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Samudri Jaiv-Proudhyogiki   

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Author Dr. R. Kripakaran , Dr. D.D. Ozha
Features
  • ISBN : 9789387968554
  • Language : Hindi
  • Publisher : Prabhat Prakashan
  • Edition : 1st
  • ...more
  • Kindle Store

More Information

  • Dr. R. Kripakaran , Dr. D.D. Ozha
  • 9789387968554
  • Hindi
  • Prabhat Prakashan
  • 1st
  • 2019
  • 176
  • Hard Cover

Description

वर्तमान युग में जैव प्रौद्योगिकी, नैनो-प्रौद्योगिकी तथा बायो-नैनोटेक्नोलॉजी बहुआयामी तथा बहूपयोगी तकनीकें हैं, जिनका सदुपयोग मानव कल्याण एवं संधारणीय विकास के लिए देश-विदेश में हो रहा है। यह सर्वविदित तथ्य है कि समुद्र हमारे बहुत ही महत्त्वपूर्ण संसाधन हैं, जो चिरकाल तक हमें अनेकानेक वस्तुओं के प्रदाता रहेंगे। वस्तुतः जैव प्रौद्योगिकी की अनेक शाखाएँ हैं, जो भविष्य में एक विज्ञान का रूप लेंगी, जिसमें समुद्री जैव प्रौद्योगिकी भी एक प्रमुख शाखा है, जिसका उद्भव लगभग दो दशक पूर्व ही हुआ है और इस विषय पर हिंदी में पुस्तक का नितांत अभाव है; इस पुस्तक के माध्यम से उस अभाव की पूर्ति करने का प्रामाणिक प्रयास किया है।
समुद्री जैव प्रौद्योगिकी शीर्षक पुस्तक में जैव प्रौद्योगिकी की प्रासंगिकता, समुद्री संसाधन से औषधियाँ, रसायन, समुद्री शैवाल एवं उनकी विभिन्न क्षेत्रों में उपादेयता, जलकृषि,  पर्यावरणीय  जैव  प्रौद्योगिकी, एन.आई.ओ.टी. में समुद्री जैव प्रौद्योगिकी विषयक  जनोपयोगी  शोधकार्य  तथा महासागरीय शोधक्षेत्र में कार्यरत राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय संगठन आदि के बारे में सरल एवं बोधगम्य भाषा में जानकारी प्रदान करने का प्रयास किया गया है। पुस्तक में वर्णित सारणियों, श्वेत-श्याम एवं रंगीन चित्रों से विषय को समझने में आसान बना दिया है। विद्यार्थी, शोधार्थी, वैज्ञानिक ही नहीं, सामान्य पाठकों के लिए भी एक जानकारीपरक उपयोगी पुस्तक।

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संदेश —Pgs. 7

प्राक्कथन —Pgs. 9

1. जैव-प्रौद्योगिकी की परिभाषा —Pgs. 13

2. जैव-प्रौद्योगिकी की प्रासंगिकता —Pgs. 15

3. अंतरिक्ष जैव-प्रौद्योगिकी —Pgs. 19

4. समुद्री जैव-प्रौद्योगिकी —Pgs. 20

5. समुद्र से रसायन —Pgs. 39

6. समुद्री शैवाल : भारतीय समुद्र की अक्षुण्ण संपदा —Pgs. 46

7. शैवाल का औषधीय उपयोग एवं स्वास्थ्य-वर्धन में योगदान —Pgs. 65

8. जल कृषि जैव-प्रौद्योगिकी —Pgs. 111

9. पारजीनी मछलियाँ —Pgs. 120

10. मत्स्य स्वास्थ्य प्रबंधन एवं जैव-प्रौद्योगिकी  —Pgs. 122

11. हाइब्रिडोमा तकनीक एवं एकक्लोनी प्रतिरक्षी का महत्त्व —Pgs. 124

12. पी.सी.आर. : एक क्रांतिकारी तकनीक —Pgs. 127

13. पर्यावरणीय जैव-प्रौद्योगिकी —Pgs. 129

14. एन.आई.ओ.टी. में समुद्री जैव-प्रौद्योगिकी विषयक  अनुसंधान का विहगांवलोकन —Pgs. 138

15. जैव परिदूषण नियंत्रण की उन्नत विधियाँ —Pgs. 147

16. समुद्री जैव-प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में कार्यरत राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय संस्थान —Pgs. 150

संदर्भ —Pgs. 159

The Author

Dr. R. Kripakaran

डॉ. आर. कृपाकरण
बनारस हिंदू विश्व- विद्यालय से डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त डॉ. कृपाकरण देश के लब्धप्रतिष्ठ समुद्री जैव प्रौद्योगिकी विशेषज्ञ हैं। वे देश-विदेश की समुद्री जैव विविधता विषयक गठित उच्च स्तरीय समितियों के शासी सदस्य हैं। डॉ. कृपाकरण के शताधिक शोध-पत्र, 4 पुस्तकें एवं कई लोकोपयोगी आलेख प्रकाशित हैं। उन्होंने 27 अधिस्नातक एवं 5 शोधार्थियों का तकनीकी मार्गदर्शन किया है तथा 6 राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय पेटेंट प्राप्त किए हैं।
इ-मेल : kirubagar@gmail.com

Dr. D.D. Ozha

डॉ. डी.डी. ओझा
डॉ. दुर्गादत्त ओझा, मरुप्रदेश की सूर्यनगरी में जनमे डॉ. ओझा विगत चार दशकों से भी अधिक समय से हिंदी में विज्ञान लोक- प्रियकरण तथा विज्ञान साहित्य सृजन का जनोपयोगी कार्य कर रहे हैं। वैज्ञानिक होेते हुए भी उनकी राजभाषा हिंदी के प्रति निष्ठा के कारण उन्होंने विज्ञान के अनेक विषयों पर साठ से अधिक पुस्तकों का प्रणयन किया है; सैकड़ों जनोपयोगी आलेख, शोधपत्रादि भी हिंदी में प्रकाशित हुए हैं। विज्ञान के कई विषयों पर शोध कार्य कर उनके दर्जनों शोध-पत्र भी देश-विदेश में प्रकाशित हुए हैं। दूरदर्शन एवं आकाशवाणी पर अनेक बार तकनीकी वार्त्ताएँ भी दी हैं। उत्कृष्ट लेखन के लिए उन्हें राष्ट्रीय पुरस्कारों एवं सम्मानों से विभूषित किया किया गया है। वे देश-विदेश की कई विज्ञान संस्थाओं के चयनित फेलो, पत्र-पत्रिकाओं के संपादन मंडल के सदस्य भी हैं।
इ-मेल : ddozha@gmail.com

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