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DaduDayal Aur Hamara Samay Book in Hindi | Nand Kishore Pandey   

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Author Ed. Prof. Nand Kishore Pandey
Features
  • ISBN : 9789355219749
  • Language : Hindi
  • ...more

More Information

  • Ed. Prof. Nand Kishore Pandey
  • 9789355219749
  • Hindi
  • Prabhat Prakashan
  • 2024
  • 472
  • Soft Cover
  • 480 Grams

Description

भारत की पहचान उसके अध्यात्म से है। संत दादूदयाल ने अपने आध्यात्मिक बोध को राजस्थानी, गुजराती तथा उर्दू में बहुत ही सरल ढंग से प्रस्तुत किया है। वे निष्कर्ष रूप में समझाते हैं कि अपनी वृत्तियों को संसार से हटाकर परमात्मा की ओर लगाओ। ब्रह्म में वृत्ति लगने के बाद इंद्रियाँ बाह्य विषयों की ओर नहीं जाती हैं। इसके कारण मन की चंचलता दूर होती है और वृत्तियों को ब्रह्म में लीन करने में सुविधा होती है। संत दादूदयाल सहित दादूपंथियों ने 16वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध से 20वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध तक यानी चार सौ वर्षों तक साहित्य रचना के साथ भारतीय समाज और संस्कृति को समृद्ध तथा सबल बनाने के लिए अनेक कार्य किए। 20वीं शताब्दी में दादूपंथियों ने संस्कृत महाविद्यालय तथा अनेक अन्य विद्यालयों की स्थापना की। इन विद्यालयों में दादूवाणी, संगीत, व्यायाम, अंग्रेजी आदि की शिक्षा दी जाती रही है ।

महाविद्यालय तथा विद्यालयों के शिक्षक व्याकरण, साहित्य, वेदांत, आयुर्वेद तथा अनेक दर्शनों के निष्णात विद्वान् थे। दादूपंथियों ने पंथ से जुड़े तालाबों तथा वृक्षों को महिमामंडित कर पर्यावरण की चेतना को जाग्रत् किया। इमली माहात्म्य, वट तीर्थ माहात्म्य, शमी तीर्थ, खेजड़ा माहात्म्य आदि लिखा। दादूदयाल से जुड़े स्थानों को पंचधाम के रूप में स्थापित किया। ये स्थान हैं- 1. कल्याणपुर (करड़ाला) तीर्थ, 2. सांभर तीर्थ, 3. आमेर तीर्थ, 4. नारायणा दादूधाम तीर्थ, 5. गिरि तीर्थ भैराणा । दादूपंथ की समझ दादूदयाल के अतिरिक्त उनके शिष्यों-प्रशिष्यों की पुस्तकों तथा उनसे जुड़े स्थानों के अध्ययन से ही विकसित होती है।

The Author

Ed. Prof. Nand Kishore Pandey
प्रो. नंद किशोर पाण्डेय
भारतीय साहित्य के चर्चित और प्रतिष्ठित विद्वान् हैं। भारतीय मध्यकालीन साहित्य के लेखक और वक्ता के रूप में विशिष्ट पहचान। राजीव गांधी विश्वविद्यालय, ईटानगर तथा राजस्थान विश्वविद्यालय में हिंदी विभागाध्यक्ष रहे। ‘संत रज्जब’, ‘संत साहित्य की समझ और दादूपंथ के शिखर संत’ उल्लेखनीय पुस्तकें हैं। इन्होंने अनेक देशों की अकादमिक यात्राएँ की हैं। केंद्रीय हिंदी संस्थान के निदेशक के रूप में इन्होंने अपनी बहुमूल्य सेवाएँ दीं। संप्रति : कला संकाय में राजस्थान विश्वविद्यालय के अधिष्ठाता और शोध निदेशक।
 
प्रो. दीपेंद्र सिंह जाडेजा
हिंदी और गुजराती साहित्य के चर्चित अध्येता हैं। वर्तमान में कला संकाय में महाराजा सयाजीराव विश्वविद्यालय, बड़ौदा के डीन तथा  पोस्ट ग्रेजुएशन कॉउंसिल के मेंबर। मध्यकालीन हिंदी साहित्य और गुजराती लोक-साहित्य के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य। अनेक महत्त्वपूर्ण पुस्तकें प्रकाशित।

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