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Author Rajendra Tiwari
Features
  • ISBN : 9789355212740
  • Language : Hindi
  • Publisher : Prabhat Prakashan
  • Edition : 1sr
  • ...more

More Information

  • Rajendra Tiwari
  • 9789355212740
  • Hindi
  • Prabhat Prakashan
  • 1sr
  • 2022
  • 248
  • Soft Cover
  • 200 Grams

Description

विश्व में अशांति, कलह, संघर्ष, युद्ध, नकारात्मकता, ईर्ष्या, अहम् की प्रतिस्पर्धा में शांतिविहीन समाज का स्वरूप बन रहा है, जिस कारण अभाव, अपूर्णता, असंतुष्टता पनप रही है। व्यक्ति का आंतरिक सुख व आनंद विलुप्त हो रहा है। प्रश्न यह है कि हमारा मन शांत और संतुष्ट कैसे हो व हम आनंद कैसे प्राप्त करें? प्रस्तुत पुस्तक में विद्वान् लेखक ने स्पष्ट किया है कि अध्यात्म का तात्पर्य किसी धर्म-विशेष से नहीं है, बल्कि इससे व्यक्ति को सही व गलत के भेद को स्वतंत्र रूप से निर्णय लेने का रास्ता मिलता है, विवेकशीलता जाग्रत् होती है। आध्यात्मिक चिंतन में द्वंद्व और भेदभाव नहीं है। यह विषय सिर्फ संत-महात्माओं और भक्ति के क्षेत्र से जुडे़ व्यक्तियों के लिए ही नहीं है, बल्कि इसकेमाध्यम से मनन करके हम आनंद की राह खोज सकते हैं। हमें हमारे शिक्षणकाल में उस ज्ञान को परोसा ही नहीं जा रहा है जो आनंद के आभास की राह बताता हो। जीवन का उद्देश्य आनंद में रहने का है। मनुष्य के नैसर्गिक गुणों में द्वंद्व, भ्रम, अवसाद, चिंता, व्यग्रता, असंतोष, असंतुलन, क्लेश आदि ग्राह्य नहीं हैं। प्रसन्न रहना एक स्वाभाविक गुण है। अतः जीवन में संतोष और उल्लास प्राप्त करने के लिए मानवीय गुण तथा आध्यात्मिक-सांस्कृतिक चिंतन प्राप्त करने के लिए प्रसन्न रहिए, आनंदित रहिए। इसी से जीवन में आनंद की राह प्रशस्त होगी। व्यावहारिक जीवन में आनंद का एकमात्र साधन आध्यात्मिक चिंतन है। पुस्तक की प्रस्तावना मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के न्यायमूर्ति माननीय श्री जस्टिस आनंद पाठक ने प्रस्तुत की है।

The Author

Rajendra Tiwari
राजेंद्र तिवारी
ख्यातिप्राप्त विचारक एवं चिंतक। राजनीतिक, सामाजिक, प्रशासनिक, आध्यात्मिक व समसामयिक विषयों पर निरंतर लेख प्रकाशित। पारिवारिक पृष्ठभूमि नैतिक मूल्यों की पक्षधर रही है। परिवार में सन् 1947 के पूर्व से वकालत का व्यवसाय हो रहा है। अक्तूबर 1976 से तिवारीजी ने एक सफल अभिभाषक के रूप में अपनी प्रतिष्ठित, ईमानदार, पारदर्शी पहचान बनाई है। सन् 1990 से 1993 तक मध्य प्रदेश शासन के अतिरिक्त शासकीय अभिभाषक एवं सन् 2004 से 2015 तक शासकीय अभिभाषक रहे।

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