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Nyaya Vyavastha Par Vyangya   

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Author Giriraj Sharan
Features
  • ISBN : 9789352664108
  • Language : Hindi
  • Publisher : Prabhat Prakashan
  • Edition : 1st
  • ...more

More Information

  • Giriraj Sharan
  • 9789352664108
  • Hindi
  • Prabhat Prakashan
  • 1st
  • 2018
  • 130
  • Hard Cover

Description

हमारे एक परममित्र हुए हैं घसीटासिंह ' मुकदमेबाज ' । कई मामलों में बड़े ही विचित्र स्वभाव के आदमी थे । हमें जब यह विचार आया कि न्यायालयों के बारे में जानकारी प्राप्‍त करने के लिए कुछ अनुभवी लोगों से संपर्क करें तो याद आए श्री घसीटासिंह जी! क्योंकि उनके जीवन की एकमात्र ' हॉबी ' ही मुकदमेबाजी रही थी । आप मानें या न मानें, जितनी भी हाबियाँ हैं, उनमें सबसे रोचक अगर कोई है तो मुकदमेबाजी है । बस, शर्त यह है कि आपको मुकदमा लड़ना और दाँव- पेच से काम लेना आता हो ।
एक दिन हमारे भूतपूर्व मित्र घसीटासिंह ' मुकदमेबाज ' ने यह कहकर हमें चौंका दिया था कि अदालत में असली मुकदमों की मात्रा, ईश्‍वर झूठ न बुलवाए, तो बस इतनी ही होती है, जितनी प्राचीन युग से लेकर अब तक उड़द पर सफेदी या वर्तमान में पानी मे दूध की मात्रा । घसीटासिह ' मुकदमेबाज ' का कहना था कि अदालत में चलने वाले ज्यादातर मुकदमे फर्जी होते हैं, जिनसे या तो मुकदमेबाजों की हॉबी गरी होती है या जो अपने विरोधियों को परेशान करने के लिए ठोक दिए जाते हैं । गवाहों के अलावा मुकदमेबाजों को कई और चीजें भी खरीदनी होती हैं; जैसे वकील, चपरासी, पेशकार आदि- आदि । खेद यह है कि जब कोई अनुभवहीन व्यक्‍त‌ि कोर्ट या अदालत की कल्पना करता है तो उसके ध्यान में केवल जज या मुंसिफ मजिस्ट्रेट का ही चेहरा उभरता है, जबकि अदालत केवल इसी एक महापुरुष का नाम नहीं है । न्यायालयों की व्यवस्था पर अपनी पैनी नजर डालनेवाले व्यंग्यकारों के ये व्यंग्य आपको हँसाएँगे भी और व्यंग्य स्‍थलों पर सताएँगे भी ।

The Author

Giriraj Sharan

जन्म : सन् 1944, संभल ( उप्र.) ।
डॉ. अग्रवाल की पहली पुस्तक सन् 1964 में प्रकाशित हुई । तब से अनवरत साहित्य- साधना में रत आपके द्वारा लिखित एवं संपादित एक सौ से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं । आपने साहित्य की लगभग प्रत्येक विधा में लेखन-कार्य किया है । हिंदी गजल में आपकी सूक्ष्म और धारदार सोच को गंभीरता के साथ स्वीकार किया गया है । कहानी, एकांकी, व्यंग्य, ललित निबंध, कोश और बाल साहित्य के लेखन में संलग्न डॉ. अग्रवाल वर्तमान में वर्धमान स्नातकोत्तर महाविद्यालय, बिजनौर में हिंदी विभाग में रीडर एवं अध्यक्ष हैं । हिंदी शोध तथा संदर्भ साहित्य की दृष्‍ट‌ि से प्रकाशित उनके विशिष्‍ट ग्रंथों-' शोध संदर्भ ' ' सूर साहित्य संदर्भ ', ' हिंदी साहित्यकार संदर्भ कोश '-को गौरवपूर्ण स्थान प्राप्‍त हुआ है ।
पुरस्कार-सम्मान : उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान, लखनऊ द्वारा व्यंग्य कृति ' बाबू झोलानाथ ' (1998) तथा ' राजनीति में गिरगिटवाद ' (2002) पुरस्कृत, राष्‍ट्रीय मानवाधिकार आयोग, नई दिल्ली द्वारा ' मानवाधिकार : दशा और दिशा ' ( 1999) पर प्रथम पुरस्कार, ' आओ अतीत में चलें ' पर उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान, लखनऊ का ' सूर पुरस्कार ' एवं डॉ. रतनलाल शर्मा स्मृति ट्रस्ट द्वारा प्रथम पुरस्कार । अखिल भारतीय टेपा सम्मेलन, उज्जैन द्वारा सहस्राब्दी सम्मान ( 2000); अनेक संस्थाओं द्वारा सम्मानोपाधियाँ प्रदत्त ।

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