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Savarkar Samagra -IX   

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Author Vinayak Damodar Savarkar
Features
  • ISBN : 9788173153297
  • Language : Hindi
  • Publisher : Prabhat Prakashan
  • Edition : 1st
  • ...more

More Information

  • Vinayak Damodar Savarkar
  • 9788173153297
  • Hindi
  • Prabhat Prakashan
  • 1st
  • 2005
  • 724
  • Hard Cover

Description

'सावरकर ' शब्द साहस, शौर्य, पराक्रम और राष्‍ट्रभक्‍त‌ि का पर्याय है । क्रांतिकारी इतिहास के स्वर्णिम पृष्‍ठों पर अंकित स्वातंत्र्यवीर सावरकर का समूचा व्यक्‍त‌ित्व अप्रतिम गुणों से संपन्न था । मातृभूमि की स्वतंत्रता के लिए प्राण हथेली पर रखकर जूझनेवाले महान् क्रांतिकारी; जातिभेद, अस्पृश्यता व अंधश्रद्धा जैसी सामाजिक बुराइयों को समूल नष्‍ट करने का आग्रह करनेवाले महान् द्रष्‍टा; ' गीता ' के कर्मयोग सिद्धांत को अपने जीवन में आचरित करनेवाले अद‍्भुत कर्मचोगी; अनादि- अनंत परमात्मा का प्राणमय प्रस्कुरण स्वयं के अंदर सदैव अनुभव करते हुए अंदमान जेल की यातनाओं को धैर्यपूर्वक सहनेवाले महान् दार्शनिक, अपने तेजस्वी विचारों से सहस्रों श्रोताओं को झकझोर देने और उन्हें सम्मोहित करनेवाले अद‍्भुत वक्‍ता तथा कविता, उपन्यास, कहानी, चरित्र, आत्मकथा, इतिहास, निबंध आदि विभिन्न विधाओं में उच्च कोटि के साहित्य की रचना करनेवाले प्रतिभाशाली साहित्यकार थे स्वातंत्र्यवीर विनायक दामोदर सावरकर ।
स्वतंत्रता-संग्राम एवं समाज-सुधार जैसे क्षेत्रों में महत्त्वपूर्ण कार्य करनेवाला व्यक्‍त‌ि उच्च कोटि का साहित्यकार भी हो, यह अपवाद है- और इस अपवाद के प्रत्यक्ष प्रमाण हैं वीर सावरकर ।
भारतीय वाड्मय में उनके साहित्य का अत्यंत महत्त्वपूर्ण स्थान है; किंतु वह अधिकांश मराठी में उपलब्ध होने के कारण इस महान् साहित्यकार के अप्रतिम योगदान के बारे में अन्य भारतीय भाषाओं के पाठक अधिक परिचित नहीं हैं ।
वीर सावरकर के चिर प्रतीक्षित समग्र साहित्य का प्रकाशन हिंदी जगत् के लिए गौरव की बात है ।

The Author

Vinayak Damodar Savarkar

जन्म : 28 मई, 1883 को महाराष्‍ट्र के नासिक जिले के ग्राम भगूर में ।
शिक्षा : प्रारंभिक शिक्षा गाँव से प्राप्‍त करने के बाद वर्ष 1905 में नासिक से बी.ए. ।
1 जून, 1906 को इंग्लैंड के लिए रवाना । इंडिया हाउस, लंदन में रहते हुए अनेक लेख व कविताएँ लिखीं । 1907 में ' 1857 का स्वातंत्र्य समर ' ग्रंथ लिखना शुरू किया । प्रथम भारतीय नागरिक जिन पर हेग के अंतरराष्‍ट्रीय न्यायालय में मुकदमा चलाया गया । प्रथम क्रांतिकारी, जिन्हें ब्रिटिश सरकार द्वारा दो बार आजन्म कारावास की सजा सुनाई गई । प्रथम साहित्यकार, जिन्होंने लेखनी और कागज से वंचित होने पर भी अंडमान जेल की दीवारों पर कीलों, काँटों और यहाँ तक कि नाखूनों से विपुल साहित्य का सृजन किया और ऐसी सहस्रों पंक्‍त‌ियों को वर्षों तक कंठस्थ कराकर अपने सहबंदियो द्वारा देशवासियों तक पहुँचाया । प्रथम भारतीय लेखक, जिनकी पुस्तकें-मुद्रित व प्रकाशित होने से पूर्व ही-दो-दो सरकारों ने जब्‍त कीं । वे जितने बड़े क्रांतिकारी उतने ही बड़े साहित्यकार भी थे । अंडमान एवं रत्‍नगिरि की काल कोठरी में रहकर ' कमला ', ' गोमांतक ' एवं ' विरहोच्छ‍्वास ' और ' हिंदुत्व ', ' हिंदू पदपादशाही ', ' उ: श्राप ', ' उत्तरक्रिया ', ' संन्यस्त खड्ग ' आदि ग्रंथ लिखे ।
महाप्रयाण : 26 फरवरी, 1966 को ।

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