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Author Vishnu Prabhakar
Features
  • ISBN : 9789386300096
  • Language : Hindi
  • Publisher : Prabhat Prakashan
  • Edition : 1st
  • ...more

More Information

  • Vishnu Prabhakar
  • 9789386300096
  • Hindi
  • Prabhat Prakashan
  • 1st
  • 2017
  • 352
  • Hard Cover

Description

हिंदी कथा-साहित्य के सुप्रसिद्ध गांधीवादी रचनाकार श्री विष्णु प्रभाकर अपने पारिवारिक परिवेश से कहानी लिखने की ओर प्रवत्त हुए। बाल्यकाल में ही उन दिनों की प्रसिद्ध रचनाएँ उन्होंने पढ़ डाली थीं।
उनकी प्रथम कहानी नवंबर १९३१ के ‘हिंदी मिलाप’ में छपी। इसका कथानक बताते हुए वे लिखते हैं, ‘परिवार का स्वामी जुआ खेलता है, शराब पीता है, उस दिन दीवाली का दिन था। घर का मालिक जुए में सबकुछ लुटाकर शराब के नशे में धुत्त दरवाजे पर आकर गिरता है। घर के भीतर अंधकार है। बच्चे तरस रहे हैं कि पिताजी आएँ और मिठाई लाएँ। माँ एक ओर असहाय मूकदर्शक बनकर सबकुछ देख रही है। यही कुछ थी वह मेरी पहली कहानी।’
सन् १९५४ में प्रकाशित उनकी कहानी ‘धरती अब भी घूम रही है’ काफी लोकप्रिय हुई। लेखक का मानना है कि जितनी प्रसिद्धि उन्हें इस कहानी से मिली, उतनी चर्चित पुस्तक ‘आवारा मसीहा’ से भी नहीं मिली।
श्री विष्णुजी की कहानियों पर आर्यसमाज, प्रगतिवाद और समाजवाद का गहरा प्रभाव है। पर अपनी कहानियों के व्यापक फलक के मद्देनजर उनका मानना है कि ‘मैं न आदर्शों से बँधा हूँ, न सिद्धांतों से। बस, भोगे हुए यथार्थ की पृष्ठभूमि में उस उदात्त की खोज में चलता आ रहा हूँ।...झूठ का सहारा मैंने कभी नहीं लिया।’
उदात्त, यथार्थ और सच के धरातल पर उकेरी उनकी संपूर्ण कहानियाँ हम पाठकों की सुविधा के लिए आठ खंडों में प्रस्तुत कर रहे हैं। ये कहानियाँ मनोरंजक तो हैं ही, नव पीढ़ी को आशावादी बनानेवाली, प्रेरणादायी और जीवनोन्मुख भी हैं।

 

The Author

Vishnu Prabhakar

अपने साहित्य में भारतीय वाग्मिता और अस्मिता को व्यंजित करने के लिए प्रसिद्ध रहे श्री विष्णु प्रभाकर का जन्म 21 जून, 1912 को मीरापुर, जिला मुजफ्फरनगर (उ.प्र.) में हुआ था। उनकी शिक्षा-दीक्षा पंजाब में हुई। उन्होंने सन् 1929 में चंदूलाल एंग्लो-वैदिक हाई स्कूल, हिसार से मैट्रिक की परीक्षा पास की। तत्पश्‍चात् नौकरी करते हुए पंजाब विश्‍वविद्यालय से भूषण, प्राज्ञ, विशारद, प्रभाकर आदि की हिंदी-संस्कृत परीक्षाएँ उत्तीर्ण कीं। उन्होंने पंजाब विश्‍वविद्यालय से ही बी.ए. भी किया। विष्णु प्रभाकरजी ने कहानी, उपन्यास, नाटक, जीवनी, निबंध, एकांकी, यात्रा-वृत्तांत आदि प्रमुख विधाओं में लगभग सौ कृतियाँ हिंदी को दीं। उनकी ‘आवारा मसीहा’ सर्वाधिक चर्चित जीवनी है, जिस पर उन्हें ‘पाब्लो नेरूदा सम्मान’, ‘सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार’ सदृश अनेक देशी-विदेशी पुरस्कार मिले। प्रसिद्ध नाटक ‘सत्ता के आर-पार’ पर उन्हें भारतीय ज्ञानपीठ द्वारा ‘मूर्तिदेवी पुरस्कार’ मिला तथा हिंदी अकादमी, दिल्ली द्वारा ‘शलाका सम्मान’ भी। उन्हें उ.प्र. हिंदी संस्थान के ‘गांधी पुरस्कार’ तथा राजभाषा विभाग, बिहार के ‘डॉ. राजेंद्र प्रसाद शिखर सम्मान’ से भी सम्मानित किया गया। विष्णु प्रभाकरजी आकाशवाणी, दूरदर्शन, पत्र-पत्रिकाओं तथा प्रकाशन संबंधी मीडिया के विविध क्षेत्रों में पर्याप्‍त लोकप्रिय रहे। देश-विदेश की अनेक यात्राएँ करनेवाले विष्णुजी जीवनपर्यंत पूर्णकालिक मसिजीवी रचनाकार के रूप में साहित्य-साधनारत रहे। स्मृतिशेष : 11 अप्रैल, 2009।

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