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Shrihari Naam Mahima   

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Author Vidya Bindu Singh
Features
  • ISBN : 9789380183213
  • Language : Hindi
  • Publisher : Prabhat Prakashan
  • Edition : 1st
  • ...more

More Information

  • Vidya Bindu Singh
  • 9789380183213
  • Hindi
  • Prabhat Prakashan
  • 1st
  • 2013
  • 304
  • Hard Cover

Description

मैं विदुषी डॉ. विद्याविंदु सिंहजी को उनकी उम्दा साहित्यिक रचनाओं के माध्यम से वर्षों से परिचित हूँ। उन्होंने हिंदी की विविध विधाओं पर अपनी कलम चलाई है। विशेष रूप से लोक साहित्य और संस्कृति से संबंधित उनका कार्य प्रशंसनीय एवं रेखांकनीय है।
‘श्री हरिनाम महिमा’ पुस्तक भारतीय धर्म-दर्शन को लोक की आँखों से परखने का एक प्रयास है। लोक का यह आलोक इस कृति के माध्यम से पाठकों तक पहुँचे, यही प्रभु से प्रार्थना है।
—डॉ. बालशौरि रेड्डी, चेन्नई
बरसों से मैं डॉ. विद्याविंदु सिंह से और लोकजीवन व साहित्य पर किए गए उनके कार्यों से सुपरिचित हूँ। गाँव में जनमी, पली और जिस तरह अपना विकास शहरी परिवेश में आकर किया, वहाँ भी वे ग्रामीण-लोकजीवन की कलाभिव्यक्तियों के प्रति सचेत रहीं। अवध के लोकांचल को नगरीय समाज के समक्ष लाने में उनकी भूमिका स्मरणीय रहेगी।
जिसे हम लोकजीवन कहते हैं वह ब्रह्माण्डीय जीवन है, जिसके दिगंत बहुआयामी हैं। लोक से परलोक, भौतिकता से आध्यात्मिकता का संसार फैला हुआ है। कहते हैं कि भारत को केवल पदार्थ विज्ञान से नहीं बल्कि आध्यात्मिक दृष्टि से समझने की जरूरत है, क्योंकि यहाँ का अध्यात्म और यहाँ की भौतिकता न किसी कर्मकांड में शामिल है, न किसी राजनीति में।
अब अगर कोई इसकी व्याख्या करना चाहे तो वह भी यहाँ स्वीकार्य तो है, पर लोक उस पर अपनी मुहर लगाए, यह जरूरी नहीं है।
यह कृति लोक के इस सहज भाव को पाठकों तक पहुँचा सके, यही शुभकामना है।
—विजय बहादुर सिंह
निदेशक, भारतीय भाषा परिषद्, कोलकाता

The Author

Vidya Bindu Singh

जन्म : 2 जुलाई,1945, ग्राम जैतपुर, सोनावाँ, फैजाबाद (उ.प्र.)।
कृतित्व : 87 कृतियाँ प्रकाशित एवं 27 कृतियाँ प्रकाशनार्थ, जिनमें 8 कहानी संग्रह, 5 उपन्यास, 6 नाटक, 8 कविता संग्रह, 5 निबंध संग्रह, 21 पुस्तकें लोक साहित्य पर,15 नवसाक्षर एवं बाल साहित्य।
15 पुस्तकें व 8 पत्रिकाएँ संपादित। विभिन्न पत्र-पत्रिकओं एवं ग्रंथों में 3000 से अधिक रचनाएँ प्रकाशित एवं संकलित। आकाशवाणी एवं दूरदर्शन के विभिन्न केंद्रों से निरंतर प्रसारण। देश-विदेश की संस्थाओं, विश्‍वविद्यालयों से संबद्ध, विभिन्न साहित्यिक आयोजनों में देश-विदेशों में सक्रिय भागीदारी।
‘डॉ. विद्याविंदु सिंह व्यक्‍तित्व और कृतित्व’ पर लखनऊ, गढ़वाल, कानपुर एवं पुणे विश्‍वविद्यालय द्वारा शोध हुए। नेपाली में अनुवादित सच के पाँव (कविता संग्रह) साहित्य अकादेमी, दिल्ली द्वारा पुरस्कृत। जापानी, बँगला, मलयालम, कश्मीरी, तेलुगु में भी रचनाओं के अनुवाद प्रकाशित।
संप्रति : साहित्य एवं समाजसेवा का कार्य।

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