अयोध्या : समझौते से कौन डर रहा है? — Pgs. 277

54. अयोध्या : ऐतिहासिक समझौते की पहल मुसलमान करें — Pgs. 283

55. रामकथा के ये नवसाक्षर छुटभैये — Pgs. 288

56. अयोध्या को चुनावों में उतारिए — Pgs. 291

सांप्रदायिकता-धर्मनिरपेक्षता

57. सांप्रदायिकता : संसद् में एक बहस का कर्मकांड — Pgs. 297

58. श्रीनगर के दंगों से उभरे चंद सवाल — Pgs. 302

59. भारत का मुसलमान कुंठा-मुत हो — Pgs. 307

60. उर्दू भाषा को संप्रदाय से यों जोड़ें — Pgs. 312

61. धर्मसापेक्षता हमारे पर्यावरण में है — Pgs. 317

62. उर्दू एक भाषा है, राजनीति का कोई मोहरा नहीं — Pgs. 323

भारत का राजधर्म

63. राष्ट्रपति भवन में कैद पड़ी एक कुरसी — Pgs. 331

64. एक औपचारिक कुरसी की ताकत का राज — Pgs. 337

65. भारतीय राजधर्म का प्रतीक — Pgs. 342

66. राष्ट्रपति पद की परिभाषा या हो — Pgs. 346

फलश्रुति

67. विचारधारा के लिए, राजनीतिक संघर्ष — Pgs. 351

The Author

Suryakant Bali

भारतीय संस्कृति के अध्येता और संस्कृत भाषा के विद्वान् श्री सूर्यकान्त बाली ने भारत के प्रसिद्ध हिंदी दैनिक अखबार ‘नवभारत टाइम्स’ के सहायक संपादक (1987) बनने से पहले दिल्ली विश्वविद्यालय में अध्यापन किया। नवभारत के स्थानीय संपादक (1994-97) रहने के बाद वे जी न्यूज के कार्यकारी संपादक रहे। विपुल राजनीतिक लेखन के अलावा भारतीय संस्कृति पर इनका लेखन खासतौर से सराहा गया। काफी समय तक भारत के मील पत्थर (रविवार्ता, नवभारत टाइम्स) पाठकों का सर्वाधिक पसंदीदा कॉलम रहा, जो पर्याप्त परिवर्धनों और परिवर्तनों के साथ ‘भारतगाथा’ नामक पुस्तक के रूप में पाठकों तक पहुँचा। 9 नवंबर, 1943 को मुलतान (अब पाकिस्तान) में जनमे श्री बाली को हमेशा इस बात पर गर्व की अनुभूति होती है कि उनके संस्कारों का निर्माण करने में उनके अपने संस्कारशील परिवार के साथ-साथ दिल्ली विश्वविद्यालय के हंसराज कॉलेज और उसके प्राचार्य प्रोफेसर शांतिनारायण का निर्णायक योगदान रहा। इसी हंसराज कॉलेज से उन्होंने बी.ए. ऑनर्स (अंग्रेजी), एम.ए. (संस्कृत) और फिर दिल्ली विश्वविद्यालय से ही संस्कृत भाषाविज्ञान में पी-एच.डी. के बाद अध्ययन-अध्यापन और लेखन से खुद को जोड़ लिया। राजनीतिक लेखन पर केंद्रित दो पुस्तकों—‘भारत की राजनीति के महाप्रश्न’ तथा ‘भारत के व्यक्तित्व की पहचान’ के अलावा श्री बाली की भारतीय पुराविद्या पर तीन पुस्तकें—‘Contribution of Bhattoji Dikshit to Sanskrit Grammar (Ph.D. Thisis)’, ‘Historical and Critical Studies in the Atharvaved (Ed)’ और महाभारत केंद्रित पुस्तक ‘महाभारतः पुनर्पाठ’ प्रकाशित हैं। श्री बाली ने वैदिक कथारूपों को हिंदी में पहली बार दो उपन्यासों के रूप में प्रस्तुत किया—‘तुम कब आओगे श्यावा’ तथा ‘दीर्घतमा’। विचारप्रधान पुस्तकों ‘भारत को समझने की शर्तें’ और ‘महाभारत का धर्मसंकट’ ने विमर्श का नया अध्याय प्रारंभ किया।

Customers who bought this also bought

WRITE YOUR OWN REVIEW