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Yog Bhagaye Rog   

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Author Swami Akshey Atmanand
Features
  • ISBN : 9789386001825
  • Language : Hindi
  • Publisher : Prabhat Prakashan
  • Edition : 1st
  • ...more

More Information

  • Swami Akshey Atmanand
  • 9789386001825
  • Hindi
  • Prabhat Prakashan
  • 1st
  • 2018
  • 160
  • Hard Cover

Description

' जिसे मृत्यु छीन ले, वह सब ' पर ' है । जिसे मृत्यु भी न छीन पाये, वह ' स्व ' है । इस ' स्व ' में जो स्थित है, सिर्फ वही स्वस्थ है, बाकी सब अस्वस्थ हैं । ''
अपने चारों ओर ' पर ' का जो आग्रह है, संग्रह है, उसे ही परिग्रह कहा गया है । परिग्रह कोई वस्तु नहीं है, जिसका त्याग कर देने से परिग्रह हो जायेगा । यदि ' पर ' का आग्रह छूट जाये, सिर्फ ' स्व ' ही रह जाये, शुद्ध-बुद्ध आत्मा में निवास हो जाये, तो यह मनुष्य उसी क्षण परम आत्मा यानी परमात्मा बन जायेगा । कितना कठिन है स्वस्थ होना और कितना सरल है अस्वस्थ बना रहना!
अध्यात्म तो सिर्फ आत्मा को स्वस्थ बनाने की विधि बताता है । आज की उन्न्त कहलाने वाली शिक्षा ने आत्मा को बकवास कहा है । इसके अस्तित्व से भी इनकार किया है । उसके लिए शरीर ही सबकुछ है । वही मनुष्य का आदि भी है और अन्त भी है । अत: यह शिक्षा-प्रणाली शरीर के इर्द-ग‌िर्द ही घूमती रहती है । शरीर से बीमारियों को निकाल बाहर करने के नाम पर एक दिन शरीर को ही निकाल बाहर कर देती है ।
जिन्हें आत्मा के रहस्य को जानने के लिए स्वस्थ शरीर चाहिए उनके शरीर को अच्छा स्वास्थ्य और दीर्घायु जीवन देने में यह पुस्तक पूर्ण समर्थ है; क्योंकि योग का यही नारा है ।
- इसी पुस्तक से
' योगासनों से चिकित्सा ' विषय पर लिखी गयी मौलिक और श्रेष्‍ठ कृति है ' योग भगाये रोग ' । इसमें विभिन्न आसनों को सरल भाषा तथा अति रोचक शैली में चित्रों के माध्यम से समझाया गया है । सभी पाठकों के लिए यह संग्रहणीय कृति है ।

The Author

Swami Akshey Atmanand

वर्तमान जीवन-व्यवस्था ऐसी हो गई है कि आज लगभग प्रत्येक व्यक्‍त‌ि किसी- न-किसी रोग से ग्रस्त है । जिन रोगों के बारे में हमने कभी सुना भी नहीं था, अब उन्हें देखना ही नहीं, भोगना भी हमारी विवशता बनती जा रही है । संपूर्ण संसार में हजारों चिकित्सा-पद्धतियाँ विकसित हो चुकी हैं । इनके साथ-साथ उन्नत चिकित्सकीय यंत्र एवं उपकरण तथा अद‍्भुत जीवन रक्षक दवाएँ विकसित कर ली गई हैं, फिर भी आज का मानव नाना रोगों से पीड़ित जीने को विवश है । अत : इन रोगों का कारण क्या है, यह जानना अत्यावश्यक हो गया है । इसका प्रमुख कारण है-हमारा असंयमित- असंतुलित आहार ।
हमें क्या खाना चाहिए, क्यों खाना चाहिए, कब खाना चाहिए, कितना खाना चाहिए-ऐसे अनेक गंभीर प्रश्‍नों का समाधान स्वामीजी ने प्रस्तुत पुस्तक ' आहार चिकित्सा ' में बड़ी ही सरल, सुगम व बोधगम्य भाषा में प्रभावपूर्ण ढंग से किया है । स्वामीजी का मानना है कि दैनिक खान- पान से ही अच्छा उपचार किया जा सकता है । स्वामीजी द्वारा सुझाई गई बातों को अगर आप ध्यानपूर्वक आत्मसात‍् करेंगे, धैर्य और शांति से उनका अनुसरण करेंगे तो निश्‍चय ही बीमार होने की नौबत नहीं आएगी । 
हमें विश्‍वास है, प्रस्तुत पुस्तक पाठकों का आहार चिकित्सा संबंधी ज्ञानवर्द्धन तो करेगी ही, उन्हें पूर्णतया स्वस्थ रखने में भी महती भूमिका अदा करेगी ।

 

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